साहब, अगर आरटीओ के कर्मचारी ही बिना लाइसेंस वाहन चलाने की सलाह दें तो क्या करूं?
बात राजधानी के संभागीय परिवहन कार्यालय (आरटीओ) की है। सड़क सुरक्षा माह के पहले दिन साहब दूनवासियों को समझा रहे थे कि सड़क पर चलते समय हादसा न हो इसके लिए जेहन में सुरक्षा का ख्याल बेहद जरूरी है। इसलिए सुरक्षा उपायों और लाइसेंस के बगैर वाहन न चलाएं।
विजय मिश्रा, देहरादून। बात राजधानी के संभागीय परिवहन कार्यालय (आरटीओ) की है। सड़क सुरक्षा माह के पहले दिन साहब दूनवासियों को समझा रहे थे कि सड़क पर चलते समय हादसा न हो, इसके लिए जेहन में सुरक्षा का ख्याल बेहद जरूरी है। इसलिए सुरक्षा उपायों और लाइसेंस के बगैर वाहन न चलाएं। तभी भीड़ में से एक आवाज आई, साहब अगर आरटीओ के कर्मचारी ही बिना लाइसेंस वाहन चलाने की सलाह दें तो क्या करूं? साहब अवाक रह गए। जवाब से बेहतर कर्मचारी के विरुद्ध जांच का आदेश देना समझा। दरअसल, सवाल करने वाला युवक कुछ दिन पहले ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए आरटीओ गया था। वहां एक कर्मचारी ने स्लॉट के झंझट से मुक्ति के लिए उसे बिना लाइसेंस ही वाहन दौड़ाने की सलाह दे डाली। अब आरटीओ में इन सलाहवीर की तलाश जोरों पर है। लोग कह रहे हैं, सड़क सुरक्षा की मुहिम साहब अपने घर यानी दफ्तर से शुरू करते तो बेहतर रहता।
कुछ हुआ, बहुत कुछ करना बाकी
सरकार की मानें तो उत्तराखंड में बीते तीन साल में सरकारी चिकित्सकों की संख्या पचास फीसद से ज्यादा बढ़ी है। 2017 में जहां 1024 चिकित्सक थे, अब यह संख्या 2400 हो चुकी है। बढ़ोतरी के लिहाज से इन आंकड़ों को ठीक कहा जा सकता है, मगर पहाड़ के हालात इस ठीक को नकारते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक कहते हैं कि एक हजार व्यक्तियों पर एक सरकारी चिकित्सक होना चाहिए। इस लिहाज से प्रदेशवासियों की सेहत दुरुस्त रखने के लिए कम से कम दस हजार सरकारी चिकित्सक चाहिए, अगर 2011 की जनगणना को आधार मानें तो। लेकिन, प्रदेश में फिलहाल हर 4202 व्यक्ति पर एक सरकारी चिकित्सक है। साफ है कि अभी इस क्षेत्र में काफी काम करने की जरूरत है। सरकार ने इस दिशा में एक और कदम बढ़ा दिया है। 720 चिकित्सकों की भर्ती की घोषणा की गई है। अब जरूरत है इस घोषणा पर अमल की।
इस पहल को नजीर बनाना होगा
इम्युनिटी यानी रोग प्रतिरोधक शक्ति। पिछले एक वर्ष में कोरोना वायरस के बाद जिस शब्द की सबसे ज्यादा चर्चा हुई, वो यही है। अभी भी 131 से ज्यादा देशों में कुंडली जमाए बैठे कोरोना को आसानी से मात देने में वही कामयाब हुआ, जिसकी इम्युनिटी बेहतर थी। ..तो इम्युनिटी बढ़ाना जरूरी है। कैसे? अरे भाई, इसके लिए औषधीय गुणों से भरपूर पहाड़ी अनाजों से बेहतर और क्या होगा। अब खाकी की थाली में भी मंडवे की रोटी, कंडाली का साग, फाणू जैसे पारंपरिक व्यंजन नजर आएंगे। पुलिस विभाग के नए मुखिया की यह पहल बेहद सराहनीय है। जरूरत है इस पहल को नजीर बनाने की। हर सरकारी महकमे को उत्तराखंड पुलिस की यह पहल आत्मसात करनी चाहिए। सरकारी महकमे ही क्यों, पैतृक घर से दूर रह रहे लोग भी इसे बढ़ावा दें। इससे नई पीढ़ी कोरोना जैसी विपत्तियों से लड़ने में तो सक्षम होगी ही, अपनी जड़ों से भी जुड़ेगी।
कोरोना से डर नहीं लगता साहब...
कोरोना वायरस का टीकाकरण शुरू होने के बाद पड़ोस वाले भाई साहब की चिंता का केंद्र बदल गया है। जबसे पता चला है कि राज्य में स्वास्थ्यकर्मियों का टीकाकरण लक्षित संख्या के मुताबिक नहीं हो पा रहा, सिस्टम को रह-रहकर कोस रहे हैं। सुबह मुलाकात हुई तो आदतवश पूछ लिया, क्या चल रहा है? बस, भाई साहब का चिंतन श्रीमुख से बाहर आ गया। अखबार की तरफ इशारा करते हुए बोले, ये है हमारे सिस्टम की संजीदगी। दिन-रात कोरोना से जूझ रहे स्वास्थ्यकर्मियों का टीकाकरण भी पूरी रफ्तार से नहीं हो रहा। मैं कुछ बोल पाता कि दूसरा सवाल उछाल दिया, ड्राई रन में तकनीकी कारणों पर काम क्यों नहीं किया। भाई साहब अगला सवाल दागते, इससे पहले मैं उन्हें सलमान खान की दबंग फ्रेंचाइजी का डायलॉग 'थप्पड़ से डर नहीं लगता साहब, प्यार से लगता है' चिपकाकर खिसक लिया। अब भाई साहब इस डायलॉग पर चिंतन में व्यस्त हैं।
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