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उच्च हिमालयी क्षेत्रों में सीबक थोर्न प्रोजेक्ट

उच्च हिमालयी में उगने वाला सीबक थोर्न यानी अमेष का पौधा अब उत्तराखंड में भी लोगों की झोलियां भरेगा।

By JagranEdited By: Published: Fri, 22 Feb 2019 08:27 PM (IST)Updated: Fri, 22 Feb 2019 08:27 PM (IST)
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में सीबक थोर्न प्रोजेक्ट
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में सीबक थोर्न प्रोजेक्ट

राज्य ब्यूरो, देहरादून

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उच्च हिमालयी में उगने वाला सीबक थोर्न यानी अमेष का पौधा अब उत्तराखंड में भी लोगों की झोलियां भरेगा। केंद्र सरकार ने राज्य के पिथौरागढ़, चमोली व उत्तरकाशी के उच्चशिखरीय क्षेत्रों में अमेष के कृषिकरण एवं इसके उत्पाद विकसित करने के लिए सीबक थोर्न प्रोजेक्ट को मंजूरी देते हुए 20.50 लाख रुपये की राशि स्वीकृत की है। विधानसभा के बजट सत्र के अंतिम दिन शुक्रवार को विधायक ऋतु खंडूड़ी के सवाल के जवाब में कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने सदन को यह जानकारी दी।

जंगली पौधे सीबक थोर्न में शरीर को चुस्त-दुरुस्त रखने और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने जैसे गुण हैं। चीन में तो सीबक थोर्न से करीब 150 से अधिक उत्पाद तैयार किए गए हैं। उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भी सीबक थोर्न के पौधे पाए जाते हैं। इस अहम पौधे के कृषिकरण के मद्देनजर विधायक ऋतु खंडूड़ी ने इससे संबंधित तारांकित प्रश्न लगाया था।

जवाब में कृषि मंत्री उनियाल ने बताया कि केंद्र सरकार ने राज्य के तीन जिलों में इस पौधे के सर्वे, अभिलेखीकरण और वेल्यू एडीशन के लिए सीबक थोर्न प्रोजेक्ट शुरू किया है। इसे मिशन फार इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट आफ हार्टिकल्चर (एमआइडीएच) के अंतर्गत अतिरिक्त गतिवधियों के रूप में शामिल किया गया है। उन्होंने बताया कि प्रोजेक्ट के तहत मुनस्यारी में सीबक थोर्न के डेढ़ हजार मातृ पौधे लगाए गए हैं, जिससे भविष्य में पौध तैयार कर कृषकों को कृषिकरण के लिए वितरित किया जाएगा। उन्होंने विधायक हरीश धामी, केदार सिंह रावत, सुरेंद्र सिंह जीना व मनोज रावत के अनुपूरक प्रश्नों के जवाब में बताया कि सीबक थोर्न की खेती को वैकल्पिक खेती के रूप में अपनाया जा सकता है।

कुटकी की खेती से जुड़े 275 किसान

विधायक ऋतु खंडूड़ी के एक अन्य प्रश्न के जवाब में कृषि मंत्री ने बताया कि राज्य में औषधीय महत्व के पौधे कुटकी के कृषिकरण को वर्ष 2017 में उत्तराखंड कृषि उत्पादन बोर्ड ने 23 लाख रुपये की वित्तीय सहायता जड़ी-बूटी शोध एवं विकास संस्थान को दी। कुटकी कृषिकरण के विस्तार योजना को 'अटल जड़ी-बूटी मिशन' नाम दिया गया। टिहरी, पौड़ी, उत्तरकाशी, चमोली व रुद्रप्रयाग जिलों में कुटी पौध का पांच नाली भूमि तक निश्शुल्क वितरण कर कृषिकरण किया जा रहा है। औषधीय पौधों के विपणन के लिए तीन हर्बल मंडियां भी स्थापित की गई हैं। उन्होंने बताया कि वर्तमान में 275 किसान कुटकी की खेती से जुड़े हैं, जिन्हें 15.56 लाख पौधे दिए गए। विधायक ऋतु खंडूड़ी, चंदन रामदास, मुन्नी देवी, राजकुमार व महेश नेगी के अनुपूरक प्रश्नों पर उन्होंने कहा कि कुटकी की मुहिम को तेजी से आगे बढ़ाया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि फिलहाल कुटकी का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने का विचार नहीं है।

पीकेवीवाई व आरकेवीवाई में 460 करोड़

विधायक देशराज कर्णवाल के सवाल पर कृषि मंत्री ने बताया कि परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकवीवाई) और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) में जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। तीन वर्ष की इन योजनाओं में 460 करोड़ की राशि व्यय की जानी है। उन्होंने बताया कि जैविक फसलों पर मंडी शुल्क खत्म करने का विचार नहीं है। विधायक प्रीतम सिंह, कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन, राम सिंह कैड़ा ने भी अनुपूरक प्रश्न रखे।

564 मामलों में हुई कार्रवाई

विधायक देशराज कर्णवाल के अल्पसूचित प्रश्न पर कृषि मंत्री ने बताया कि राज्य बनने के बाद उर्वरक के 297 और कीटनाशी रसायन के 267 सैंपल फेल हुए। इनमें कार्रवाई की गई। उन्होंने इसका ब्योरा भी सदन में रखा।


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