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सत्ता के गलियारे से: बड़े भाई का बड़ा दांव

वह मंत्रिमंडल में सबके छोटे भाई भले ही हैं, लेकिन कोई भी उनके सामने पड़े तो तपाक से छोटे भाई बोलना नहीं चूकते।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 06 Aug 2018 12:55 PM (IST)Updated: Mon, 06 Aug 2018 12:55 PM (IST)
सत्ता के गलियारे से: बड़े भाई का बड़ा दांव
सत्ता के गलियारे से: बड़े भाई का बड़ा दांव

देहरादून, [जेएनएन]: वह मंत्रिमंडल में सबके छोटे भाई भले ही हैं, लेकिन कोई भी उनके सामने पड़े तो तपाक से छोटे भाई बोलना नहीं चूकते। जज्बा ऐसा कि सूबे का सबसे बड़े महकमे को ऐसे संभाले हुए हैं कि गाहे-बगाहे अपनी ही बिरादरी के साथ ही महकमे के भी नेताओं से पाला पड़ता रहता है और बड़े भाई बनकर सबको नसीहत पिलाने में देर नहीं लगाते। 

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पुराने स्कूली दिनों के कष्टों की याद आई और अभिभावकों को बिलखते देखा तो किताबों के धंधे से टकरा लिए। नतीजा इन दिनों स्कूलों में और बच्चों के बैग में सस्ती किताबें दिखाई पड़ती हैं। अब महंगी फीस को लेकर नजरें टेढ़ी करने की तैयारी है। हालांकि ये काम कुछ ज्यादा ही सांस फुलाने वाला है। लिहाजा दिन-बार गुजर रहे हैं, लेकिन बड़े भाई के जज्बे ने गजब का भरोसा बांधा हुआ है। इस रौ में बड़े भाई अपने महकमे के नेताओं से भी उलझे हुए हैं।

बात महकमे को दुरुस्त करने की है, क्योंकि सवाल नौनिहालों और देश के कर्णधारों के भविष्य का है। अब पढ़ाई दुरुस्त करने के लिए पहले यूनिफॉर्म भी तो जरूरी है। आखिर बच्चे भी तो स्कूल में इसी तरह आते हैं तो फिर मास्साब क्यों नहीं। मास्साब ड्रेस में दिखेंगे तो फिर सब कुछ ढर्रे पर चलता भी तो दिखेगा। कुछ हनक भी दिख जाए तो हर्ज क्या है लेकिन नेताओं की जमात को भी जो पाठ पढ़ा जाए, उस जमात से टकराना आसान बात तो है नहीं। 

अब हौसला है तो टकराना भी पड़ेगा। लिहाजा गुत्थमगुत्था जारी है। बड़े भाई बीच-बीच में खासा नाराज हो उठते हैं। ये नाराजगी तब और बढ़ गई जब महकमे के नेताओं ने 'हर जोर जुल्म की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है' बुलंद किया। बड़े भाई लगातार समझा रहे हैं, लेकिन संघर्ष का माद्दा ऐसा कि बंदे समझने को ही तैयार नहीं। बंदे भी ऐसे हैं कि खींचतान पर आ जाएं तो फिर प्रदेश के भीतर पूरी सियासत ही चादर की तरह खिंच जाए। 

बंदे इस बात को बखूबी समझते हैं लिहाजा बड़े भाई के सभी दांव बेअसर किए जाते रहे। बड़े भाई ने फिर वहीं फंडा अपनाया, जहां धोबी पछाड़ दांव लगना तय है। जनता और गुरुओं की अदालत का हवाला देने वालों को कानून के दर पर ऐसा दांव मारा कि संघर्ष का नारा देने वाले फौजी जनरल चारों खाने चित। अब फिर बड़े भाई के चेहरे पर मुस्कान खेल रही है। 

