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इस राज्य में 13 साल बाद भी रामभरोसे है वन पंचायतों का नीति निर्धारण

वन पंचायतों की व्यवस्था वाले देश के एकमात्र राज्य उत्तराखंड में पंचायती वनों के लिए प्रदेश स्तर पर प्रबंधन और नीति निर्धारण भगवान भरोसे है।

By Edited By: Published: Tue, 19 Jun 2018 03:01 AM (IST)Updated: Thu, 21 Jun 2018 05:15 PM (IST)
इस राज्य में 13 साल बाद भी रामभरोसे है वन पंचायतों का नीति निर्धारण
इस राज्य में 13 साल बाद भी रामभरोसे है वन पंचायतों का नीति निर्धारण

देहरादून, [केदार दत्त]: वन पंचायतों की व्यवस्था वाले देश के एकमात्र राज्य उत्तराखंड में पंचायती वनों के लिए प्रदेश स्तर पर प्रबंधन और नीति निर्धारण भगवान भरोसे है। 2005 में अस्तित्व में आई उत्तराखंड पंचायती वन नियमावली में स्पष्ट प्रावधान के बावजूद अभी तक वन मंत्री की अध्यक्षता में गठित होने वाली राज्य स्तरीय परामर्शदात्री समिति अस्तित्व में नहीं आ पाई है। ऐसे में न तो वन पंचायतों के लिए प्रभावी नीतियां बन पा रही हैं और न वन समेत अन्य विभागों में समन्वय हो पा रहा है।

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राज्य सरकारें भले ही वन पंचायतों के सुदृढ़ीकरण के लाख दावे करें, लेकिन हकीकत यही है कि सरकारी नियम कायदों में बंधने के बाद इनकी लगातार अनदेखी हो रही है। राज्य स्तरीय परामर्शदात्री कमेटी इसका उदाहरण है। उत्तराखंड पंचायती वन नियमावली-2005 (यथा संशोधित, 2012) की धारा 54 में स्पष्ट है कि राज्य स्तर पर पंचायती वनों के प्रबंधन की समीक्षा और नीति निर्धारण के लिए वन मंत्री की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय कमेटी गठित होगी। 

समिति में जिला स्तरीय समितियों के समन्वयक, ग्राम्य विकास, वन व राजस्व के सचिव बतौर सदस्य होंगे, जबकि प्रमुख वन संरक्षक वन पंचायत के पास सदस्य सचिव की जिम्मेदारी होगी। नियमावली में यह भी प्रावधान है कि वर्ष में कम से कम एक बार मई या जून में राज्य स्तरीय परामर्शदात्री समिति की बैठक हर हाल में होगी। अब सिस्टम की चुस्ती देखिए कि गुजरे 13 सालों में राज्य स्तरीय समिति के गठन की तरफ नजरें फेर ली गई। 

सूरतेहाल, न तो राज्य स्तर पर पंचायती वनों के प्रबंधन की समीक्षा हो पा रही और न वन पंचायतों से सीधे तौर पर जुडे वन, राजस्व व ग्राम्य विकास विभाग के मध्य बेहतर समन्वय ही। यही नहीं, पंचायती वनों की देखभाल करने वाली वन पंचायतों के लिए ठीक से योजनाएं बन पा रहीं, न उनकी समस्याओं का निदान हो पा रहा। लंबे इंतजार के बाद अब राज्य स्तरीय परामर्शदात्री समिति की ओर ध्यान गया है। वन मुख्यालय से गए प्रस्ताव पर मंथन चल रहा है। देखने वाली बात होगी कि इसे मंजूरी मिलने में अभी शासन से कितना वक्त लगता है। 

वन पंचायत के प्रमुख वन संरक्षक राजीव भरतरी ने बताया कि नियमावली के अनुरूप राज्य स्तरीय परामर्शदात्री समिति का गठन शासन स्तर पर ही होना है। इस सिलसिले में वन मुख्यालय की ओर से शासन को प्रस्ताव भेजा गया है। उम्मीद है जल्द ही समिति का गठन हो जाएगा।

राज्य में वन पंचायतें 71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में ग्राम वनों के प्रबंधन व संरक्षण के लिए वर्ष 1932 से वन पंचायतों का गठन प्रारंभ हुआ और यह क्रम बदस्तूर जारी है। जंगलों के संरक्षण की यह अनूठी व्यवस्था देश के अन्य राज्यों में कहीं नहीं है। वर्तमान में प्रदेश के 11 जनपदों में 12168 वन पंचायतें अस्तित्व में हैं, जिनके अधीन 7350.85 वर्ग किमी वन क्षेत्र है। 

वन पंचायतें जिला,   संख्या 

पौड़ी,                      2450 

अल्मोड़ा,                2324 

पिथौरागढ़,             1621 

चमोली,                 1509 

टिहरी,                   1290 

बागेश्वर,                 822 

चंपावत,                 652 

रुद्रप्रयाग,               509 

नैनीताल,               413 

उत्तरकाशी,           406 

देहरादून,               170 

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