सीमांत क्षेत्रों में संचार सेवाओं की बदहाल स्थिति कोरोना काल में आनलाइन कक्षाओं पर पड़ रही भारी
पर्वतीय जिलो के नगर अथवा कस्बे सड़कों से लगे हुए हैं वहां इंटरनेट की सुविधा आसानी से प्राप्त हो जाती है लेकिन चमोली रुद्रप्रयाग उत्तरकाशी टिहरी पिथौरागढ़ बागेश्वर और चंपावत आदि के सीमांत और दूरस्थ इलाकों में स्थिति बिल्कुल अलग है।
देहरादून, राज्य ब्यूरो। प्रदेश में कोरोना काल के दौरान विद्यार्थियों की पढ़ाई सुचारु रखने के लिए शुरू की गई आनलाइन कक्षाएं पर्वतीय क्षेत्रों में सफल नहीं हो पा रही हैं। यहां इंटरनेट सुविधा के अभाव के चलते विद्यार्थी और शिक्षक एक दूसरे से कट से गए हैं। यह स्थिति चिंताजनक है। इससे न केवल विद्यार्थियों की शिक्षा प्रभावित हो रही है, बल्कि यह स्थिति पर्वतीय क्षेत्रे में संचार सेवाओं को लेकर सरकार के दावों पर भी सवाल खड़े कर रही है। बच्चों की पढ़ाई बाधित होने से उनके सामने कई समस्या खड़ी हो जाएंगी।
बिना कुछ सीखे-पढ़े ही अगली कक्षा में चले जाना उनके भविष्य के लिए सही नहीं होगा। इसमें दो राय नहीं कि कोरोना संक्रमण ने प्रदेश के हर वर्ग पर असर डाला है। इससे पर्यटन, उद्योग और कारोबार तो प्रभावित हुआ ही, इसका नकारात्मक असर शैक्षणिक गतिविधियों पर भी काफी ज्यादा पड़ा है। प्रदेश सरकार ने कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए स्कूल-कालेज बंद किए हुए हैं। प्रदेश सरकार लगातार आनलाइन पढ़ाई पर जोर दे रही है। विद्यार्थियों के लिए आनलाइन कक्षाएं चलाई जा रही हैं। मकसद यह कि विद्यार्थी शिक्षा से वंचित न रहें और उनका बहुमूल्य साल खराब न हो। निजी और सरकारी स्कूलों में बीते वर्ष से यह व्यवस्था लागू की गई है। मैदानी क्षेत्रों में तो फिर भी बच्चे आनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं, लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों में स्थिति बिल्कुल उलट है। यहां इंटरनेट कनेक्शन की सुविधा न होने के कारण कक्षाएं नहीं चल पा रही हैं। इससे बच्चों को स्कूल छोड़ने पर भी मजबूर होना पड़ रहा है। देखा जाए तो प्रदेश में 13 जिलों में से नौ जिले पर्वतीय और चार मैदानी क्षेत्र में आते हैं।
पर्वतीय जिलो के नगर अथवा कस्बे सड़कों से लगे हुए हैं, वहां इंटरनेट की सुविधा आसानी से प्राप्त हो जाती है, लेकिन चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, टिहरी, पिथौरागढ़, बागेश्वर और चंपावत आदि के सीमांत और दूरस्थ इलाकों में स्थिति बिल्कुल अलग है। यहां अभी तक संचार सेवाएं पटरी पर नहीं आ पाई हैं। यहां की भौगोलिक स्थिति के कारण टावर लगाने में आने वाले खर्च को देखते हुए मोबाइल कंपनियां हाथ पीछे खींचे हुए हैं। इसके साथ ही सीमांत क्षेत्रों में विद्युत आपूर्ति की समस्या भी है। इस कारण मोबाइल अथवा लैपटाप किसी तरह ले भी लिया जाए तो इन्हें चार्ज करने और खराब होने पर मरम्मत कराना भी एक बड़ी चुनौती बन रहा है। सरकार को चाहिए कि वह सीमांत क्षेत्रों में संचार व्यवस्था को दुरुस्त करने की दिशा में त्वरित कदम बढ़ाए, ताकि वहां के विद्यार्थियों को भी पूरी तरह आनलाइन कक्षाओं का लाभ मिल सके। नहीं तो वे मैदानी इलाकों के छात्रों से पिछड़ जाएंगे।
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