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एनएसए अजीत डोभाल बोले, पेड़ पौधों की रक्षा के लिए सभी को आना चाहिए आगे

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल ने आज शनिवार प्रात काल मां गंगा का दर्शन कर परमार्थ प्रांगण में प्रकृति रक्षा का संदेश देते हुए कहा कि पेड़ पौधों की रक्षा के लिये सभी को आगे आना चाहिये।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sun, 25 Oct 2020 02:46 PM (IST)Updated: Sun, 25 Oct 2020 11:29 PM (IST)
एनएसए अजीत डोभाल बोले, पेड़ पौधों की रक्षा के लिए सभी को आना चाहिए आगे
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने कहा कि पेड़ पौधों की रक्षा के लिए सभी को आगे आना चाहिए।

ऋषिकेश, जेएनएन। विजयादशमी के पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने देशवासियों को शुभकामनायें देते हुए कहा कि दशहरा शौर्य से शान्ति की ओर बढ़ने का पर्व है। प्रभु श्री राम और मां दुर्गा ने शान्ति की स्थापना के लिए असुर शक्तियों का शौर्य से सामना कर विजय प्राप्त की थी। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने आज प्रात:काल मां गंगा का दर्शन कर परमार्थ प्रांगण में प्रकृति रक्षा का संदेश देते हुए कहा कि पेड़ पौधों की रक्षा के लिए सभी को आगे आना चाहिए। उन्होंने कहा कि मुझे बड़ी प्रसन्नता है कि परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमार पूज्य स्वामी चिदानंद सरस्वती महाराज के में आध्यात्मिक गतिविधियों के साथ पर्यावरण संरक्षण के विषय में भी उत्कृष्ट कार्य कर रहे हैं। परमार्थ निकेतन के पवित्र वातावरण में हो रहे प्रातःकालीन यज्ञ और प्रार्थना का दर्शन करते हुए श्री डोभाल के परिवार और उनकी पूरी टीम ने विदा ली। 

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एनएसए अजीत डोभाल ने कहा कि मेरा परमार्थ का प्रवास आनंद और ऊर्जा से युक्त रहा। परमार्थ निकेतन वास्तव में स्वर्ग है। यहां पर स्थित अति प्राचीन पीपल, वट और पाकड़ के विशाल वृक्ष पंचवटी की याद दिलाते है। ये विशाल वृक्ष ही मुझे तो तपस्पी लगते हैं, मानो सदियों से यहां तपस्यारत हों, इन वृक्षों की सघन छांव में बैठकर यज्ञ और प्रार्थना करना वास्वत में एक सुखद और अलौकिक अनुभव का एहसास कराता है। 

स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि दशहरा पर्व को विजयादशमी या आयुध-पूजा आदि विभिन्न नामों ने जाना जाना जाता है, परन्तु संदेश एक ही है सत्य की असत्य पर विजय। हमारे शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि भगवान श्री राम ने इसी दिन रावण का वध किया था। 

दशहरा पर्व को चाहे हम भगवान श्री राम की रावण पर विजय के रूप में या मां दुर्गा की महिषासुर पर विजय के रूप में मनायें, दोनों ही रूपों में यह सत्य की असत्य पर विजय, शक्ति की आराधना और शस्त्रों के पूजन का ही पर्व है। भारतीय संस्कृति हमेशा से ही वीरता और शौर्य की उपासक रही है।


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