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Coronavirus: सिस्टम की इंतेहा, यहां शख्स को जंगल में पेड़ के नीचे होना पड़ा क्वारंटाइन

Coronavirus सिस्टम की इंतेहा ही तो कहेंगे कि एक शख्स को खुद को जंगल में पेड़ के नीचे क्वारंटाइन होना पड़ा। वजह थी कोरोना का खौफ।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Sun, 05 Jul 2020 01:31 PM (IST)Updated: Sun, 05 Jul 2020 09:38 PM (IST)
Coronavirus: सिस्टम की इंतेहा, यहां शख्स को जंगल में पेड़ के नीचे होना पड़ा क्वारंटाइन
Coronavirus: सिस्टम की इंतेहा, यहां शख्स को जंगल में पेड़ के नीचे होना पड़ा क्वारंटाइन

देहरादून, देवेंद्र सती। Coronavirus इसे सिस्टम की इंतेहा ही तो कहेंगे कि एक शख्स को खुद को जंगल में पेड़ के नीचे क्वारंटाइन होना पड़ा। वजह थी कोरोना का खौफ। पौड़ी जिले के कोट ब्लॉक का यह शख्स बकरीपालन कारोबार से जुड़ा है। बकरियां खरीदने के सिलसिले में वह अजमेर गया था। लौटने पर प्रशासन के उसे कांडी गांव के प्राथमिक स्कूल में क्वारंटाइन होने का फरमान सुनाया। वहां पहुंचा तो प्रधान और अन्य लोग उसे दूसरे गांव का बताकर विरोध में आ खड़े हुए।

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इस पर प्रशासनिक अफसरों के फोन घनघनाए पर, हल नहीं निकला। मरता क्या न करता, आखिरकार उसने जंगल की राह पकड़ी और अपनी बकरियों की छानी के निकट एक पेड़ के नीचे अपना बिछोना डाल दिया। सोशल मीडिया पर उसका वीडियो वायरल हुआ तो अनसुना करने वाले अफसरों और जनप्रतिनिधियों की नींद टूटी और दौड़ पड़े उसे लाने जंगल की तरफ। तब जाकर उसे सरकारी क्वारंटाइन हासिल हो पाया।

 

क्वारंटाइन का सच

बड़ी अजीब बात है कि साढ़े तीन महीने बाद भी न तो सरकार क्वारंटाइन का मतलब ठीक से समझा पाई और न ही लोग समझ पाए? यकीन जानिए, यह सोलह आना सच है, यह अलग बात है कि इसे मानने को तैयार कोई भी नहीं होगा। हां, अपनी गलती छिपाने या झेंप मिटाने के लिए दो-चार फिजूल के तर्क जरूर पेश देगें। सूरतेहाल ऐसा लगता है कि क्वारंटाइन शख्स को शायद अपनी जिम्मेदारी का एहसास ही नहीं है। सरकारी तंत्र के तो कहने ही क्या? वह अपने 'आभामंडल' से बाहर निकलने को तैयार ही नहीं दिख रहा है। इसी की  बानगी है कि रुड़की की एक कालोनी में क्वारंटाइन शख्स गुरुग्राम हरियाणा में मिला। उसकी असल लोकेशन का पता भी तब चला, जब उसके न दिखने पर पड़ोसी ने पुलिस को इत्तिला किया। निगरानी करने वाले तो मानो बेसुध थे। क्वारंटाइन का सच समझने के लिए इतना ही काफी है।

कुदरत का खेल

कुदरत के खेल भी निराले हैं। कुदरत मेहरबान हुई तो छप्पर फाड़कर देगी, नहीं तो सूखे की नौबत। पिछली बार बर्फबारी शुरू हुई तो अप्रैल तक थमने का नाम ही नहीं लिया। उत्तराखंड में मानसून की स्थिति भी कहीं घी घना और कहीं मुट्ठी भर चना वाली है।  बागेश्वर में सामान्य से दोगुनी बारिश हो चुकी है तो पिथौरागढ़ में भी यह 16 फीसद ज्यादा बरस चुका है, लेकिन हरिद्वार, पौड़ी, चम्पावत और देहरादून में न के बराबर बारिश हुई है। इन जिलों में 90 फीसद तक कम बारिश हुई है।

पहाड़ की खेती बारिश पर ही निर्भर है, किसानों की निगाहें आसमान ताक रही हैं। यदि बारिश का ऐसा ही रुझान रहा तो किसानों के अरमानों पर पानी फिरना तय है। हालांकि मौसम विभाग के अनुसार आने वाले दिनों में स्थिति सामान्य हो जाएगी। मौसम विभाग कह रहा है तो ठीक ही होगा, उम्मीद पर तो दुनिया कायम है।

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...और अंत में

कोरोना ने जिंदगी को बदल दिया है। चाहे बात परंपराओं की हो या जीवन शैली की। सबसे बड़ा परिवर्तन आया है लोगों में स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशीलता में। सेहत को लेकर सचेत हुए तो अब हाथ धोने का प्रचलन बढ़ गया। मास्क लगाने की भी आदत पड़ गई है। सैनिटाइजर का इस्तेमाल जरूरत बन गया है। यह अच्छा है कि स्वास्थ्य को लेकर लोगों की सोच ज्यादा बेहतर हुई है। लॉकडाउन अवधि में खान-पान और योग को लेकर भी जागरूकता बढ़ी। तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। वह यह कि अब एक दूसरे के घर आना-जाना लगभग बंद हो गया है। घर के बुजुर्गों को अवसाद घेरने लगा है। घर से बाहर न निकलने के कारण बच्चों में चिड़चिड़ापन बढ़ रहा है। जीवन को पटरी पर लाने की तमाम कोशिश के बीच दिल और दिमाग में आशंका घर कर रही है। बाहर खान-पान के प्रचलन पर भी अंकुश लगा है।

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