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फिर नए विवाद में घिरा आयुर्वेद विश्वविद्यालय, जानिए

उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय एक नए विवाद में घिर गया है और इसबार विवाद की वजह है बिना संबद्धता कॉलेजों को सीट आवंटित करना।

By Edited By: Published: Tue, 25 Sep 2018 03:00 AM (IST)Updated: Wed, 26 Sep 2018 08:51 AM (IST)
फिर नए विवाद में घिरा आयुर्वेद विश्वविद्यालय, जानिए
फिर नए विवाद में घिरा आयुर्वेद विश्वविद्यालय, जानिए

देहरादून, [जेएनएन]: उत्तराखंड आयुर्वेद विवि आए दिन नए विवादों में घिरा नजर आता है। विवि में परीक्षाओं में गड़बड़ी, कभी नियुक्ति में झोल और कभी कम संसाधनों को लेकर छात्रों का हंगामा विवाद का कारण बनता है। अब नया विवाद बिना संबद्धता कॉलेजों को सीट आवंटित करने का है। विवि ने संस्थानों को सत्र 2018-19 की संबद्धता दिए बगैर ही काउंसलिंग के जरिए छात्रों को सीट आवंटित कर दी। 

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उत्तराखंड आयुर्वेद विवि में निजाम बदलने से विवि की कार्यपद्धति में न सुधार आया और न ही बदलाव देखने को मिला। स्थिति यह है कि इस बार विवि से संबद्ध निजी संस्थानों को बिना सत्र 2018-19 की संबद्धता प्रदान किए ही नए छात्रों को सीट आवंटित कर दी। विश्वविद्यालय ने खुद से संबद्ध निजी आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक और यूनानी चिकित्सा महाविद्यालयों को मौजूदा सत्र की संबद्धता प्रदान किए बिना ही बीएएमएस, बीएचएमएस और बीयूएमएस पाठ्यक्रमों के लिए छात्रों को सीट आवंटित कर दी। जबकि, निजी संस्थानों में मानकों का घोर अभाव है। 

बीते सत्र में भी नियमों की अनदेखी

पिछले सत्र की बात करें तो मीडिया में खबर आने के बाद काउंसलिंग की तिथि बढ़ाकर विवि ने आनन-फानन में संस्थानों का निरीक्षण कराया था। उस वक्त भी विश्वविद्यालय प्रशासन ने जांच समिति गठित कर संस्थाओं की जांच की खानापूर्ति कर सीटें आवंटित कर दी। लेकिन, उसका कार्यसमिति से अनुमोदन लेने के बावजूद संस्थाओं को आज तक आधिकारिक संबद्धता पत्र निर्गत नहीं कर सका। 

इस बार तो उसने खानापूर्ति करना भी उचित नहीं समझा। विवि में बार-बार निजाम बदलने से भी व्यवस्थाएं पटरी पर नहीं आई। हर साल संबद्धता लेना है अनिवार्य विश्वविद्यालय अनुदान आयोग रेगुलेशन 2009 और उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय परिनियमावली 2015 के अनुसार व्यावसायिक संस्थाओं को वर्ष दर वर्ष विश्वविद्यालय से संबद्धता प्राप्त करना आवश्यक होता है। जो कि देश के सभी विश्वविद्यालयों से संबद्ध संस्थाओं के साथ-साथ यहा भी 2014-15 से ही लागू है। 

इसके लिए परिनियमावली 2015 में इसका स्पष्ट प्रावधान भी बनाया गया है। ऐसे प्रदान की जाती है संबद्धता नियमानुसार हर साल संबद्धता प्राप्त करने के लिए संस्थाओं को एक लाख का बैंक ड्राफ्ट संलग्न कर संबद्धता का प्रस्ताव विश्वविद्यालय को प्रेषित करना होता है। जिसके बाद विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा तीन सदस्यीय निरीक्षण मंडल गठित किया जाता है, जो कि संस्थाओं में जाकर सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन (सीसीआइएम) और सेंट्रल काउंसिल ऑफ होम्योपैथी (सीसीएच) नई दिल्ली की ओर से निर्धारित उपलब्ध मानकों की जाच करता है। 

जिसमें खासतौर पर निर्धारित शिक्षक, चिकित्सक, पैरामेडिकल एवं शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के साथ-साथ क्लासरूम, पुस्तकालय, प्रयोगशालाओं और ओपीडी व आइपीडी में उपलब्ध मरीजों और संसाधनों की उपलब्धता की विस्तृत रिपोर्ट विवि को प्रेषित की जाती है। जिसे विवि के विशेषज्ञों की ओर से रिपोर्ट में उपलब्ध निर्धारित मानकों का परीक्षण करने के बाद निरीक्षण आख्या कुलसचिव को सौंपी जाती है। जिसके बाद कुलपति से अनुशंसा के बाद कार्यसमिति की बैठक में रखा जाता है। 

कार्यसमिति के अनुमोदन के बाद विवि से संबद्ध संस्थाओं को एक सत्र की अस्थायी संबद्धता प्रदान की जाती है। इसके बाद काउंसिलिंग के माध्यम से संस्थाओं को सीट आवंटित की जाती हैं। विवि के कुलसचिव डॉ. राजेश कुमार का कहना है कि सीसीआइएम व सीसीएच ने संस्थानों को सशर्त मान्यता दी है। इसके तहत विवि की ओर से उन्हें सशर्त अनुमति दी गई है।

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