Move to Jagran APP

यहां गुलदार से बचने को लगाना पड़ा है Night Curfew, पर ये समस्या का समाधान तो नहीं

Night Curfew पिथौरागढ़ में पहली मर्तबा गुलदार के आतंक के मद्देनजर रात्रि कर्फ्यू लगाया गया मगर सवाल ये है कि क्या यह समस्या का स्थायी समाधान है। उत्तराखंड को अस्तित्व में आए 21 साल होने को हैं मगर ये समस्या जस की तस है।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Sat, 02 Oct 2021 03:35 PM (IST)Updated: Sat, 02 Oct 2021 03:35 PM (IST)
यहां गुलदार से बचने को लगाना पड़ा है Night Curfew, पर ये समस्या का समाधान तो नहीं
यहां गुलदार से बचने को लगाना पड़ा है Night Curfew, पर ये समस्या का समाधान तो नहीं।

केदार दत्त, देहरादून। Night Curfew पहाड़ में जहां पहाड़ जैसी समस्याएं मुंहबाए खड़ी हैं, वहीं जंगली जानवरों, खासकर गुलदारों के खौफ ने यहां की दिनचर्या को गहरे तक प्रभावित किया है। आलम यह है कि न घर-आंगन सुरक्षित हैं और न खेत-खलिहान। शाम ढलते ही गांवों में रहने वाली रौनक को भी गुलदारों के आतंक ने छीन लिया है। राज्य में वन्यजीवों के हर साल होने वाले हमलों में 80 फीसद से ज्यादा गुलदारों के हमले होते हैं। अब तो हालत ये हो चली है कि गुलदार से बचने के लिए रात्रि कर्फ्यू लगाना पड़ रहा है। पिथौरागढ़ में पहली मर्तबा गुलदार के आतंक के मद्देनजर रात्रि कर्फ्यू लगाया गया, मगर सवाल ये है कि क्या यह समस्या का स्थायी समाधान है। उत्तराखंड को अस्तित्व में आए 21 साल होने को हैं, मगर ये समस्या जस की तस है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि लोग आखिरकार कब तक गुलदार का वार सहते रहेंगे।

loksabha election banner

उत्तराखंड में न गैंडे आए न सोन

ज्यादा वक्त नहीं बीता, जब उत्तराखंड में वन्यजीवों के कुनबे में गैंडे और वाइल्ड डाग (सोन) को शामिल करने का निर्णय लिया गया। असल में एक दौर में कार्बेट टाइगर रिजर्व में गैंडों का संसार बसता था, मगर बाद में ये विलुप्त हो गए। इसी तरह राजाजी टाइगर रिजर्व में कभी सोन डाग का बसेरा था। इसे देखते हुए इन्हें फिर से यहां बसाने संबंधी प्रस्ताव पर राज्य वन्यजीव बोर्ड ने भी मुहर लगाई थी। इसके बाद असम समेत अन्य राज्यों से गैंडे व सोन डाग के संबंध में बातचीत हुई, मगर बाद में यह मसला ठंडे बस्ते में चला गया। अब तो पिछले दो साल से तो इस बारे में कोई बात तक नहीं हो रही। हालांकि, इसके पीछे कोरानाकाल के कारण कदम आगे न बढ़ पाने का तर्क दिया जा रहा, लेकिन जैसी तस्वीर है उससे तो यही लगता है कि विभाग इसे टालने के मूड में है।

वन विभाग की मुहिम को लगा झटका

सीमांत चमोली जिले का जोशीमठ क्षेत्र, जहां लंबे समय से भालुओं की सक्रियता ने नींद उड़ाई है। इसे देखते हुए महकमे ने भालुओं को पकड़कर उन पर रेडियो कालर लगाने की ठानी, ताकि इनके व्यवहार का अध्ययन हो सके। इस बीच भालू के हमले बढ़े तो विभाग ने इसे मारने के आदेश जारी किए, मगर प्राथमिकता उसे पकडऩे की रही। इसके लिए जाल बिछाया, लेकिन नियति को यह मंजूर नहीं था। भालू को पकडऩे के लिए उसे ट्रेंकुलाइज करने की कोशिश हुई। जब उसकी तलाश की जा रही थी, तभी भालू ने वनकर्मियों पर हमला कर दिया और उन्हें आत्मरक्षा में गोली चलानी पड़ी। नतीजतन भालू ढेर हो गया। ऐसे में भालू के व्यवहार का अध्ययन करने की मुहिम को झटका लगा। हालांकि, विभाग ने अभी हार नहीं मानी है। क्षेत्र में दूसरे भालू को रेडियो कालर करने के लिए प्रयास जारी हैं, देखते हैं इसमें कब सफलता मिलती है।

अब और गति पकड़ेगा ईको विकास कार्यक्रम

हिमालयी क्षेत्र वन्य पादप और प्राणियों के प्रवास, विविधता के लिहाज से अत्यंत समृद्ध है। मध्य हिमालयी राज्य उत्तराखंड को देखें तो यहां समुद्र तल से 7800 से अधिक ऊंचाई तक के क्षेत्र होने के कारण पादप और जीव प्रजातियों के अनेक पारिस्थितिक समूह मौजूद हैं। भौगोलिक विविधता के कारण यह क्षेत्र जैव विविधता के लिहाज से विपुल भंडार है। इसके संरक्षण के उद्देश्य से ही कई इलाकों को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है।

यह भी पढ़ें- दूनघाटी में भी बसती है खौफ की चौकड़ी, इनके काटने से ही देश में होती हैं सबसे ज्यादा मौतें; आप भी जानिए

इन संरक्षित क्षेत्रों में छह राष्ट्रीय उद्यान, सात अभयारण्य और चार कंजर्वेशन रिजर्व हैं। जैव विविधता के संरक्षण में स्थानीय समुदाय की भागीदारी के साथ ही उनके लिए रोजगार के अवसर सृजित करने के मकसद से संरक्षित क्षेत्रों से लगे गांवों में ईको विकास कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है। अब इसके लिए प्रतिकरात्मक वन रोपण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण यानी कैंपा से मदद मिली है। जाहिर है कि ये कार्यक्रम अब तेजी पकड़ेगा।

यह भी पढ़ें- बेजोड़ है उत्तराखंड की वन्यजीव विविधता, बाघ संरक्षण में तीसरे स्थान पर तो हाथियों का भी फलफूल रहा कुनबा


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.