उच्च हिमालयी क्षेत्र में अब इस तरह चलेगा वनों की 'सेहत' का पता
अब उच्च हिमालयी क्षेत्रों के जंगलों और पर्यावरण की सेहत का पता लग सकेगा। विभाग की रिसर्च विंग जगह-जगह रिसर्च सेंटर स्थापित करेगी।
देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में वनों के साथ ही वहां के वनों एवं पर्यावरण की सेहत कैसी है, अब इसका पता चल सकेगा। वन विभाग की रिसर्च विंग इन क्षेत्रों में भी अपने रिसर्च सेंटर विकसित करेगी। इसके तहत उच्च हिमालयी क्षेत्र के वन एवं पर्यावरण से संबंधित पहलुओं का गहनता से अध्ययन किया जाएगा। फिर इसके आधार पर वहां उपचारात्मक उपाय भी किए जाएंगे।
ग्लोबल वार्मिंग के चलते उच्च हिमालयी क्षेत्र के पर्यावरण पर असर पड़ने की बात तो अक्सर कही जाती है, लेकिन वहां वास्तविक स्थिति है क्या, इसे लेकर बहुत कुछ साफ नहीं है। हालांकि, हिमालयी क्षेत्र में होने वाले प्राकृतिक घटनाक्रमों और फिर क्षेत्र विशेष की स्थिति का अध्ययन जरूर होता रहा है, मगर समग्र अध्ययन की अभी दरकार है।
ऐसे में यह सवाल अनसुलझे हैं कि उच्च हिमालयी क्षेत्र में पेड़-पौधों व वनस्पतियों पर क्या कोई प्रभाव पड़ा है, कहीं ऐसा तो नहीं कि इनका प्राकृतिक पुनरोत्पादन ही प्रभावित हो रहा हो। ग्लोबल वार्मिंग का वास्तव में कितना असर इन पर पड़ा है। इस सबको देखते हुए वन विभाग के अनुसंधान वृत्त ने वन एवं पर्यावरण के लिहाज से उच्च हिमालयी क्षेत्रों की सेहत जांचने के उद्देश्य से वहां भी रिसर्च सेंटर विकसित करने का निश्चय किया है।
हाल में हुई विभाग की अनुसंधान सलाहकार समिति की बैठक में वन संरक्षक अनुसंधान वृत्त संजीव चतुर्वेदी ने उच्च हिमालयी क्षेत्र में रिसर्च सेंटर का प्रस्ताव रखा। बताया गया कि अनुसंधान वृत्त इसके लिए कार्ययोजना तैयार करने में जुट गया है। इस पहल के परवान चढ़ने पर उच्च शिखरीय क्षेत्रों में शोध केंद्रों के जरिये वहां के वन एवं पर्यावरण से जुड़े मसलों का गहनता से अध्ययन किया जाएगा। इससे उच्च हिमालयी क्षेत्र की वास्तविक स्थिति सामने आ सकेगी। फिर इसके आधार पर उपचार के उपाय किए जांएगे।
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