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उत्तराखंड के इन पांच सबसे प्राचीन शिव मंदिरों में सावन पर पहुंचते हैं भक्‍त, तस्‍वीरों में घर बैठे कीजिए दर्शन

Shiva Temple in Uttarakhand उत्‍तराखंड में कई प्राचीन शिव मंदिर हैं जहां भक्‍तों के आने का सिलसिला पूरे वर्षभर जारी रहता है। लेकिन सावन के महीने में इन शिवालयों में भक्‍तों की भारी भीड़ उमड़ती है। इस साल सावन का महीना 14 अगस्‍त से शुरू हुआ है।

By Nirmala BohraEdited By: Published: Fri, 01 Jul 2022 02:53 PM (IST)Updated: Sun, 24 Jul 2022 12:20 PM (IST)
उत्तराखंड के इन पांच सबसे प्राचीन शिव मंदिरों में सावन पर पहुंचते हैं भक्‍त, तस्‍वीरों में घर बैठे कीजिए दर्शन
Shiva Temple in Uttarakhand : ये हैं उत्तराखंड के पांच सबसे प्राचीन शिव मंदिर

टीम जागरण, देहरादून : Shiva Temple in Uttarakhand : उत्‍तराखंड के कण-कण में भगवान शंकर विराजमान हैं। उत्‍तराखंड में कई प्राचीन शिव मंदिर भी स्थित हैं, जहां भक्‍तों के आने का सिलसिला पूरे वर्षभर जारी रहता है। ऐसी धार्मिक मान्‍यता है कि इन शिव मंदिरों में भक्‍तों की हर मनोकामना पूरी होती है। सावन के महीने में उत्‍तराखंड के शिवालयों में भी भक्‍तों की भीड़ उमड़ती है। इस साल सावन का महीना 14 जुलाई से शुरू हो गया है।

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बैजनाथ मंदिर: कुमाऊं मंडल के बागेश्वर में स्थित यह धाम लाखों-करोड़ों हिन्दुओं की आस्था का केन्द्र है। बैजनाथ अपने पौराणिक मंदिरों के लिए भी जाना जाता है। बैजनाथ गरुड़ गंगा और गोमती नदी के संगम पर बसा हुआ है। बैजनाथ का पौराणिक नाम बैद्यनाथ बताया जाता है। मिनी स्वीटजरलैंड कहे जाने वाले कौसानी से इसकी दूरी महज 18 किमी है। कत्यूरी शासकों के अलावा चन्द और मणिकोटी शासकों द्वारा यहां पर अनेकों मंदिरों का निर्माण एवं पुनर्निर्माण किया गया था। यहां पर 18 मंदिरों का एक समूह था जिसके केंद्र में भगवान शिव का मंदिर था। जिसके अब अवशेष मात्र ही हैं।

दक्ष मंदिर: भगवान आशुतोष की ससुराल हरिद्वार के कनखल में दक्षेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। धार्मिक मान्यता के अनुसार भोले शंकर श्रवण मास में अपनी ससुराल दक्षनगरी कनखल में विराजते हैं। इसी कारण सावन मास में शिवभक्त सबसे अधिक संख्या में जलाभिषेक के लिए दक्ष मंदिर पहुंचते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा दक्ष प्रजापति सती के पिता थे। सती भगवान शिव की प्रथम पत्नी थीं। राजा दक्ष ने इसी जगह भव्य यज्ञ का आयोजन किया था। जिसमें सभी देवी देवताओं, ऋषियों ओर संतों को आमंत्रित किया, लेकिन भगवान शिव को नहीं बुलाया गया। इस घटना से आहत सती ने अपमानित महसूस किया और यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।

त्रियुगीनारायण मंदिर: पुराणों में वर्णित है कि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में त्रियुगीनारायण शिव पार्वती विवाह स्थल मन्दिर है। कहते हैं कि त्रियुगीनारायण में ही भगवान शिव और माता पार्वती ने शादी की थी। धार्मिक मान्‍यता है कि त्रियुगीनारायण मंदिर में धूनी तीन युगों से जल रही है। यहां ब्रह्मकुंड व विष्णुकुंड भी मौजूद हैं। खास बात ये है कि इस ज्योति के दर्शन करने के लिए यहां भक्तों की भीड़ लगी रहती है। माना जाता है कि शिव-पार्वती ने इसी अग्नि को साक्षी मानकर विवाह किया था।

जागेश्‍वर धाम : जागेश्वर को उत्तराखंड का पांचवां धाम भी कहा जाता है। अल्‍मोड़ा जिले में स्थित जागेश्वर धाम भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है। कहा जाता है कि यह प्रथम मंदिर है जहां लिंग के रूप में शिवपूजन की परंपरा सर्वप्रथम शुरू हुई। यहां सालभर श्रद्धालुओं का आना लगा रहता है, लेकिन सावन और महाशिवरात्रि पर यहां जन सैलाब उमड़ता है। इस धाम का उल्लेख स्कंद पुराण, शिव पुराण और लिंग पुराण में भी मिलता है।

नीलकंठ महादेव मंदिर : ऋषिकेश में मौजूद नीलकंठ महादेव मंदिर करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। सावन और महाशिवरात्रि पर यहां हर साल लाखों की संख्‍या में शिवभक्त पहुंचते हैं। नीलकंठ महादेव मंदिर में भगवान शिव स्वयंभू लिंग स्‍वरूप में विराजमान हैं। पुराणों में उल्लेख है कि समुद्र मंथन के दौरान कंठ में हलाहल धारण करने के बाद भगवान शिव यहीं आकर नीलकंठ कहलाए।


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