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यहां चार साल बाद भी परवान नहीं चढ़ सका छह किमी मॉडल रोड का ख्वाब, जानिए

चार साल पहले सूबे के शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने दून में आइएसबीटी से घंटाघर तक छह किमी की मॉडल रोड का ख्वाब आमजन को दिखाया था।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Tue, 07 Jul 2020 07:16 PM (IST)Updated: Tue, 07 Jul 2020 07:16 PM (IST)
यहां चार साल बाद भी परवान नहीं चढ़ सका छह किमी मॉडल रोड का ख्वाब, जानिए
यहां चार साल बाद भी परवान नहीं चढ़ सका छह किमी मॉडल रोड का ख्वाब, जानिए

देहरादून, अंकुर अग्रवाल। चार साल पहले सूबे के शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने दून में आइएसबीटी से घंटाघर तक छह किमी की मॉडल रोड का ख्वाब आमजन को दिखाया था। दावे किए गए थे कि यह मॉडल रोड को प्रदेश के लिए नजीर बनेगी, लेकिन मंत्री जी का ख्वाब चार साल बाद भी परवान नहीं चढ़ सका। शुरुआती दो साल में छह किमी की नाली और फुटपॉथ के अधूरे निर्माण से यह योजना मजाक बनी रही, जबकि योजना पर प्रदेश के तीन विभाग आठ करोड़ से ज्यादा बजट खर्च कर चुके थे। बाद में जो नाली बनी, उसमें जल निकासी ही नहीं हो पाई। जो फुटपॉथ बनाए गए, वह भी पैदल चलने के बजाए अतिक्रमण की भेंट चढ़ गए। छह किमी की मॉडल रोड तो चार साल बाद भी नहीं बनी, जबकि कौशिक खुद योजना की कमान संभाले रहे। तपती धूप में ई-रिक्शा पर बैठकर निरीक्षण भी किया, मगर ख्वाब अधूरा ही रहा।

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अतिक्रमण हटा न मुकदमा हुआ

मंत्री ने मॉडल रोड पर अतिक्रमण हटाने के लिए डीएम और एसएसपी को संयुक्त टीम गठित करने के निर्देश दिए थे। टीम में नगर निगम को शामिल कर रोजाना निरीक्षण करने के निर्देश दिए गए थे। अतिक्रमण पाए जाने पर संबंधित के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के निर्देश थे। मगर, न मुकदमा हुआ न ही अतिक्रमण हटाया गया। आइएसबीटी से घंटाघर तक मॉडल रोड के फुटपॉथ और नाली पर जहां भी काम हुआ था, वहां अब दोबारा अतिक्रमणकारियों का कब्जा है। इस छह किमी क्षेत्र में छोटे बड़े 300 अतिक्रमण हो गए हैं। मॉडल रोड के फुटपॉथ व नाली से बाहर सड़क तक अतिक्रमण पसरा हुआ है। सबसे खराब स्थिति शिमला बाइपास से लालपुल, पटेलनगर से सहारनपुर चौक और गांधी रोड से घंटाघर तक है। 'जिम्मेदार' तो पहले ही कार्रवाई से कतरा रहे थे, अब तो उन्हें कोरोना की आड़ लेकर पल्ला झाड़ने का बहाना भी मिल गया है।

'नर्वस सिस्टम' में सब बेबस    

स्मार्ट सिटी। दून शहर में पिछले पांच साल से गूंज रहा यह नाम अब खुद एक अबूझ पहेली बन चुका है। क्योंकि कोई भी नहीं जान सकता कि जो कुछ स्मार्ट सिटी में प्रस्तावित है वह दरअसल है क्या। शहर के लोग स्मार्ट सिटी का नाम सुनते हैं तो उनके सामने विकास के लंबा-चौड़े ख्वाब परोसे जाते हैं, लेकिन महानगरों से अपने शहर की तुलना की जाए तो यह सब सपने चकनाचूर होने लगते हैं। शहर में विकास के नाम पर खूब योजनाएं बनाई गई, पैसे की भी बारिश हुई, कागजों में काम भी बहुत हुआ, लेकिन तस्वीर नहीं सुधरी। समस्याएं तस की तस। न तो सीवर लाइन का पूरा इंतजाम है, न ही कचरा प्रबंधन। मामूली सी बारिश में ही पूरा शहर तालाब बन जाता है। ऐसा नहीं है कि इनके विरुद्ध लोग आवाज नहीं उठाते, आगे आते हैं लेकिन 'नर्वस सिस्टम' के आगे वे फिर बेबस हो जाते हैं।

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दौरे पर दौरे, ख्वाब अधूरे

शहर में जन शिकायतों के निस्तारण के लिए महानगरों की तर्ज पर कोई प्रबंध नहीं है। यहां पर न तो अलग से कोई शिकायत सेल है, न ही कोई विशेष प्रयास हो रहा है। शिकायतें डंप हैं, निस्तारण का प्रयास सिर्फ कागजी है। हालांकि शिकायतों पर कार्रवाई न किए जाने का मामला कई बार आ चुका है। कई मामले तो फाइलों में गुम कर दिए गए। जनता मूल समस्याओं से कराह रही है, सुनवाई के इंतजाम सिर्फ हवा में हैं। न तो टोल-फ्री नंबर है, न ही सोशल मीडिया पर शिकायत का कोई चलन। इतना जरूर है कि शहर को साफ-सुथरा करने व स्मार्ट सिटी बनाने की कोशिशों के दावे खूब ठोके जा रहे। मंत्री से लेकर आला अफसर तक निरीक्षण भी कर रहे हैं। बावजूद इसके शहर में बुनियादी सुविधाओं के बुरे हाल है। दौरे पर दौरे जारी हैं पर साफ व स्वच्छ दून का ख्वाब अब तक अधूरा दिख रहा है।

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