उत्तराखंड में अब अब प्रवासियों पर भी सियासी दांवपेंच, पढ़िए पूरी खबर
सरकार ने प्रवासियों को अपने गृह राज्य लौटने की इजाजत दे दी। प्रवासियों के आते ही राज्य में कोरोना पॉजिटिव मामलों में तेजी से इजाफा हुआ। फिर क्या था इस पर सियासत शुरू हो गई।
देहरादून, विकास धूलिया। लॉकडाउन तीन में सरकार ने प्रवासियों को अपने गृह राज्य लौटने की इजाजत दे दी। उत्तराखंड में भी दो लाख से ज्यादा प्रवासियों ने वापसी की इच्छा जताई और अब तक लगभग एक लाख लोग लौट भी चुके हैं। प्रवासियों के लिए तो यह बड़ी राहत रही, मगर चिंता की बात यह कि इससे राज्य में कोरोना पॉजिटिव मामलों में तेजी से इजाफा देखने को मिल रहा है। जब बात इतनी बड़ी संख्या में लोगों की है तो भला इस पर सियासत कैसे न हो। लिहाजा विपक्ष कांग्रेस ने मुददे तलाश हमले शुरू कर दिए। विडंबना यह कि पहले रेल किराया चुकाने की बात कहने वाली कांग्रेस ने बाद में यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि यह तो सरकार की जिम्मेदारी है। अब सत्तारूढ़ भाजपा ने प्रवासियों की मदद के लिए अपने विस्तृत नेटवर्क का इस्तेमाल शुरू कर दिया है तो फिलहाल कांग्रेस को इसका जवाब नहीं सूझ रहा है।
कोरोना संक्रमण और स्कूबा डाइविंग मास्क
कोविड-19, एक ऐसी तेजी से फैलने वाली संक्रामक बीमारी, जिसके बारे में चंद महीने पहले तक किसी ने सुना और सोचा तक नहीं था। यही वजह है कि इससे बचाव के लिए खास और आम से ऐसे सुझाव मिल रहे हैं कि आप चौंक जाएंगे। अपने पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने भी एक नायाब विचार पेश किया है। महाराज ने कहा कि कोरोना से बचने के लिए स्कूबा डाइविंग में इस्तेमाल होने वाले मास्क जैसे मास्क बनाए जाने चाहिए। महाराज पर्यटन मंत्री हैं और कोरोना का सबसे अधिक असर इसी इंडस्ट्री पर पड़ा है तो उनका चिंतित होना भी लाजिमी है। उनका सुझाव इस तरह के मास्क उत्तराखंड आने वाले पर्यटकों के संदर्भ में था। अब भले ही इसे लेकर आपका रिएक्शन कुछ भी हो, मंत्रीजी तो पूरी तरह गंभीर हैं। उन्होंने तो प्रधानमंत्री के साथ ही डीआरडीओ को ऐसे मास्क तैयार करने के लिए चिट्ठी तक भेज दी है।
गले पर नहीं, मुंह पर लगाओ
सरकारी या निजी संपत्ति पर पोस्टर चिपकाना, सार्वजनिक स्थलों पर धुआं उड़ाना, राह चलते थूकना, ये सभी नियम कानून की शक्ल में अपनी देवभूमि में भी अस्तित्व में हैं। अब यदि आपसे पूछा जाए कि कभी इनका पालन होता देखा तो शायद आप बगलें झांकने को विवश हो जाएंगे। अब कोरोना काल में इस फेहरिस्त में एक और कायदा शुमार हो गया है। और यह है मुंह पर मास्क लगाने की अनिवार्यता। अभी एक रोज पहले ही सीएम साहब ने अफसरों को फरमान जारी किया कि जो कोई भी तरीके से मुंह पर मास्क न लगाए, उस पर ट्रेफिक नियमों के उल्लंघन की तर्ज पर जुर्माना ठोका जाए। साथ ही उसे सोशल सॢवस का दंड देकर गलती का भी अहसास कराया जाए। बहुत बढ़िया उद्देश्य से उठाया गया स्वागतयोग्य कदम, मगर मुख्यमंत्री जी, यह भी तो सुनिश्चित कीजिए कि यह भी जेब भरने का जरिया ही बनकर न रह जाए।
आखिर क्यों हो रहा अब मोहभंग
इस हफ्ते अचानक एक दबंग, एफीशिएंट आइएएस अफसर ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का फैसला लेकर सबको चौंका दिया। डॉ. भूपिंदर कौर औलख राज्य की अच्छी और कार्यकुशल अफसरों में गिनी जाती रही हैं। भारतीय प्रशासनिक सेवा की 1997 बैच की अधिकारी डॉ. औलख ने अब विश्व स्वास्थ्य संगठन को अपनी सेवाएं देने का फैसला किया है। यह उनका निर्णय है, जिस पर सवाल उठाना वाजिब नहीं।
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अलबत्ता, पिछले कुछ सालों में तीन वरिष्ठ आइएएस अफसरों के वीआरएस लेने से सिस्टम पर अंगुली तो उठती ही है। ऐसा क्या है जो देश के युवाओं के सपनों की मंजिल माने जाने वाली प्रशासनिक सेवा को ही अफसर तिलांजलि दे रहे हैं। साफ है कि कहीं न कहीं तो कुछ चूक हो रही है। अभी डॉ. औलख के वीआरएस पर चर्चा थमी भी नहीं थी कि एक सीनियर आइपीएस के भी वीआरएस की अर्जी लगाने की जानकारी सामने आई है, कुछ तो गडबड़ है।
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