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स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा- सहनशीलता और धैर्य ही है सहिष्णुता

आज शनिवार को परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि न्यायोचित तथा सम्मानपूर्ण अभिव्यक्ति तथा किसी भी प्रकार की आक्रामकता से बचना व विरोधी विचारों को सुनने की ताकत रखना ही वास्तव में सहिष्णुता है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sat, 06 Nov 2021 06:45 PM (IST)Updated: Sat, 06 Nov 2021 06:45 PM (IST)
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा- सहनशीलता और धैर्य ही है सहिष्णुता
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा- सहनशीलता और धैर्य ही है सहिष्णुता।

जागरण संवाददाता, ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में भाई दूज के पावन अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती, साध्वी भगवती सरस्वती एवं साध्वी आभा सरस्वती के सानिध्य में परमार्थ गुरुकुल के ऋषि कुमारों और परमार्थ परिवार के सदस्यों को बहनों ने तिलक लगाकर भाई दूज का पर्व मनाया।

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स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि बहन रक्षाबंधन के अवसर पर भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती है, फिर भाई दूज को माथे पर तिलक लगाकर दीर्घायु और दिव्यायु की प्रार्थना करती हैं। नारियां करवा चौथ को पति के लिए व्रत रखती हैं, अहोई अष्टमी को बेटे के लिये, भाई दूज पर भाइयों को तिलक करती है। इसलिये 365 दिन में उस मातृशक्ति को अपने हृदय में स्थान दे उनका सम्मान करें।

अंतरराष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस दुनिया में व्याप्त सभी संस्कृतियों की समृद्धि, विविधता और सम्मान की अभिव्यक्ति हेतु पूरी दुनिया में मनाया जाता है। विभिन्न संस्कृतियों और संप्रदायों के बीच सहिष्णुता का निर्माण करना है तथा दूसरों के अधिकारों और स्वतंत्रता का सम्मान करना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा सहिष्णुता न केवल एक नैतिक कर्तव्य है,बल्कि आज के युग की सबसे प्रमुख आवश्यकता भी है। इसलिए सहिष्णुता और अहिंसा की पहल स्वयं से करना वर्तमान समय की सबसे बड़ी जरूरत है।

परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि न्यायोचित तथा सम्मानपूर्ण अभिव्यक्ति तथा किसी भी प्रकार की आक्रामकता से बचना व विरोधी विचारों को सुनने की ताकत रखना ही वास्तव में सहिष्णुता है। दूसरों को धैर्य और शान्ति से सुनने के कारण भी नए तथा मौलिक विचार प्राप्त होते हैं जिससे समाज की दिशा बदली जा सकती है तथा पूरे विश्व में शांतिपूर्ण सहस्तित्व का निर्माण किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति की आत्मा में ही सहनशीलता की संस्कृति विद्यमान है। हम सभी विविधता और सहनशीलता के साथ आगे बढ़ें यही आज के समय की मांग भी है। एक-दूसरे की संस्कृति और आचार-विचार का सम्मान करें तथा ओनली एक्शन, नो रिएक्शन को जीवन का मंत्र बना लें। स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि सहिष्णुता से तात्पर्य सहनशीलता व धैर्य से है। सहनशीलता मानव स्वभाव के अमूल्य रत्नों में से एक है। जिसके पास सहनशीलता है वह विपरीत परिस्थितियों में भी प्रसन्नता के साथ जीवन यापन कर सकता है। सहिष्णु व्यक्ति के स्वभाव में विरोध जैसा कुछ नहीं होता, वे विरोधी विचारों पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं देते, हर परिस्थिति को सहजता से स्वीकार कर लेते हैं तथा उनके स्वभाव में क्रोध व ईष्र्या नहीं बल्कि शान्ति और सहजता होती है।


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