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दुनिया में संस्कृति एवं संस्कारों का मूल है भारत : चिदानंद सरस्वती महाराज

ऋषिकेश में चल रहे 30वें अंतरराष्ट्रीय योग महोत्सव में परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि दुनिया में संस्कृति एवं संस्कारों का मूल भारत है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 04 Mar 2019 01:41 PM (IST)Updated: Mon, 04 Mar 2019 01:41 PM (IST)
दुनिया में संस्कृति एवं संस्कारों का मूल है भारत : चिदानंद सरस्वती महाराज
दुनिया में संस्कृति एवं संस्कारों का मूल है भारत : चिदानंद सरस्वती महाराज

ऋषिकेश, जेएनएन। परमार्थ निकेतन और पर्यटन मंत्रालय के सहयोग से ऋषिकेश में चल रहे 30वें अंतरराष्ट्रीय योग महोत्सव के तीसरे दिन आयोजित शक्ति पैनल मंच में सामाजिक जड़ताओं एवं कुरीतियों के खिलाफ मुखर होकर आगे आने का संकल्प लिया गया। मंच की अध्यक्षता करते हुए परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि हम सभी को बाल विवाह, मासिक धर्म, लिंगभेद जैसे मुद्दों पर अपनी चुप्पी तोड़नी होगी, तभी एक नए विश्व की परिकल्पना साकार हो सकती है। 

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परमार्थ निकेतन में आयोजित शक्ति पैनल मंच में स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि वैदिक युग से लेकर आज तक भारत दुनिया को संस्कार, संस्कृति एवं शांति की शिक्षा देता आ रहा है। इसमें भारतीय नारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उन्होंने बेटियों का आह्वान किया कि वह बाल विवाह को 'ना' और शिक्षा को 'हां' करें। क्योंकि, बाल विवाह मानवता के खिलाफ अपराध है। महोत्सव की निदेशक साध्वी भगवती सरस्वती ने कहा कि दुनिया का सबसे ताकतवर शब्द 'मां' है।

मां हमेशा शक्ति, प्राण, ऊर्जा, प्रेम, करुणा और ममता को अपने आंचल में समेटकर घर-संसार का ताना-बाना बुनती है। इसलिए मां एवं मातृशक्ति की पीड़ा को समझना और उसके भविष्य के बारे में सोचना बेहद जरूरी है। कहा कि हम दुनिया को बदलने की बात करते हैं, लेकिन इसके लिए हमें बेटियों को जीवन देना होगा, उन्हें शिक्षित करना होगा। 

पर्यावरणविद् डॉ. वंदना शिवा ने कहा कि वह आदिवासी और जनजातियां ही हैं, जिन्होंने वन एवं पर्यावरण को संरक्षित किया। हमारा कार्य बीज की रक्षा करना है, क्योंकि एक बीज ही वृक्ष का निर्माण करता है। योगाचार्य गुरुमुख कौर खालसा ने कहा कि आध्यात्मिक दृष्टि से संसार नर एवं नारी में विभक्त नहीं है। यह तो नियंता का प्रसाद है। इस अवसर पर दक्षिण अमरीका की ओबेला चेरेल, माता मार्टिना ममानी व माता अबेला टोनलिमट, अमरीका की विख्यात योगाचार्य शॉन कॉन व लारा प्लम्ब समेत कई प्रसिद्ध महिला नेत्रियों ने विचार रखे। 

साधना से शरीर के शुद्धिकरण का अभ्यास 

योग महोत्सव में तीसरे दिन 70 से अधिक देशों से आए योग साधकों ने गंगा तट पर योग की विभिन्न विधाओं का अभ्यास किया। शुभारंभ विश्व के विभिन्न देशों से आए आदिवासी और जनजाति के प्रमुखों ने स्वेट लॉज साधना के जरिये शरीर के शुद्धिकरण के साथ किया।

उन्होंने प्रार्थना, गीत-संगीत और ध्यान की प्रक्रिया संपन्न कराई। सुबह केसत्र में अष्टांग योग संस्थान मैसूर से आए योगाचार्य पट्टाभि जोइस और चिकित्सक परमगुरु शरथ जोइस ने योग घाट पर पारंपरिक अष्टांग योग का अभ्यास कराया। चीन के योगाचार्य युजिया ने ताओवादी योग और अमरीका की योगाचार्य कीया मिलर ने योग का अभ्यास कराया।

चीन के प्रमुख योग केंद्र के सह-संस्थापक योगाचार्य मोहन भंडारी ने आसन संरेखण की कला, अमरीका के योगाचार्य टॉमी रोजन ने 'द थ्री ज्वेल्स', योगाचार्य डीन फ्लिन ने 'सोल स्वेट', अमरीका की शॉन कॉर्न ने 'योग का अनाहत प्रवाह', डेविड रॉय ने 'द पॉवर ऑफ ओंम', कोलंबिया से आए स्वामी परमाद्वैति ने 'इनबाउंड योग' व मां ज्ञान सुवेरा ने कॉस्मिक इंटेलिजेंस मेडिटेशन' का अभ्यास कराया। इसके अलावा ध्यान, मुद्रा, वैदिक मंत्र, संस्कृत वाचन, आयुर्वेद, रेकी एवं भारतीय दर्शन की भी कक्षाए चलीं।

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