कोरोना वायरस जांच को लेकर प्रीतम सिंह ने साधा निशाना, तो मुन्ना सिंह चौहान ने किया पलटवार
उत्तराखंड में कोरोना वायरस टेस्ट को लेकर भाजपा के मुन्ना सिंह चौहान और कांग्रेस के प्रीतम सिंह एक-दूसरे पर तलवार भांज रहे हैं।
देहरादून, विकास धूलिया। मुन्ना सिंह चौहान, उत्तराखंड भाजपा के मुख्य प्रवक्ता। प्रीतम सिंह, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष। दोनों धुर विरोधी पार्टियों से ताल्लुक रखते हैं मगर दोनों में काफी कुछ कॉमन है। दोनों अपनी पार्टी के बड़े नेताओं में शुमार हैं, तमाम मुद्दों पर मुखर रहते हैं। दोनों की सियासी जमीन भी एक ही है, कई बार चुनाव में आमना-सामना हो चुका है। अब दोनों सूबे में कोरोना टेस्ट को लेकर एक-दूसरे पर तलवार भांज रहे हैं। प्रीतम बोले, 'जिस गति से टेस्ट हो रहे हैं उससे बैकलॉग क्लियर होने में 60 साल लग जाएंगे'। अब भला मुन्ना कैसे मौका चूकते, तड़ से आंकड़ों के गुणा-भाग के साथ मीडिया के सामने हाजिर। कांग्रेस को घोर अज्ञानी करार देते हुए बोले, 'बैकलॉग निबटाने में 4-5 दिन ही लगेंगे'। लगे हाथ सफाई भी दे डाली कि प्रवासियों की आमद के साथ ही मामले दोगुना होने शुरू हुए। फिलहाल प्रीतम के जवाब का इंतजार है।
वाह मंत्रीजी, पर उपदेश कुशल बहुतेरे
कोरोना काल में निजी स्कूलों की मोटी फीस अभिभावकों पर भारी पड़ रही है। हालांकि सरकार ने इस सत्र में फीस न बढ़ाने और केवल टयूशन फीस लेने के निर्देश दिए हैं, लेकिन जमीनी हकीकत ऐसी कतई नहीं है। परेशानहाल अभिभावकों की गुहार शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय तक पहुंची, तो उन्होंने सलाह दे डाली, 'निजी स्कूलों की फीस नहीं दे सकते तो सरकारी स्कूलों में बच्चों को दाखिल कराएं'। बिल्कुल वाजिब बात, मगर मंत्रीजी, क्या बताएंगे कि क्यों अभिभावक अपना पेट काटकर बच्चों को निजी स्कूलों में भेजते हैं। निजी स्कूल और सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के वेतन में जमीन-आसमान का फर्क होता है, फिर भी सरकारी स्कूलों में शिक्षा के गुणवत्ता के स्तर से अभिभावक क्यों संतुष्ट नहीं। साफ है कि इसके लिए आप, यानी सरकार ही जिम्मेदार है। लगे हाथ यह भी बता दीजिए, कितने मंत्रियों, नेताओं के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़े हैं या पढ़ रहे हैं।
लॉकडाउन हुए ख्वाब और अरमान क्वारंटाइन
सियासत भी अजब चीज है, कब क्या करवट ले बैठे, कहा नहीं जा सकता। सूबे में सत्तारूढ़ भाजपा के तीन दर्जन से ज्यादा विधायकों को यह अच्छी तरह समझ आ गया। दरअसल, मंत्रिमंडल में तीन स्थान रिक्त हैं। सरकार के तीन साल पूरे होने से ऐन पहले फरवरी में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र हाईकमान से मंत्रिमंडल विस्तार को हरी झंडी ले आए थे। मंत्री पद के दावेदारों के अरमान फिर अंगड़ाई लेने लगे। कई वरिष्ठता तो कुछ के मंत्री पद के पुराने तजुर्बे के बूते। कई तो शपथ लेने की तैयारी में भी जुट गए मगर कोरोना क्या आया, उनके ख्वाब ही बिखर गए। वैसे ही सरकार को सवा तीन साल गुजर चुके हैं और अब तो जिस तरह के आर्थिक हालात हैं, सरकार भी खर्चों में कटौती का ऐलान कर चुकी है। ऐसे में मुमकिन लगता नहीं कि मंत्रिमंडल विस्तार होगा। अब मन मसोसने के अलावा कोई चारा बाकी भी नहीं।
गवर्नर का सुझाव, सीएम की हामी
गवर्नर बेबी रानी मौर्य जनता से जुड़े मुददों पर बेबाकी से अपनी राय रखती हैं। इस बार उन्होंने ऐसे मुददे को छुआ, जो रोज हम देख-सुन तो रहे हैं, लेकिन बगैर तवज्जो दिए आगे बढ़ जाते हैं। कोरोना संक्रमितों की मौत पर उनके अंतिम संस्कार को लेकर विवाद और स्वजनों को अंतिम दर्शनों से वंचित किए जाने पर उन्होंने सरकार से मानवीय नजरिया अख्तियार करने की अपेक्षा की।
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बड़ी बात यह कि सीएम ने इस पर बाकायदा अधिकारियों को आदेश दे दिए कि मौत के बाद भी व्यक्ति का सम्मान बरकरार रहे, सुनिश्चित किया जाए। इससे पहले गवर्नर क्वारंटाइन सेंटरों में हो रही मौतों पर अफसरों को चेता चुकी हैं, जिस पर सीएम त्रिवेंद्र ने ऐसी हर मौत के डेथ ऑडिट के आदेश दिए हैं। कई राज्यों में इन दिनों गवर्नर-सीएम के बीच रिश्ते अन्य कारणों से चर्चा बटोर रहे हैं, तो उत्तराखंड इस मामले में नजीर बन उभरा है।
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