गढ़वाल मंडल में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बढ़े, पर शोधन क्षमता के अनुरूप नहीं
गढ़वाल मंडल में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित कर दिए गए लेकिन इनमें से ज्यादातर में क्षमता के अनुरूप सीवरेज शोधन नहीं हो रहा है। वजह है बूढ़ी हो चुकी सीवर लाइनें। ऐसे भी शहर और कस्बे हैं जहां 40 से 50 साल पुरानी सीवर लाइनें जैसे-तैसे बोझ ढो रही हैं।
देहरादून, जेएनएन। गढ़वाल मंडल के प्रमुख शहरों और कस्बों में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित कर दिए गए, लेकिन इनमें से ज्यादातर में क्षमता के अनुरूप सीवरेज शोधन नहीं हो रहा है। वजह है बूढ़ी हो चुकी सीवर लाइनें। ऐसे भी शहर और कस्बे हैं, जहां 40 से 50 साल पुरानी सीवर लाइनें जैसे-तैसे बोझ ढो रही हैं। जर्जर होने की वजह से जहां-तहां हो रही लीकेज इस 'मर्ज' को बढ़ा रही हैं। हालिया दिनों में नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत इन शहरों में नए एसटीपी स्थापित करने के साथ ही पहले से बने प्लांटों को अपग्रेड करके उनकी शोधन क्षमता बढ़ाई गई। मगर, प्लांट तक सीवर पहुंचाने की मुक्कमल व्यवस्थाएं अभी तक नहीं हो पाई हैं। इसके चलते काफी मात्रा में सीवर अब भी नदी-नालों में समा रहा है। यद्यपि, इस बीच कुछ योजनाओं पर काम शुरू जरूर हुआ है, पर पूरा कब तक होगा, यह कहना अभी मुश्किल है। 'दैनिक जागरण' की टीम के सर्वेक्षण में एसटीपी में शोधन की जो असल तस्वीर सामने आई, पेश है उसका ब्योरा।
रुड़की
शहर के सीवर ट्रीटमेंट के लिए सालियर में 33 एमएलडी क्षमता का प्लांट बना है, लेकिन प्लांट तक केवल दो एमएलडी सीवर ही पहुंच पा रहा है। नई लाइनें न बिछाए जाने और पुरानी जर्जर लाइनों को बदले न जाने के कारण यह स्थिति बनी हुई है। केवल रामनगर और मकतूलपुरी की पुरानी सीवर लाइन को ही नई लाइन से जोड़ा गया है। एशियन डेवलपमेंट बैंक के सीनियर प्रोजेक्ट मैनेजर आरके रजवार के अनुसार नई सीवर लाइन से कनेक्शन देने के लिए गर निगम से एनओसी मांगी गई है।
हरिद्वार
शहर और आसपास के इलाकों में पांच एसटीपी हैं, इनकी कुल शोधन क्षमता 145 एमएलडी है। इसकी तुलना में इन प्लांट में 132 एमएलडी सीवर का शोधन हो रहा है। यहां तीन एसटीपी की शोधन क्षमता में हाल में ही बढोतरी की गई। कुछ इलाकों में सीवर लाइन 60 साल पुरानी होने के कारण पूरा सीवर प्लांटों तक नहीं पहुंच पा रहा है। अगले साल प्रस्तावित कुंभ कार्यों के तहत 280 किलोमीटर सीवर लाइन बदलने की योजना है।
ऋषिकेश
तीर्थनगरी के अधिकांश इलाकों में सीवर का बोझ 36 साल पुरानी लाइनें ढो रही हैं। यहां नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत तीन सीवर ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित किए गए हैं, लेकिन इन तक सीवर पहुंचाने के लिए नई लाइनें नहीं डाली गई हैं। लक्कड़ घाट प्लांट की क्षमता में वृद्धि कर 26 एमएलडी कर दी गई, मगर प्लांट तक अभी छह एलएलडी ही सीवर पहुंच रहा है। पांच एमएलडी क्षमता के चोरपानी एसटीपी के लिए अभी सीवर लाइन नहीं डाली गई है। चंद्रेश्वर नगर में बने साढ़े सात एमएलडी क्षमता के एसटीपी में गंगा में मिलने वाले तीन नालों को टैङ्क्षपग कर शोधित किया जा रहा है।
उत्तरकाशी
ज्ञानसू में स्थापित 40 साल पुराने एसटीपी में शहर के एक चौथाई आबादी के सीवरेज का ही निस्तारण हो पा रहा है। तकरीबन बीस हजार परिवारों को सीवर लाइन की सुविधा का इंतजार है। वर्ष 2018 में नमामि गंगे एक्शन प्लान में उत्तरकाशी में सीवरेज ट्रीटमेंट कार्य शामिल किए गए हैं, पर अभी तक इनकी शुरुआत नहीं हो पाई है।
नई टिहरी
भागीरथीपुरम में पांच एमएलडी का एसटीपी प्लांट बना है, पर इसमें बामुश्किल ढाई एमएलडी सीवरेज का शोधन ही हो पा रहा है। इसके आसपास की पांच कालोनियों के डेढ़ हजार परिवारों के लिए अभी तक सीवर लाइन नहीं डाली गई है। जल संस्थान के अभियंता बताते हैं कि इन कॉलोनियों को एसटीपी से जोडऩे के लिए टीएचडीसी को प्रस्ताव दिया गया है।
चमोली
जिला मुख्यालय गोपेश्वर के साथ ही गौचर, कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग, जोशीमठ और बदरीनाथ में छोटे-छोटे 16 एसटीपी स्थापित है। इनमें एक अभी चालू नहीं हो पाया है। अन्य 15 की शोधन क्षमता 100 केएलडी से डेढ़ एलएलडी तक है। कुल मिलाकर इन प्लांट में 7.12 एमएलडी सीवर शोधन की क्षमता है, लेकिन 4.30 एमएलडी सीवर ही इन तक पहुंच पा रहा है।
रुद्रप्रयाग
शहर में छोटे-छोटे छह एसटीपी स्थापित हैं। इनमें एक में अभी तक चालू नहीं हो पाया है, बाकी की क्षमता 53 केएलडी से 125 केएलडी तक है। इनमें आठ नालों को टेप किया गया है। कुल मिलाकर पांचों प्लांट की शोधन क्षमता पौने दो एमएलडी है, वर्तमान में लगभग एक एमएलडी सीवर का ही शोधन हो पा रहा है।