मॉब लिंचिंग देश के लोकतंत्र पर एक प्रश्नचिह्न, सख्त कानून की जरूरत
उत्तराचंल विश्वविद्यालय के लॉ कॉलेज देहरादून में आयोजित वाद-विवाद प्रतियोगिता के दौरान वक्ताओं ने कहा है कि मॉब लिंचिंग के खिलाफ सख्त कानून समय की जरूरत है।
देहरादून, जेएनएन। 'भीड़ के द्वारा की गई हिंसा (मॉब लिंचिंग) के खिलाफ सख्त कानून समय की जरूरत है। यह बात वक्ताओं ने उत्तराचंल विश्वविद्यालय के लॉ कॉलेज देहरादून में आयोजित वाद-विवाद प्रतियोगिता के दौरान कही। प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ हिन्दी वक्ता पार्थ नारायण सिंह व सर्वश्रेष्ठ इंग्लिश वक्ता इशु भारद्वाज को चुना गया।
लॉ कॉलेज में अंतर महाविद्यालय वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। विवि के निदेशक डॉ. अभिषेक जोशी ने बतौर मुख्य अतिथि प्रतियोगिता का उद्घाटन किया। मॉब लिंचिंग जैसे ज्वलंत विषय पर हुई इस वाद-विवाद प्रतियोगिता में कड़ा मुकाबला देखने को मिला। विषय के पक्ष में अपने विचार रख रहे प्रतिभागियों ने घटनाओं का हवाला देते हुए मॉब लिंचिंग पर कठोर कानून बनाने पर जोर दिया।
मॉब लिंचिंग पर कानून बनाने को लेकर उच्चतम न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के निर्देशों को पूरजोर तरीके से रखा गया। उन्होंने कहा कि वर्तमान भारतीय दंड संहिता के कानून मॉब लिंचिंग नियंत्रण में सक्षम नहीं है। विपक्ष में अपने विचार रख रहे प्रतिभागियों ने कहा कि भारतीय दंड संहिता व संविधान के प्रावधान मॉब लिंचिंग नियंत्रण में सक्षम है। अतिरिक्त कानून बनाना एक अवैज्ञानिक सोच होगी। पूर्व में बने कानून के प्रवर्तन की नितांत आवश्यकता है। उन्होंने मॉब लिंचिंग का समर्थन न करते हुए नया कानून बनाने पर अपना विरोध दर्ज किया।
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कॉलेज के प्राचार्य डॉ. राजेश बहुगुणा ने कहा कि भारत में मॉब लिंचिंग दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र पर एक प्रश्न चिह्न है। उन्होंने कहा कि जहा एक ओर मॉब लिंचिंग घिनोना अपराध है, वहीं दूसरी ओर इस पर नियंत्रण भी कतिपय कारणों से उतना ही कठिन है। प्रतियोगिता में मास कम्युनिकेशन की स्मृति उनियाल, लॉ कॉलेज की डॉ. लक्ष्मी प्रिया व कुमार आशुतोष बतौर जज रहे। इस मौके पर विभागाध्यक्ष डॉ. पूनम रावत, अमित कुमार, कुमार आशुतोष सहित छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।
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