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उत्तराखंड: सपना रह गया साबरमती की तर्ज पर रिवर फ्रंट डेवलपमेंट, सिर्फ गंदगी ढोने का जरिया बनी ये दो नदियां

जिस रिस्पना और बिंदाल नदी को एक दौर में सदानीरा कहा जाता था वहां पानी की जगह गंदगी बह रही है। प्रदूषण के कारण ये नदियां मरणासन्न हालत में पहुंच चुकी हैं। पीने योग्य पानी में फीकल कॉलीफॉर्म की मात्रा प्रति 100 एमएल में 1460 एमपीएन तक पाई गई।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Wed, 02 Dec 2020 10:13 AM (IST)Updated: Wed, 02 Dec 2020 10:13 AM (IST)
उत्तराखंड: सपना रह गया साबरमती की तर्ज पर रिवर फ्रंट डेवलपमेंट, सिर्फ गंदगी ढोने का जरिया बनी ये दो नदियां
सपना रह गया साबरमती की तर्ज पर रिवर फ्रंट डेवलपमेंट।

जागरण संवाददाता, देहरादून। River Front Development जिस रिस्पना और बिंदाल नदी को एक दौर में सदानीरा कहा जाता था, वहां पानी की जगह गंदगी बह रही है। प्रदूषण के कारण ये नदियां मरणासन्न हालत में पहुंच चुकी हैं। पीने योग्य पानी में फीकल कॉलीफॉर्म की मात्रा शून्य होनी चाहिए, जबकि यहां इसकी मात्रा प्रति 100 एमएल में 1460 एमपीएन (मोस्ट प्रोबेबल नंबर) तक पाई गई है।

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रिस्पना और बिंदाल नदी को पुनर्जीवन देने के लिए करीब एक दशक पहले दून ने एक ख्वाब देखा था। साबरमती नदी की तर्ज पर इनका रिवर फ्रंट डेवलपमेंट किया जाए। ख्वाब को धरातल पर उतारने के लिए वर्ष 2010 में तत्कालीन महापौर विनोद चमोली ने मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) के कुछ अधिकारियों के साथ अहमदाबाद का दौरा कर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। इसके कुछ समय बाद साबरमती रिवर फ्रंट डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (एसआरएफडीसीएल) की टीम ने उस समय की रमेश पोखरियाल निशंक की सरकार को अपना प्रस्तुतीकरण भी दिया। 

इसके बाद हरीश रावत की सरकार में रिस्पना और बिंदाल नदी की सूरत संवारने को रिवर फ्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट तैयार किया गया। इस दिशा में कुछ काम भी किए गए। हालांकि, बात लीपापोती से आगे नहीं बढ़ पाई। वर्तमान की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार में भी इस पर लंबी-चौड़ी कसरत की गई है। एक मुश्त दोनों नदियों पर काम करने की जगह पायलट प्रोजेक्ट के रूप में निश्चित क्षेत्रों का चयन किया गया। यहां तक कि निर्माण कंपनी भी तय कर ली गई और काम में सहयोग के लिए साबरमती रिवर फ्रंट डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के साथ एमओयू भी कर लिया गया। इसके बाद भी अब तक कोई यह कहने की स्थिति में नहीं कि परियोजना पर काम कब शुरू हो पाएगा और अब बात यह भी सामने आ रही है कि पूरी योजना ठंडे बस्ते में डाल दी गई है।

रिस्पना-बिंदाल के पानी की स्थिति

(टोटल कॉलीफार्म व फीकल कॉलीफार्म की मात्रा एमपीएन/100 एमएल में व अन्य की मात्रा एमजी/लीटर में)

तत्व, मानक, पाई गई मात्रा

तेल-ग्रीस, 0.1, 11 से 18

टीडीएस, 500, 740 से 1200

बीओडी, 02, 126 से 144

डीओ,   06 से अधिक, अधिकतम 1.4

लैड,  0.1, 0.54

नाइट्रेट, 20, 388 से 453

टोटल कॉलीफार्म, 50, 1760 से 3800

फीकल कॉलीफार्म, शून्य, 516 से 1460

750 करोड़ के काम पर मुहर, जमीन का पता नहीं

फरवरी 2018 में एमडीडीए ने रिस्पना-बिंदाल के 36 किलोमीटर हिस्से को एकमुश्त विकसित करने की जगह तय किया कि पहले पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर 3.7 किलोमीटर भाग पर रिवर फ्रंट का विकास किया जाएगा। इसके लिए सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों से एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट (ईओआइ) के तहत आवेदन मांगे गए। परियोजना की लागत करीब 750 करोड़ रुपये आंकी गई। जून माह में यह भी तय कर लिया गया कि नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कंपनी (एनबीसीसी) इस काम को करेगी। हालांकि, इसके बाद जमीन का नया पेच फंस गया। परियोजना के विकास के लिए जो 43 हेक्टेयर भूमि एमडीडीए के प्रबंधन में दी गई थी, उसका नियमानुसार हस्तांतरण भी एमडीडीए के पक्ष में किया जाना था। लंबे समय तक मामला शासन में भी अटका रहा और फिर राज्य कैबिनेट की बैठक में मई 2019 में इसके लिए तत्कालीन मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह की अध्यक्षता में एक समिति का गठन कर दिया गया था। हालांकि, जमीन के मसले का समाधान नहीं निकल सका।

पहले फेज में इस हिस्से का चुनाव

रिस्पना नदी, धोरण पुल से बाला सुंदरी मंदिर तक 1.2 किलोमीटर भाग।

बिंदाल नदी, हरिद्वार बाईपास रोड के पुल क्षेत्र में 2.5 किलोमीटर भाग।

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