यहां चिकित्सकों ने सबसे छोटे पेसमेकर का किया प्रत्यारोपण, पढ़िए पूरी खबर
देहरादून के कैलाश अस्पताल के हृदय संस्थान ने सबसे छोटे पेसमेकर की रोगी के दिल में प्रत्यारोपित करके कीर्तिमान बनने का दावा किया है।
देहरादून, जेएनएन। कैलाश अस्पताल के हृदय संस्थान ने सबसे छोटे पेसमेकर की रोगी के दिल में प्रत्यारोपित करके कीर्तिमान बनने का दावा किया है। लीडलेस पेसमेकर दुनिया में सबसे उन्नत पेसिंग वाला एक छोटा सा हार्ट डिवाइस है। सर्जरी को सफल बनाने वाली टीम में कार्डियोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ.राज प्रताप सिंह, डॉ.अखिलेश पांडे, डॉ.केजी शर्मा आदि शामिल रहे।
बुधवार को कैलाश अस्पताल में पत्रकारों से वार्ता में चिकित्सकों ने बताया कि यह पेसमेकर एक हार्ट ब्लॉक से पीडि़त रोगी में प्रत्यारोपित किया गया। इस बीमारी में दिल बहुत धीमी गति से धड़कता है। जिसके परिणाम स्वरूप हृदय शरीर में ऑक्सीजन युक्त रक्त देने में असमर्थ हो जाता है। जिससे चक्कर आना, थकान, सांस फूलना, बेहोशी और कभी-कभी मृत्यु हो सकती है। वर्तमान में पेसमेकर इस बीमारी का एक मात्र इलाज है। पेसमेकर दिल की सामान्य लय को बहाल करने में मदद करता है।
बताया कि मरीज बुजुर्ग 83 वर्ष के हैं। जिन्हें हार्ट ब्लाक, एनीमिया, किडनी की बीमारी, पुराना तपेदिक और त्वचा रोग थे। उन्हें पेसमेकर की सलाह दी गई। पेसमेकर प्रत्यारोपण के लिए छाती पर एक चीरा लगाना पड़ता है। जिसके बाद फ्लैप और पाकेट का निर्माण होता है। जिसमें माचिस की डिब्बी के आकार का पेसमेकर पड़ता है। यह पेसमेकर लगभग एक फुट लंबे पेसिंग लीड के जरिये दिन से जुड़ा होता है, जो नसों से दिल तक पहुंचते हैं। कई बीमारियों से ग्रसित और बुजुर्ग होने के कारण उन्हें माइक्रो लगवाने की सलाह दी गई। माइक्रो एक लीडलेस पेसमेकर है।
यह विटामिन कैप्सूल के आकार का उपकरण केवल 0.8 सीसी बड़ा है और इसका वजन केवल दो ग्राम है। दुनिया के सबसे छोटे पेसमेकर होने के कारण इसे कैथेटर द्वारा सीधे हृदय में प्रत्यारोपित किया जा सकता है। इस प्रकार यह पारंपरिक पेसमेकरों मेे होने वाले साइट संक्रमण, पेसिंग लीड फैक्चर, पेसमेकर का बाहरीकरण, चीरे का निशान और केलोइड गठन जैसी जटिलताओं के बिना सुरक्षित विकल्प प्रदान करता है। डॉ.तेज प्रताप ने बताया कि यह लीड रहित पेसमेकर उन रोगियों के लिए वरदान है, जिन पर पारंपरिक पेसमेकर लगाने के कई प्रयास विफल हो गए थे। या उन्हें शारीरिक बाधाओं के कारण प्रत्यारोपित नहीं किया जा सकता था। इस मौके पर डॉ.राज प्रताप सिंह, अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ.आतिश शर्मा व निदेशक डॉ.पवन शर्मा आदि मौजूद रहे।
ईवीएआर तकनीक से एसएमआइ में पहला ऑपरेशन
