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भक्ति के सच्चे घर हैं विश्वास और संतोष, हनुमंत चरित्र कथा में बोले स्‍वामी मैथिलीशरण

स्वामी मैथिलीशरण ने कहा कि महावीर हनुमान ने सुंदरकांड में जो-जो किया वह सब भगवान राम के उस संदेश का ही विस्तार है जिसे उन्होंने हनुमान को लंका जाते हुए सीता को देने के लिए कहा था। कहा कि हनुमान ने माता सीता के समक्ष जब लंका को जला दिया।

By Sumit KumarEdited By: Published: Wed, 01 Dec 2021 04:51 PM (IST)Updated: Wed, 01 Dec 2021 06:27 PM (IST)
भक्ति के सच्चे घर हैं विश्वास और संतोष, हनुमंत चरित्र कथा में बोले स्‍वामी मैथिलीशरण
स्वामी मैथिलीशरण ने कहा कि हनुमान ने माता सीता के समक्ष जब लंका को जला दिया।

जागरण संवाददाता, देहरादून: स्वामी मैथिलीशरण ने कहा कि महावीर हनुमान ने सुंदरकांड में जो-जो किया, वह सब भगवान राम के उस संदेश का ही विस्तार है, जिसे उन्होंने हनुमान को लंका जाते हुए सीता को देने के लिए कहा था। कहा कि हनुमान ने माता सीता के समक्ष जब लंका को जला दिया, राक्षसों को मार दिया और पर्वत के समान देह बना ली तो यह भगवान के बल का ही विस्तार है। बल के विस्तार में अहंकार के आने की संभावना रहती है, पर महाबलि हनुमान के अंदर उसका लेशमात्र अंश भी नहीं है।

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श्री राम किंकर विचार मिशन के परमाध्यक्ष स्वामी मैथिलीशरण राजा रोड स्थित सनातन धर्म सभा गीता भवन के सभागार में चल रही तीन दिवसीय हनुमंत चरित्र कथा के समापन पर प्रवचन कर रहे थे। स्वामीजी के अनुसार, जब माता सीता हनुमान की शक्ति पर संशय व्यक्त करती है तो हनुमान ने कहा, 'सुनु माता साखामृग नहिं बल बुद्धि बिसाल, प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु ब्याल।' (हे माता! वानरों में बहुत बल-बुद्धि नहीं होती, परंतु प्रभु के प्रताप से बहुत छोटा सर्प भी गरुड़ को खा सकता है।) यही हनुमान की अहंकार शून्यता है।

विरह के विस्तार की चर्चा करते हुए स्वामी मैथिलीशरण ने कहा कि हनुमान ने लंका में पहली बार अपना परिचय देते हुए सीता से कहा कि, 'रामदूत मैं मातु जानकी, सत्य सपथ करुनानिधान की।' यह करुणानिधान शब्द सबसे पहले पार्वती ने जनकपुर की पुष्प वाटिका में तब कहा था, जब उन्होंने सीता को पति रूप में श्रीराम की प्राप्ति का वरदान दिया। हनुमान ने सीता को भगवान की अंतरंग कथा सुनाकर अशोक वाटिका रूपी दुखमयी वाटिका से आनंदमयी उस पुष्प वाटिका में पहुंचा दिया, जहां उनका भगवान से उनका प्रथम मिलन हुआ था।

कहा कि हनुमान का यही कार्य सीता को देह से ऊपर उठाकर वियोग में योग करा देता है। सही मायने में हनुमान ने दो समुद्र किए किए। उन्होंने वियोग का समुद्र सीता को पार कराया और देहाभिमान के समुद्र से स्वयं पार हुए।

मानस के प्रचार-प्रसार को दिए दो कमरे

कथा के समापन पर अध्यक्ष राकेश ओबराय ने कहा कि गीता भवन देवरहा बाबा और राम किंकर की कृपा भूमि है। इसलिए वह स्थायी रूप से गीता भवन के दो कमरे श्री राम किंकर विचार मिशन को रामचरितमानस के प्रचार-प्रसार को सौंप रहे हैं। ताकि उत्तराखंड की भूमि पर मानस का व्यापक प्रचार हो। गुलशन खुराना ने कहा कि गीता भवन में रामकिंकर की एक पेंटिंग लगाई जाएगी।

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