आसमान में बादल फसल के लिए नहीं है अच्छे संकेत, जानिए क्या कहते हैं कृषि विज्ञानी
आजकल मौसम का मिजाज रह रहकर बदल रहा है। कभी बूंदाबांदी तो कभी कई दिन तक सूर्यदेव के दर्शन नहीं हो रहे हैं। कृषि विज्ञानी मानते हैं कि लंबे समय तक आसमान में बादलों का डेरा फसल के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
विकासनगर, जेएनएन। आजकल मौसम का मिजाज रह रहकर बदल रहा है। कभी बूंदाबांदी तो कभी कई दिन तक सूर्यदेव के दर्शन नहीं हो रहे हैं। कृषि विज्ञानी मानते हैं कि लंबे समय तक आसमान में बादलों का डेरा फसल के लिए अच्छा संकेत नहीं है। खेती बाड़ी में मौसम का बहुत बड़ा असर पड़ता है। चाहे किसी भी क्षेत्र की कोई भी फसल हो उन सभी में अच्छी जलवायु का होना अति आवश्यक रहता है।
फसलों की बुवाई व बढ़वार के समय और फूल-फल बनने की अवस्था में एक विशेष प्रकार की जलवायु की आवश्यकता रहती है। जिसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि यदि फसल को उपयुक्त मौसम मिले हो तो निश्चित ही अच्छा उत्पादन प्राप्त होगा। कृषि विज्ञान केंद्र के विज्ञानी डॉ. संजय सिंह बताते हैं कि उपयुक्त जलवायु रहने पर फसल का जमाव व स्थापन भली प्रकार हो जाता है। मुख्य रूप से निराई गुड़ाई खाद व उर्वरक उपयोग सही ढंग से एवं सही समय पर हो जाते हैं जिससे फसल की बढ़वार बहुत ही उत्तम होती है। इसके अलावा प्रति इकाई क्षेत्र में अच्छी उपज प्राप्त होने की संभावना बढ़ जाती है। यहीं पर पशुधन की अगर बात करें तो उन्हें भी मौसम के प्रति काफी सजग रहने की आवश्यकता होती है। सर्दी के मौसम में पशुओं को हरे चारे के रूप में बरसीम व जई इत्यादि का चारा, धान की पुआल व गन्ने का अगोला प्रयोग किया जाता है।
गोभी व टमाटर की फसल की रोपाई का कार्य उचित मौसम में
सब्जी उत्पादन में मुख्य रूप से गोभी व टमाटर की फसल की रोपाई का कार्य उचित मौसम की अवस्था में ही किया जा सकता है। यहीं पर खड़ी फसल चाहे वह आलू या सरसों की हो, इन सभी फसलों को एक विशेष प्रकार के अच्छे मौसम की ही आवश्यकता रहती है, यदि किसी समय मौसम विपरीत रहे, जिसमें बिना मौसम के बरसात हो जाए या आसमान में बादल बने रहें या अत्यधिक सूखा मौसम भी काफी नुकसान का कारण बन जाता है। यहां पर बहुत बड़े क्षेत्र में गेहूं की बुवाई का कार्य चल रहा है जिसमें खेत की तैयारी से लेकर और बुवाई तक के कार्य करने में मौसम का साफ रहना बहुत ही आवश्यक है। यदि मौसम अनुकूल नहीं होगा तो बुआई में देरी हो जाती है। खेत को तैयार करने पर आने वाली लागत बढ़ जाती है। सामान्य तौर पर मैदानी व तराई क्षेत्रों में गेहूं की खेती को व्यवसायिक स्तर पर किया जाता है। अत: खरीफ की फसलों की कटाई के बाद किसान गेहूं की बुवाई के लिए उचित नमी बनाए रखने के लिए इसमें प्लेवा करते हैं।
इस बार समय से बुवाई किए जाने पर पिछले सप्ताह हुई बारिश से लगभग आठ से 10 दिन का समय बुवाई में पिछड़ गया है। अभी मौसम में फिर बादल व बूंदाबांदी की स्थिति बनी हुई है। इन परिस्थितियों में जो खेत तैयार हो चुके हैं, उनमें बुवाई नहीं की जा रही है और जो खेत अभी तैयार किए जाने थे, उनकी तैयारी नहीं हो पा रही है। ऐसी परिस्थिति में गेहूं की खेती का नुकसान संभव है।
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बादलों के कारण गुणवत्ता हो जाती है प्रभावित
कृषि विज्ञानी डॉ. संजय सिंह बताते हैं कि यदि आसमान में बादलों का डेरा कई दिन तक बना रहे तो रोपाई किया जाना संभव नहीं हो पाता, जबकि पौधशाला में नर्सरी की अवधि बढ़ जाने के कारण उसकी गुणवत्ता में कमी हो जाती है। आलू व सरसों की फसल में मौसम साफ रहने की वजह से रात्रि का तापमान बढ़ जाता है तथा मौसम में नमी पर्याप्त रहने के कारण कुछ विशेष प्रकार के फफूंद एवं कीट का प्रकोप फसलों में होने लगता है। आलू में अंग मारी व सरसों में माहू कीट का प्रकोप भी बढ़ने लगता है।
मटर की फसल पर मौसम का पड़ता है ज्यादा असर
आजकल जौनसार-बावर में मटर की फसल की बुआई चल रही है, ऐसे में यदि सूर्यदेव के कई दिन तक दर्शन न हों तो मटर वाली फसल के ऊपर काफी हानिकारक प्रभाव पड़ता है। जब बादल बने रहते हैं या हल्की बूंदाबांदी होती है तो नमी की अधिकता व तापक्रम बढ़ने के कारण फफूंद जनित बीमारियां फसल की बढ़वार को रोक देती है। पत्तियां सफेद होने के कारण पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया नहीं कर पाते, जिससे उत्पादन गिर जाता है। फसल को बचाए रखने के लिए उचित पोषण का ध्यान अवश्य रखा जाए।
सर्दियों के दिन में पशुओं की करें ज्यादा देखभाल
कई दिन तक आसमान में बादलों का डेरा होने की दशा में पशुपालक गाय भैंस व अन्य दुधारू जानवरों के लिए अच्छे चारे का प्रबंधन रखें। रात को मवेशियों को बांधने के लिए शुष्क स्थान का चयन करें। कोशिश करें कि उनके बैठने के स्थान सूखा ही हो।
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