प्रख्यात रामकथा मर्मज्ञ संत मुरारी बापू ने कहा- भारतीय संस्कृति का यथार्थ स्वरूप प्रकृति की गोद में
प्रख्यात रामकथा मर्मज्ञ संत मुरारी बापू ने परमार्थ निकेतन पहुंचकर स्वामी चिदानंद सरस्वती महाराज से भेंट की। इस दौरान उनके बीच विभिन्न धार्मिक मुद्दों पर चर्चा हुई। शनिवार को परमार्थ निकेतन पहुंचे संत मुरारी बापू का परमार्थ गुरुकुल के ऋषिकुमारों ने शंख ध्वनि और वेद मंत्रों से स्वागत किया।
जागरण संवाददाता, ऋषिकेश। प्रख्यात रामकथा मर्मज्ञ संत मुरारी बापू ने परमार्थ निकेतन पहुंचकर स्वामी चिदानंद सरस्वती महाराज से भेंट की। इस दौरान उनके बीच विभिन्न धार्मिक मुद्दों पर चर्चा हुई। शनिवार को परमार्थ निकेतन पहुंचे संत मुरारी बापू का परमार्थ गुरुकुल के ऋषिकुमारों ने शंख ध्वनि और वेद मंत्रों से स्वागत किया। मुलाकात के दौरान स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि कथाएं सनातन संस्कृति की द्योतक हैं। वर्तमान समय में पर्यावरण और जल की समस्याएं बढ़ रही हैं, इसलिए कथाओं को पर्यावरण, जल और प्रकृति संरक्षण से जोडऩा होगा तभी प्रकृति और संस्कृति बच सकती है। कथाओं और धार्मिक आयोजनों के माध्यम से आमजन को उनके मूल से, आदर्शों, जीवन मूल्यों, संस्कार, सुधार, और विचारों की शुचिता से जोड़ा जा सकता है। इस अवसर पर संत मुरारी बापू ने कहा कि भारतीय संस्कृति का यथार्थ स्वरूप और नूतन आयाम प्रकृति की गोद में ही समाहित है।
इसलिए मानव विकास एवं नव सृजन के लिए कथाओं को हरित स्वरूप प्रदान करना नितांत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक संस्कृति ही प्रकृति की रक्षा कर सकती है। उन्होंने कहा कि सनातन संस्कृति सामाजिक-धार्मिक पुनर्जागरण की संस्कृति है। भारतीय संस्कृति में हमेशा से ही तात्कालिक सामाजिक समस्याओं के प्रति जनमानस को जागृत करने में अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि धार्मिक आयोजनों और कथाओं के माध्यम से तात्कालिक समस्याओं में सुधार और पर्यावरण व जल संरक्षण और पौधारोपण के लिए प्रेरित किया जाये तो इससे विलक्षण परिवर्तन हो सकता है।
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