श्री महंत इंदिरेश अस्पताल में एक मरीज की एब्डोमिनर्ल एओटिक एन्यूरिज्म की सफल सर्जरी हुई। मेडिकल साइंस की एडवांस तकनीक एंडो वैस्क्युलर ट्रीटमेंट ऑफ एओटिक एन्यूरिज्म से सफल सर्जरी की गई। मरीज की जांघ पर केवल तीन इंच का चीरा लगाकर महाधमनी व उनकी शाखाओं में नए ग्राफ्ट लगाए गए व रक्त प्रवाह के लिए नया रास्ता तैयार किया गया।
ऐसे ऑपरेशन के लिए हाईब्रिड ऑपरेशन थियेटर होने के साथ ही काॉर्डियोलॉजिस्ट, कॉर्डियक थोरेसिस वैस्क्यूलर सर्जन, इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट, एनेस्थिटिस्ट सहित डॉक्टरों की टीम की आवश्यकता होती है। एक मरीज को ऐसे उपचार की आवश्यकता पडऩे पर श्री महंत इंदिरेश अस्पताल की कैथ लैब को हाईब्रिड ऑपरेशन थियेटर के रूप में तब्दील किया गया। यह जानकारी श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. विनय राय व श्री गुरु राम राय इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एंड हेल्थ साइंसेज के प्राचार्य डॉ. अनिल कुमार मेहता ने पत्रकारों से मुखातिब होते हुए दी।
डॉ. विनय राय ने बताया एब्डोमिनर्ल एओटिक एन्यूरिज्म पेट के पास महाधमनी में पाई जानी वाली ऐसी बीमारी है, जिससे महाधमनी फूल जाती है। महाधमनी के फूलने का प्रतिकूल असर पेट के आसपास के टिश्यू पर बढ़ते दबाव के रूप में पड़ता है। बढ़ते दबाव के कारण आंत व रीढ़ की हड्डी के कार्य करने की क्षमता पर भी प्रतिकूल असर पडऩे लगता है। इससे महाधमनी या आसपास के टिश्यू का कोई हिस्सा फट सकता है, इसके कारण अत्यधिक रक्तस्त्राव हो सकता है व मरीज की जान भी जा सकती है।
वरिष्ठ कॉर्डियक थोरेसिस वैस्क्यूलर सर्जन डॉ. अरविंद मक्कड़, कैथ लैब के डायरेक्टर डॉ. तनुज भाटिया व वरिष्ठ इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट डॉ. प्रशांत सारड़ा ने जानकारी दी कि 70 वर्षीय मरीज भगत सिंह निवासी देहरादून को दो सालों से पेट दर्द की शिकायत थी। मरीज को लंबे समय से पाचन में परेशानी थी और वे चल फिर भी नहीं पा रहे थे। वह कई अस्पतालों में उपचार करवा चुके थे। डॉ. अरविंद ने मरीज की प्रारंभिक जांचों में पाया कि उन्हें एब्डोमिनर्ल एओटिक एन्यूरिज्म की परेशानी है। इस बीमारी के कारण पेट के पास महाधमनी फूल गई थी। आमतौर पर इस बीमारी की सर्जरी के लिए पेट पर बड़ा चीरा लगाकर पेट खोला जाता है।
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मरीज की उम्र अधिक होने के कारण व सीओपीडी की शिकायत के चलते पेट में बड़ा चीरा लगाकर ऑपरेशन करना जोखिम भरा हो सकता था। वहीं दूसरी तरफ बड़े ऑपरेशन के बाद रिकवरी करने में भी लंबा समय लग सकता था। इन सभी बातों को ध्यान में रखकर श्री महंत इंदिरेश अस्पताल की कैथ लैब में एंडो वैस्क्युलर ट्रीटमेंट ऑफ एओटिक एन्यूरिज्म तकनीक के अंतर्गत मरीज के पांव की धमनियों में छोटा सा चीरा लगाकर ऑपरेशन किया गया। ऑपरेशन को सफल बनाने में एनेस्थीसिया टीम जिसमें डॉ. पराग, डॉ. प्रतीश, डॉ. हरिओम व डॉ. रूबीना मक्कड़ आदि का विशेष सहयोग रहा।
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