निकाय के बहाने लोकसभा चुनाव की रिहर्सल कर रहे राजनीतिक दल
प्रदेश में होने वाले निकाय चुनावों को प्रमुख राष्ट्रीय दल अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनावों की रिहर्सल के तौर पर ले रहे हैं। इसके लिए भाजपा और कांग्रेस ने कमर कसी हुई है।
देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: प्रदेश में होने वाले निकाय चुनावों को प्रमुख राष्ट्रीय दल अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनावों की रिहर्सल के तौर पर ले रहे हैं। इन चुनावों में इन पार्टियों का प्रदर्शन काफी हद तक लोकसभा चुनावों की प्रारंभिक तस्वीर सामने रख देगी। इससे इन दलों को लोकसभा चुनाव से पहले अपनी कमियों को दूर करने का मौका भी मिल सकेगा।
प्रदेश में ये निकाय चुनाव कई लिहाज से बेहद अहम माने जा रहे हैं। दरअसल, वर्ष 2017 में मोदी लहर पर सवार भाजपा भारी बहुमत से विधानसभा चुनाव जीती है। इसके बाद उपचुनाव तो हुआ, लेकिन भाजपा की असली परीक्षा ये निकाय चुनाव ही हैं। इस चुनाव के नतीजे प्रदेश भाजपा सरकार की जनता के बीच बनी छवि व पकड़ की स्थिति तय करेंगे। भाजपा के सामने भी यह खुद को साबित करना का मौका है।
यही कारण भी है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट पूरे प्रदेश के चुनावी दौरे पर हैं। भाजपा फिलहाल भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की दिशा में उठाए गए कदम, ऑल वेदर रोड, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन, आयुष्मान भारत स्वास्थ्य योजना आदि बड़ी योजनाओं के साथ ही इन्वेस्टर्स समिट के जरिये पलायन रोकने और रिवर्स पलायन के लिए बनाई गई योजना को जनता के बीच ले जा रही है।
इसके अलावा भाजपा ने राष्ट्रीय पदाधिकारियों के साथ ही सभी सांसद व विधायकों को समाहित करती हुए स्टार प्रचारकों की लंबी चौड़ी टीम बनाई है। जिलों की कमान मंत्रियों को सौंपी गई है। इससे सीधे उनकी परफॉरमेंस से भी जोड़ा गया है। भाजपा के इस कदम से जाहिर है कि वह निकाय चुनावों के जरिये लोकसभा चुनावों के लिए अपनी जमीन तैयार कर रही है।
वहीं, विधानसभा चुनावों में करारी शिकस्त झेलने के बाद कांग्रेस निकाय चुनावों को प्रदेश की राजनीति में फिर से अपनी पैठ बनाने के मौके के रूप में देख रही है। प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह स्वयं प्रचार अभियान की कमान अपने हाथों में संभाले हुए हैं। कांग्रेस ने सभी जिलों में टिकट स्थानीय नेताओं और प्रमुख नेताओं के कहने पर दिए हैं। साथ ही इन्हें ही प्रत्याशियों के लिए काम करने की जिम्मेदारी दी गई है।
कांग्रेस का मकसद किसी तरह भीतर के भीतर की गुटबाजी को दूर करना है। यह कांग्रेस के नेता भी समझ रहे हैं कि यदि विधानसभा चुनावों की तरह पार्टी के भीतर गुटबाजी हावी रही तो लोकसभा चुनावों में जीत हासिल करना बहुत मुश्किल हो जाएगा।
कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व से भी लोकसभा चुनावों से पहले गुटबाजी दूर करने के निर्देश मिले हैं। यही कारण भी है कि लोकसभा चुनावों में टिकट की आस लगाए बड़े नेता भी चुपचाप पार्टी प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार कर रहे हैं। पार्टी राष्ट्रीय मुद्दों के साथ ही अब प्रदेश के छोटे-बड़े मुद्दों को भी हवा दे रही है ताकि किसी तरह जनता को अपने पक्ष में लाया जा सके।
यह भी पढ़ें: स्थानीय निकाय चुनावः आठ बागी नेताओं को कांग्रेस ने पार्टी से निकाला
यह भी पढ़ें: अनुशासनहीनता पर भाजपा और कांग्रेस सख्त, निष्कासन का सिलसिला जारी
यह भी पढ़ें: भाजपा ने विधान सभाओं में भेजे सात प्रचार रथ, सीएम के दौरे में बदलाव