उत्तराखंड: बार-बार उठ रहा एक ही सवाल, आखिर कब अस्तित्व में आएगा 'अर्ली वार्निंग सिस्टम'
दुविधा में दोऊ गए माया मिली न राम। उत्तराखंड के वन्यजीव महकमे पर यह पंक्तियां एकदम सटीक बैठती हैं। ज्यादा वक्त नहीं बीता जब राजाजी टाइगर रिजर्व से सटे हरिद्वार क्षेत्र में हाथियों के उत्पात को थामने के मद्देनजर अर्ली वार्निंग सिस्टम विकसित करने पर जोर दिया गया।
केदार दत्त, देहरादून। 'दुविधा में दोऊ गए, माया मिली न राम'। उत्तराखंड के वन्यजीव महकमे पर यह पंक्तियां एकदम सटीक बैठती हैं। ज्यादा वक्त नहीं बीता, जब राजाजी टाइगर रिजर्व से सटे हरिद्वार क्षेत्र में हाथियों के उत्पात को थामने के मद्देनजर 'अर्ली वार्निंग सिस्टम' विकसित करने पर जोर दिया गया। इसके तहत चिह्नित किए गए उत्पाती हाथियों पर नजर रखने को उन पर रेडियो कॉलर लगाने का निर्णय लिया गया। इससे हाथियों के मूवमेंट का पता चलने पर संबंधित क्षेत्र में तैनात टीम को अलर्ट करने की बात थी। अक्टूबर में एक हाथी पर रेडियो कॉलर लगाया गया, मगर नवंबर में करंट से उसकी मौत हो गई। इसके बाद तो महकमा सहम ही गया। नतीजतन, हाथियों पर रेडियो कॉलर की मुहिम भी थम गई, जबकि हरिद्वार क्षेत्र में हाथियों का खौफ निरंतर बना हुआ है। उस पर अगले साल वहां कुंभ का भी आयोजन है। ऐसे में चिंता ज्यादा बढ़ गई है।
पता चले, जंगलों में कैसे लगी आग
मौसम भले ही सर्दियों का हो, मगर उत्तराखंड में जंगलों की आग इन दिनों चर्चा में है। फायर सीजन (15 फरवरी से 15 जून ) में तो हर साल जंगल धधकते हैं, लेकिन इस मर्तबा सर्दी की दस्तक के साथ ही ये सुलग रहे हैं। लिहाजा, अब तय हुआ है कि फायर सीजन वर्षभर रहेगा। बावजूद इसके सवाल अपनी जगह खड़ा है कि आखिर सर्दियों में जंगल क्यों झुलस रहे हैं। वन महकमे के मुताबिक इस बार अक्टूबर से बारिश न होने से जंगलों में नमी घटी है। पर गौर करने वाली बात ये है आग का प्रमुख कारण तापमान होता है। तो क्या यह माना जाए कि सर्दियों में भी तापमान में कुछ असामान्य परिवर्तन आया है। यही नहीं, वनों में आग के पीछे कुदरती कारण व मानवीय चूक हैं। ये कभी भी भारी पड़ सकते हैं। ऐसे में जंगलों में आग की वजह का पता लगना जरूरी है।
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भी निरंतर सक्रियता
उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में वन महकमे की बढ़ी सक्रियता कुछ सुकून देने वाली है। अभी तक दुरूह परिस्थितियों वाले इस क्षेत्र में वनकर्मियों की गश्त आदि के दावों को संदेह की दृष्टि से देखा जाता था, मगर अब परिस्थितियां बदली हैं। कार्मिकों की लगातार गश्त और सक्रियता का ही परिणाम है कि हाल में नंदादेवी बायोस्फीयर रिजर्व, गोविंद वन्यजीव विहार जैसे क्षेत्रों में शिकारियों व तस्करों को पकड़ा गया है। यह साबित करता है कि वहां व्यवस्था चाक-चौबंद हुई हैं और ये होनी भी चाहिए। साथ ही ये अवधारणा भी टूटी है कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में वन्यजीवों की सुरक्षा रामभरोसे है, जिसका शिकारी व तस्कर फायदा उठाते आए हैं। वन महकमे की इस पहल को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। साथ ही स्थानीय निवासियों का भी दायित्व है कि वे वन क्षेत्रों के इर्द-गिर्द किसी भी संदिग्ध व्यक्ति के नजर आने पर तुरंत इसकी सूचना वनकर्मियों को दें।
कार्बेट में महिला नेचर गाइडों की तैनाती
वन्यजीव विविधता के लिए मशहूर उत्तराखंड के छह राष्ट्रीय पार्क, सात अभयारण्य और चार कंजर्वेशन रिजर्व अब रोजगार के क्षेत्र में भी नई इबारत लिखने जा रहे हैं। इस लिहाज से कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान की पहल सराहनीय है। वहां गाइडों की तैनाती में पहली मर्तबा महिलाओं को भी स्थान मिला है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की घोषणा के बाद कार्बेट उद्यान प्रशासन ने 50 नए गाइडों की तैनाती की है, जिनमें सात महिलाएं हैं। अब यह महिला गाइड भी कार्बेट आने वाले सैलानियों को गाइड करने लगी हैं। जाहिर है कि इस पहल से कार्बेट में महिलाओं के लिए एक नया फ्रंट खुला है। हालांकि, राष्ट्रीय उद्यान में फॉरेस्ट गार्ड से लेकर ऊपर के विभिन्न पदों पर महिला कार्मिकों की तैनाती है, लेकिन अब वे गाइड के तौर पर पर्यटन के क्षेत्र में भी आगे आई हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि अन्य संरक्षित क्षेत्रों में भी ऐसी पहल होगी।