Pinddan: ब्रह्मकपाल तीर्थ में एक हजार श्रद्धालु करा चुके पिंडदान, जानिए क्या है यहां की मान्यता
Pinddan पितृपक्ष के दौरान बदरीनाथ धाम स्थित ब्रह्मकपाल तीर्थ में एक हजार के आसपास श्रद्धालु अपने पितरों का तर्पण और पिंडदान करा चुके हैं।
गोपेश्वर (चमोली), जेएनएन। Pinddan पितृपक्ष के दौरान बदरीनाथ धाम स्थित ब्रह्मकपाल तीर्थ में एक हजार के आसपास श्रद्धालु अपने पितरों का तर्पण और पिंडदान करा चुके हैं। इनमें उत्तराखंड के अलावा दिल्ली, पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश के श्रद्धालु शामिल हैं। ब्रह्मकपाल तीर्थ में पितृपक्ष के दौरान तर्पण व पिंडदान का विशिष्ट महत्व है। यहां अलकनंदा नदी के तट पर मौजूद ब्रह्माजी के कपाल रूपी शिला पर पिंडदान किया जाता है।
मान्यता है कि विश्व में एकमात्र श्री बदरीनाथ धाम ही ऐसा स्थान है, जहां ब्रह्मकपाल तीर्थ में पिंडदान व तर्पण करने से पितर दोबारा जीवन-मरण के बंधन से मुक्त हो जाते हैं। साथ ही परिजनों को भी पितृदोष व पितृ ऋण से मुक्ति मिल जाती है। इसीलिए ब्रह्मकपाल को पितरों की मोक्ष प्राप्ति का सर्वोच्च तीर्थ (महातीर्थ) कहा गया है। पुराणों में उल्लेख है कि ब्रह्मकपाल में पिंडदान करने के बाद फिर कहीं पिंडदान की जरूरत नहीं रह जाती।
'स्कंद पुराण' में कहा गया है कि पिंडदान के लिए गया, पुष्कर, हरिद्वार, प्रयागराज व काशी भी श्रेयस्कर हैं, लेकिन भू-वैकुंठ बदरीनाथ धाम स्थित ब्रह्मकपाल में किया गया पिंडदान इन सबसे आठ गुणा ज्यादा फलदायी है। यह भी मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान ब्रह्मकपाल में पितरों का तर्पण करने से वंश वृद्धि होती है।
लॉकडाउन के दौरान बदरीनाथ धाम के तीर्थ पुरोहितों ने कोरोना संक्रमण को देखते हुए यात्रा शुरू करने का विरोध किया था। यात्रा शुरू हुई तो उन्होंने विरोध स्वरूप ब्रह्मकपाल में तर्पण व पिंडदान का कार्य बंद रखा। हालांकि, श्रद्धालुओं की भावनाएं आहत न हों, इसलिए पितृपक्ष के दौरान यहां तर्पण व पिंडदान कराया जा रहा है।
ब्रह्मकपाल तीर्थ पुरोहित संघ के अध्यक्ष उमानंद सती ने बताया कि पितृपक्ष के दौरान अब तक लगभग एक हजार श्रद्धालु यहां पहुंचकर अपने पितरों का तर्पण व पिंडदान करवा चुके हैं। बताया कि भगवान बदरी विशाल को लगने वाले भोग के चावल से पिंड भी यहीं तैयार किए जाते हैं। इसके बाद इन्हें ब्रह्माजी को अर्पित किया जाता है।
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यहां शिव को इस पाप से मिली थी मुक्ति
मान्यता है कि ब्रह्माजी जब स्वयं के द्वारा उत्पन्न शतरूपा (सरस्वती) के सौंदर्य पर रीझ गए तो शिव ने त्रिशूल से उनका पांचवां सिर धड़ से अलग कर दिया। ब्रह्मा का यह सिर शिव के त्रिशूल पर चिपक गया और उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप भी लगा। इसके निवारण को शिव आर्यावर्त के अनेक तीर्थ स्थलों पर गए, लेकिन उन्हें ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति नहीं मिली। सो, वह अपने धाम कैलास लौटने लगे। इसी दौरान बद्रिकाश्रम के पास अलकनंदा नदी में स्नान करने के बाद जब वह बदरीनाथ धाम की ओर बढ़ रहे थे तो धाम से दो सौ मीटर पहले अचानक एक चमत्कार हुआ। ब्रह्माजी का पांचवां सिर उनके त्रिशूल से वहीं गिर गया। जिस स्थान पर वह सिर गिरा, वही स्थान ब्रह्मकपाल कहलाया और इसी स्थान पर शिव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली।