यहां आवारा कुत्तों के आतंक से लोग परेशान, रेबीज इंजेक्शन का भी अकाल; जानिए
राह गुजरते आपको कुत्ता या बंदर काट दे तो उपचार के लिए सरकारी अस्पतालों में जाने से कोई फायदा नहीं। सरकारी अस्पतालों में पिछले कई दिनों से रेबीज इंजेक्शन का अकाल पड़ा हुआ है।
देहरादून, जेएनएन। शहर में आवारा कुत्तों का आतंक बना हुआ है। मुख्य सड़कें हो या फिर गली-मोहल्ले हर जगह कुत्तों का झुंड देखा जा सकता है। राह गुजरते अगर आपको कुत्ता या फिर बंदर काट दे तो उपचार के लिए सरकारी अस्पतालों में जाने से कोई फायदा नहीं है। क्योंकि सरकारी अस्पतालों में पिछले कई दिनों से रेबीज इंजेक्शन का अकाल पड़ा हुआ है।
बात अगर शहर के तीन बड़े सरकारी अस्पतालों यानी दून मेडिकल कालेज चिकित्सालय, राजकीय कोरोनेशन अस्पताल और गांधी शताब्दी नेत्र चिकित्सालय की करें तो यहां भी रेबीज इंजेक्शन उपलब्ध नहीं है। ऐसे में मरीजों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। प्राइवेट मेडिकल स्टोर में भी इंजेक्शन बामुश्किल ही उपलब्ध हो पा रहे हैं। जिन मेडिकल स्टोरों में इंजेक्शन उपलब्ध हैं वह दोगुने मूल्य पर इसे बेच रहे हैं।
ऐसे में मरीजों के सामने मरता क्या नहीं करता जैसी स्थिति आ खड़ी हो रही है। मरीज मजबूरी में अधिक मूल्य चुकता कर रेबीज का इंजेक्शन खरीद रहे हैं। उधर, अस्पताल प्रबंधन हर मर्तबा यही दावा कर रहे हैं कि जल्द ही रेबीज इंजेक्शन उपलब्ध हो जाएंगे। इंजेक्शन की आपूर्ति करने वाली संबंधित फर्म के साथ करार किया गया है। दून निवासी पीड़ित महिला दुर्गा व्यास ने बताया कि शनिवार को उनके पालतू कुत्ते ने उनके पैर पर काट दिया। रविवार को वह उपचार के लिए कोरोनेशन अस्पताल गईं और कई घंटे कतार में खड़ी रहीं। बाद में डॉक्टर ने बताया कि अस्पताल में रेबीज का इंजेक्शन उपलब्ध नहीं है।
बाहर प्राइवेट मेडिकल स्टोर से इंजेक्शन खरीद कर लाने की सलाह दी गई। दून अस्पताल और गांधी अस्पताल में भी रेबीज का इंजेक्शन उपलब्ध नहीं हो पाया। इसके बाद वह कई मेडिकल स्टोर में गईं, लेकिन रेबीज का इंजेक्शन नहीं मिला। आखिर में सहारनपुर रोड स्थित एक मेडिकल स्टोर में इंजेक्शन मिला, लेकिन वह भी एमआरपी से अधिक मूल्य पर।
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एक इंजेक्शन का मूल्य 350 रुपये था, लेकिन मेडिकल स्टोर संचालक ने उसको 370 रुपये में दिया। यानी मरीज को करीब दो हजार रुपये के इंजेक्शन खरीदने पड़ रहे हैं। बहरहाल, पिछले कई माह से सरकारी अस्पतालों में रेबीज का इंजेक्शन उपलब्ध नहीं होने से मरीज परेशान हो रहे हैं, लेकिन सिस्टम में सुधार हो नहीं रहा है।
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