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अब वीर माधो सिंह तकनीकी विवि के नाम से जाना जाएगा यूटीयू

उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय अब वीर माधो सिंह तकनीकी विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाएगा। सीएम रावत ने ये घोषणा की है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Sat, 17 Mar 2018 06:20 PM (IST)Updated: Sun, 18 Mar 2018 10:43 AM (IST)
अब वीर माधो सिंह तकनीकी विवि के नाम से जाना जाएगा यूटीयू
अब वीर माधो सिंह तकनीकी विवि के नाम से जाना जाएगा यूटीयू

देहरादून, [जेएनएन]: उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय (यूटीयू) का नाम अब 'वीर माधो सिंह तकनीकी विश्वविद्यालय' होगा। यह घोषणा मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने की। उत्तराखंड तकनीकी विवि में उद्योग जगत के साथ परस्पर सहयोग कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि मलेथा निवासी वीर माधो सिंह भंडारी को यह सच्ची श्रद्धांजलि है। 

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कहा कि उन्होंने करीब 400 साल पहले उत्तराखंड में खेती की अहमियत समझ ली थी। उनकी बनाई गई गूल के पानी से मलेथा में आज भी हरियाली है। उन्होंने पूर्व भाजपा सरकार में बतौर कृषि मंत्री मलेथा में वीर माधो सिंह की मूर्ति का अनावरण किया था। कहा कि तकनीकी विवि के छात्रों का औद्योगिक इकाइयों के साथ संवाद स्थापित करना जरूरी है। उद्योगों की मांग को समझाना आज समय की मांग है। कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कौशल विकास पर अधिक बल दिया है। वर्ष 2020 तक प्रदेश में एक लाख युवाओं को स्किल्ड बनाने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए राज्य में कौशल विकास मंत्रालय का गठन किया गया है। 

उन्होंने कहा कि तकनीकी विवि के छात्र एवं शिक्षक आसपास के औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान व प्रौद्योगिकी संस्थानों का भ्रमण कर अपने तकनीकी ज्ञान को बांट सकते हैं। मुख्यमंत्री ने तकनीकी विवि के नवीन परिसर का लोकार्पण भी किया। इस दौरान छात्रों ने विभिन्न मॉडलों की प्रदर्शनी भी लगाई गई। जिसका अवलोकन मुख्यमंत्री ने किया। इस मौके पर उच्च शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत, सहसपुर विधायक सहदेव पुंडीर भी मौजूद रहे। 

वीर माधो सिंह को लेकर प्रचलित कहानी

लगभग 400 साल पहले पहाड़ का सीना चीरकर नदी का पानी अपने गांव तक लेकर आने वाले योद्धा माधोसिंह भंडारी गढ़वाल की लोक कथाओं में आज भी जीवित हैं। माधोसिंह का जन्म मलेथा गांव में हुआ था। मलेथा देवप्रयाग और श्रीनगर के बीच बसा है। 16वीं शताब्दी के आसपास माधो सिंह श्रीनगर दरबार से अपने गांव पहुंचे। भूख लगने पर उन्होंने अपनी भाभी से खाना देने को कहा। भाभी ने उन्हें रुखा-सूखा खाना परोस दिया। जब माधोसिंह ने कारण पूछा, तो भाभी ने कहा कि जब गांव में पानी ही नहीं है तो सब्जियां और अनाज कैसे पैदा होंगे? माधोसिंह को यह बात चुभ गई। 

मलेथा गांव के दाहिनी ओर चंद्रभागा नदी बहती थी। चंद्रभागा का पानी गांव तक लाना मुश्किल था, क्योंकि बीच में पहाड़ था। माधोसिंह ने इसी पहाड़ के सीने में 350 मीटर लंबी सुरंग बनाकर पानी गांव लाने की ठानी। कुछ वर्षों बाद माधोसिंह की मेहनत रंग लाई और सुरंग बनकर तैयार हो गई। यह सुरंग आज भी इंजीनियरिंग का अद्भुत नमूना है। लोक कथा में इस सुरंग से माधोसिंह के बेटे गजेसिंह का नाम भी जोड़ा जाता है। 

कहते हैं, सुरंग तो बनकर तैयार हो गई थी, लेकिन काफी प्रयास के बावजूद चंद्रभागा का पानी उसमें नहीं पहुंचा। रात को माधोसिंह के सपने में कुलदेवी प्रकट हुई और कहा कि सुरंग में पानी तभी आएगा, जब वह अपने इकलौते बेटे गजे सिंह की बलि देंगे। जिसके बाद माधोसिंह ने अपने पुत्र गजेसिंह की बलि चढ़ा दी। कहते हैं, उसके बाद पानी सुरंग में बहने लगा और गांव में हरियाली आ गई। 

ये छात्र हुए पुरस्कृत

मुख्यमंत्री ने आइआइएम, आइआइटी, एनआइटी के लिए चयनित 15 छात्र-छात्राओं को 50 हजार रुपये का चेक देकर सम्मानित किया। पुरस्कार प्राप्त करने वालों में सिद्धार्थ अग्रवाल, प्रांचल भट्ट, हरप्रीत कौर, नकुल कोठारी, सविता वोरा, गौतम गोयल, सुमन्य शर्मा, एससी बिश्नोई, प्रिंसी बरसाल, सलोनी गौतम, ऋषभ कुमार भारद्वाज, आदित्य बिष्ट, तोसिव वाष्णेय, पवन गौड़, शुभम उनियाल शामिल रहे। 

इन विशेषज्ञों ने दी जानकारी 

'यूनिवर्सिटी ऐकेडिमिया-इंडस्ट्री फोरम' का शुभारंभ मुख्यमंत्री ने किया। इस विषय पर कुलपति यूटीयू प्रो. यूएस रावत, कुलसचिव डॉ. अनीता रावत, मुख्यमंत्री के तकनीकी सलाहकार डॉ. नरेंद्र सिंह, सहायक ड्रग्स कंटोलर इंडिया, डॉ. नरेश  शर्मा, उद्योगपति डॉ. अशोक कुमार विंडलास, प्रो. आर तिवारी आदि ने अपने विचार रखे। 

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