Teachers Day 2020: यहां नीले आकाश के नीचे चल रही 'गली पाठशाला', मिलिए इन युवाओं से जो संवार रहे गरीब बच्चों का भविष्य
Teachers Day 2020 पहचान स्ट्रीट फाउंडेशन के युवा सदस्यों द्वारा बेसहारा और गरीब बच्चों के लिए चलाई जा रही यह गली पाठशाला देशभर में अपनी अगल पहचान भी बना रही है।
देहरादून, आयुष शर्मा। Teachers Day 2020 शिक्षा के बाजारीकरण के दौर में बड़ी इमारतें और सुविधाएं अच्छे स्कूलों की पहचान बन गई है। मोटी फीस लेने वाले इन स्कूलों में दाखिलों के लिए मारामारी भी मची रहती है, लेकिन इन सब से इतर एक स्कूल ऐसा भी है, जिसकी पाठशाला चार दीवारी और महंगी फीस की बंदिशों को तोड़कर खुले आकाश के नीचे तंग गलियों में चलती है। पहचान स्ट्रीट फाउंडेशन के युवा सदस्यों द्वारा बेसहारा और गरीब बच्चों के लिए चलाई जा रही यह 'गली पाठशाला' देशभर में अपनी अगल पहचान भी बना रही है।
खुले असमान के नीचे बेसहारा और जरूरतमंद बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देने की सोच के साथ आकाश टंडन ने दिल्ली में पहचान स्ट्रीट फाउंडेशन की शुरुआत की थी। आकाश की इस सोच से महज छह सालों में ही देश के चार राज्यों में 200 से ज्यादा छात्र, इंजीनियर, डॉक्टर समेत अन्य पेशे के लोग जुड़ गए हैं, जो इन बच्चों को बिना फीस लिए पढ़ाते हैं। आकाश बताते हैं कि पहचान स्ट्रीट का उद्देश्य बिना कोई बड़ा खर्च किए ऐसे बच्चों को शिक्षा देना है जो सस्ती फीस वाले सरकारी स्कूलों में तक शिक्षा नहीं ले पा रहे, फिर चाहे इसका कारण कुछ भी हो।
बताया कि एक केंद्र खोलने के लिए बच्चे और थोड़ी खुली जगह चाहिए होती है। बताया कि दिल्ली, नोएडा, उत्तराखंड और मध्यप्रदेश में कुल 11 केंद्र तैयार हो गए हैं, जहां पर अलग- अलग पेशे से जुड़े लोग और छात्र साप्ताह अंत में शनिवार और रविवार को कक्षा देते हैं।
सभी केंद्रों को मिलाकर करीब 1200 बच्चे पहचान स्ट्रीट फाउंडेशन के केंद्रों में पढ़ाई कर रहे हैं। देहरादून केंद्र कोऑर्डिनेटर सैम पिल्लई ने बताया कि दून में डालनवाला और भगत सिंह कॉलोनी में बेसहारा और गरीब बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। यहां करीब पौने 200 बच्चे मुफ्त शिक्षा का फायदा ले रहे हैं।
खेल-खेल में सीखो का फंडा
पहचान स्ट्रीट द्वारा गलियों में चलाई जा रही पाठशाला में किताबों से ज्यादा खेल-खेल में सीखो का फंडा बनाया जाता है। आकाश बताते हैं कि बच्चों को केंद्र में शामिल करने से पहले उनकी एक मौखिक परीक्षा ली जाती है, जिसके आधार पर यह तय किया जाता है कि उन्हें कौन से वर्ग के छात्र छात्राओं के साथ बैठाना है। किसी भी बच्चे को नियमित केंद्र पर पढ़ाने से पहले उन्हें खुद की साफ सफाई रखना और घर की साफ सफाई करना भी सिखाया जाता है।
उन्होंने बताया कि एक तय समय के बाद जब छात्र स्कूल जाने के लिए तैयार हो जाते हैं, तो उनके अभिभावकों की सहायता कर उन्हें स्कूल में दाखिल किया जाता है। जिससे वह शिक्षा के साथ स्कूल से प्रमाण पत्र भी हासिल कर सकें। इससे भविष्य में उन्हें कहीं नौकरी करने या उच्च शिक्षा हासिल करने में आसानी रहे।
इन कारणों से बच्चे नहीं पहुंचते स्कूल
सरकार द्वारा गली-मोहल्लों में सरकारी स्कूल खोलने के बावजूद बच्चे स्कूल में तक क्यों नहीं पहुंचते इसके कई कारण पहचान स्ट्रीट फाउंडेशन के सर्वे में सामने आए हैं। देहरादून सेंटर के कोऑर्डिनेटर सैम ने बताया कि मजदूरी करने वाले और रोज कमा कर खाने वाले परिवारों में यह समस्या सबसे ज्यादा देखने को मिली।
इन परिवारों के बच्चे या तो अपने माता पिता के साथ उनके काम में हाथ बटाने के कारण स्कूल नहीं पहुंच रहे या फिर घर में छोटे भाई बहन की देखभाल करने के लिए इन बच्चों को स्कूल जाने की इजाजत नहीं। इसके अलावा जागरूकता की कमी, पढ़ाई के लिए परिवार का उदासीन रवैया परिवार और को कागजी कार्यवाही की समझ न होना भी बच्चों के स्कूल से वंचित होने का बड़ा कारण है।