सरकार का गजब फैसला, दिन में बाजार और सड़कों पर उमड़ रही भीड़; कर्फ्यू लग रहा है रात में
Night Curfew उत्तराखंड में कोरोना संक्रमण के मामले एक बार फिर बढ़ने लगे हैं। कोरोना के नए वैरिएंट ने दस्त दे दी है। इसको रोकने के लिए रात में कर्फ्यू लगा दिया गया है। जबकि दिन में बाजार और सड़कों पर भीड़ उमड़ रही है। जो चिंता का विषय है।
विजय मिश्रा, देहरादून। कोरोना वायरस अपने नए वैरिएंट ओमिक्रोन के रूप में देश के समक्ष फिर से चुनौती बनकर खड़ा हो गया है। उत्तराखंड समेत 20 से ज्यादा राज्यों में यह वैरिएंट दस्तक दे चुका है। अच्छी बात यह है कि उत्तराखंड में तंत्र समय रहते इस खतरे से निबटने के लिए सक्रिय हो गया है। तमाम एहतियात बरतने के साथ ही व्यवस्था को दुरुस्त करना शुरू कर दिया गया है। ओमिक्रोन के संक्रमण की रोकथाम के लिए रात 11 बजे से सुबह पांच बजे तक नाइट कर्फ्यू प्रभावी कर दिया गया है। हालांकि, दिन में बाजार और सड़कों पर उमड़ रही भीड़ चिंता बढ़ा रही है। क्योंकि, अब भी कई लोग सार्वजनिक स्थलों पर मास्क का इस्तेमाल नहीं कर रहे। दो गज की शारीरिक दूरी के नियम का पालन भी नहीं हो रहा। आमजन को भी अपनी जिम्मेदारी समझते हुए कोरोना से बचाव के लिए जारी सुरक्षा उपायों को फिर आत्मसात करना होगा।
शराब मुक्त चुनाव की पहल
लालच से कौन बच सका है। उस पर माहौल चुनावी हो तो भला जनता इससे कैसे मुक्त रह सकती है। अच्छी बात यह है कि इस बार राज्य की मातृशक्ति ने चुनाव को शराब मुक्त रखने का बीड़ा उठाया है। इसके लिए नई टिहरी के चंबा में राड्स संस्था की ओर से आयोजित कार्यक्रम में आगामी विधानसभा चुनाव में शराबबंदी अभियान चलाने का संकल्प लिया गया। निर्णय हुआ कि मतदाताओं को शराब पिलाने का प्रलोभन देने वाले प्रत्याशी का बहिष्कार किया जाएगा। ऐसी ही जागरूकता राजनीतिक दलों के उन वायदों पर भी दिखाने की जरूरत है, जो वायदा कम लालच ज्यादा हैं। मतदान से पहले ऐसे वायदों को परखने की जरूरत है। चिंतन किया जाना चाहिए कि आखिर उन वायदों को पूरा कैसे किया जाएगा। निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर विकासवादी सोच रखने वाले दल और प्रत्याशी को चुनने से ही समाज के हर व्यक्ति तक विकास की किरण पहुंच सकेगी।
तकनीक संग नेटवर्क भी पहुंचे
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सरकारी स्कूलों में 10वीं व 12वीं के डेढ़ लाख और महाविद्यालयों के एक लाख छात्र-छात्राओं को मुफ्त टैबलेट देने की घोषणा की है। सरकार की यह पहल सराहनीय है। तकनीक के इस दौर में हर युवा हाथ में ऐसे उपकरणों का होना अति आवश्यक है। दूसरी तरफ, राज्य के सीमांत जिलों चमोली, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ में दो हजार से अधिक गांव अब भी दूरसंचार सेवाओं से अछूते हैं। ऐसा नहीं है कि सरकारों ने यहां दूरसंचार के तार पहुंचाने की कोशिश नहीं की। इसके लिए वर्षों से कवायद की जा रही है, मगर दुर्भाग्य यह कि अधिकांश योजनाएं फाइलों तक ही सीमित हैं। सरकार को यहां जल्द से जल्द संचार सेवा पहुंचाने की कोशिश करनी चाहिए। जिससे छात्रों को तकनीक हाथ में होने के बावजूद पढ़ाई या अन्य कार्यों के लिए कई किलोमीटर की दूरी तय कर पहाड़ की चोटियों पर डेरा जमाना न पड़े।
समस्या का समाधान तलाशना जरूरी
चंद रोज पहले की बात है। बागेश्वर जिले के कांडा सामुदायिक स्वास्थ्य में घायल व्यक्ति को उपचार के लिए घंटों इंतजार करना पड़ा। इमरजेंसी वार्ड में तैनात डाक्टर नहीं मिले तो स्वजन ने पूर्व विधायक ललित फस्र्वाण को फोन किया। विधायक दलबल के साथ अस्पताल पहुंच गए। इसके बाद इमरजेंसी में तैनात डाक्टर पर अभद्रता का आरोप लगाते हुए धरने पर बैठ गए। तब माने, जब सीएमओ ने डाक्टर को अन्यत्र भेजने की बात कही। सवाल यह है कि क्या डाक्टर को अन्यत्र भेज देने से व्यवस्था दुरुस्त हो जाएगी। पहाड़ के अस्पतालों में संसाधनों का अभाव किसी से छिपी नहीं है। इसे दूर करने का प्रयास होना चाहिए। पूर्व विधायक अपना हठ पूरा करने के बजाय समस्या के समाधान की राह तलाशते तो अच्छा होता। जनप्रतिनिधि के लिए जरूरी है कि वह जनता के सुख-दुख में सबसे आगे खड़ा रहे। इसी तरह चिकित्सक के लिए जरूरी है कि प्राथमिकता मरीज का इलाज हो।
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