 मझधार में नैया, पार लगाए कौन खिवैया 

साहब लोग आजकल बहुत परेशान हैं। बंधुओं पर आखिरकार इन दिनों तलवार जो लटकी हुई है। आपात बैठकों का दौर हो चुका है। मुसीबत से निकलने के उपाय सुझाए जा रहे हैं। सब सर्वसम्मत इस बात पर हैं कि आज मुसीबत इन बंधुओं पर आई हुई है तो कल इधर भी आ सकती है। इसके लिए मुखिया जी लेकर बड़े साहब तक पुरजोर तरीके से बंधुओं की पैरवी की जा रही है। इसके लिए साम, दाम, दंड, भेद सब हथकंडे अपनाए जा चुके हैं। यहां तक कि यह इशारा भी दे दिया गया है कि हम तो डूबे सनम तुम्हें भी ले डूबेंगे। बावजूद इसके अभी तक कोई राहत मिलती नजर नहीं आ रही है। 

अब आमजन का ध्यान भटकाने के लिए हल्का हाथ रखने का अनुरोध किया जा रहा है। मौका देख लोग चौका मार रहे हैं। पुराने दिनों की याद दिला रहे हैं। बता रहे हैं कि पद पर रहते हुए कैसे मिलने तक का समय नहीं दिया जा रहा था। तमाम अनुरोध के बाद बात नहीं सुनी जा रही थी। अब साहब लोगों की जवाबदेही तय हो चुकी है, ऐसे में समय का इंतजार किया जा रहा है। जवाब में कैसे खुद का बचाव करें इसका खाका तैयार किया जा रहा है। इसके लिए दिग्गज अपना पूरा दिमाग लगाए हैं। यह संदेश भी देने का प्रयास किया जा रहा है कि दुख की इस घड़ी में जो साथ खड़े हैं उनका आभार लेकिन जो अभी भी नजर टेड़ी किए हुए हैं उन्हें समय आने पर देखा जाएगा। वहीं, सौतेले व्यवहार से आजिज छोटे बाबू भी मामले को गरमाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं। फिलहाल, सबकी नजरें मुखिया जी पर टिकी हैं। 

इंतेहा हो गई इंतजार की

माननीय इन दिनों बड़े परेशान हैं। सवा साल के लंबे इंतजार के बाद घर के आगे एक अदद सरकारी वाहन के खड़े होने का जो सपना देखा था, वह अभी भी पूरा होता नजर नहीं आ रहा है। सवा साल पहले जब जनता के आशीर्वाद के बाद गले में फूल मालाएं पड़ी तो उम्मीद थी अब उनके दिन भी बहुरेंगे। घर के बाहर एक अदद सरकारी वाहन और काम करने को कुछ सहयोगी मिलेंगे। जनता का पूरे दल को भरपूर आशीर्वाद मिला, नतीजतन साहब के सरकारी बंगला और सरकारी गाड़ी मिलने के अरमान धरे के धरे रह गए।

बामुश्किल सवा साल बाद एक बार फिर सरकार के कार्यों में सहयोग करने के लिए दायित्व देने की तैयारी शुरू हुई है। इस बार साहब को पूरी उम्मीद थी कि उनका नंबर लग जाएगा। इधर-उधर से पता किया कि उनके साथ ही तकरीबन ढाई हजार लोग एक जैसा ही सपना पाले हुए हैं। उधर, साफ संकेत दे दिया गया कि अभी तो सरकार को सहयोग देेने के लिए केवल 30-32 लोगों की ही जरूरत है। इनमें से भी पहले चरण में केवल डेढ़ दर्जन लोगों को ही चुना जाएगा और हां जिन्हें जनता ने चुना है वे जनता के बीच रहें। जो पार्टी की सेवा कर रहे हैं उन्हें पहले अवसर दिया जाएगा। संगठन के फैसले के बाद माननीय अब खिसियाए हुए हैं। हालांकि कहते हैं कि जनसेवा के जरिये ही सबसे अच्छा काम किया जा सकता है, इसलिए तो जनता ने उन्हें चुना है। 

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