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पहाड़ी इलाकों में निरंतर बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए उठाने होंगे ठोस कदम

Road Accidents In Uttarakhand उत्तराखंड राज्य में खासकर पहाड़ी इलाकों में निरंतर बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए प्रभावी कदम उठाने के साथ ही जनजागरूकता पर भी ध्यान केंद्रित किया जाना आवश्यक है। सतर्क होंगे तो हादसों पर लगाम कसने में मदद मिलेगी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 03 Sep 2021 03:20 PM (IST)Updated: Fri, 03 Sep 2021 03:21 PM (IST)
पहाड़ी इलाकों में निरंतर बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए उठाने होंगे ठोस कदम
सड़कों पर क्रैश बैरियर लगाने की जरूरत है।

देहरादून, स्टेट ब्यूरो। विषम भूगोल वाले उत्तराखंड में बढ़ती सड़क दुर्घटनाएं चिंता का सबब बनी हुई हैं। आंकड़े इसकी गवाही दे रहे हैं। इसी साल जून तक प्रदेश में 773 सड़क हादसे हो चुके हैं, जिनमें 350 दुर्घटनाएं तो अकेले पर्वतीय क्षेत्र की हैं। ऐसे में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि सड़क सुरक्षा के तमाम दावों के बावजूद हादसों की रोकथाम को सिस्टम कितना सक्रिय है।

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सड़कों के रखरखाव की ही तस्वीर देखें तो 1800 किलोमीटर सड़कों के किनारे क्रैश बैरियर तक नहीं लग पाए हैं। अब मुख्य सचिव ने लोक निर्माण विभाग को इस मामले में प्राथमिकता के आधार पर कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। इसके पीछे भी बढ़ते सड़क हादसों की चिंता छिपी हुई है। दरअसल सड़क दुर्घटनाओं के लिहाज से देखें तो राज्य का पर्वतीय क्षेत्र बेहद संवेदनशील है।

पर्वतीय मार्गो पर कई जगह ऐसे अंधे मोड़ हैं कि सामने से आ रहा वाहन तक नजर नहीं आता। इसके साथ ही सड़कों के एक तरफ पहाड़ हैं तो दूसरी ओर खाई। इस सबको देखते हुए पर्वतीय मार्गो पर सड़क किनारे पैराफिट लगाए जाते हैं और जहां पैराफिट नहीं हैं, वहां क्रैश बैरियर लगाने का प्रविधान है। इसके पीछे मंतव्य यही है कि वाहन के संतुलन खोने की स्थिति में वह पैराफिट अथवा क्रैश बरियर से टकराकर रुक जाए। तीन साल पहले हुए सर्वे में यह बात सामने आई थी कि प्रदेश में लगभग 12,300 किलोमीटर लंबी सड़कों में से करीब 4,600 किलोमीटर में क्रैश बैरियर लगाने की जरूरत है। उस पर सिस्टम का हाल यह है कि अभी तक 2,800 किलोमीटर सड़क पर ही ये बैरियर लग पाए हैं।

कुछ ऐसी ही स्थिति वाहनों की गति पर नियंत्रण, ओवरलोडिंग पर अंकुश लगाने समेत अन्य मामलों में भी है। वह भी तब, जब केंद्र और राज्य सरकारों से लेकर अदालत तक सड़क हादसों पर अंकुश लगाने को लेकर गंभीर हैं। बावजूद इसके सिस्टम की हीलाहवाली हैरत में डालने वाली है। हालांकि सड़क सुरक्षा के नाम पर अभियान की औपचारिकताएं जरूर होती हैं, लेकिन फिर स्थिति जस की तस हो जाती है। परिवहन समेत संबंधित विभागों को इस परिपाटी को त्यागकर सड़क हादसे रोकने के लिए पूरी गंभीरता के साथ कदम उठाने होंगे। साथ ही लोक निर्माण विभाग को भी सड़कों पर सुरक्षा के मद्देनजर तेजी से कार्रवाई करनी होगी। इसके साथ ही सड़क सुरक्षा के सिलसिले में व्यापक स्तर पर जनजागरूकता की भी जरूरत है। इसमें खानापूरी कतई नहीं होनी चाहिए। यदि सिस्टम से लेकर जनसामान्य तक सजग, सतर्क होंगे तो हादसों पर लगाम कसने में मदद मिलेगी।


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