सत्ता के गलियारे से: भगतजी, अब तो भगवान ही मालिक है
भगत संगठन के मुखिया बन गए। यह तो ठीक मगर अब नए प्रदेश प्रभारी ने इन्हें टारगेट दे दिया 60 सीट जीतने का। भगतजी बगलें झांक रहे हैं कि 57 के अलावा वे तीन सीटें कहां है जिनसे टारगेट पूरा हो।
देहरादून, विकास धूलिया। अकसर तो नहीं, मगर कभीकभार कुछ ऐसा हो जाता है, जब पछतावा होता है कि हमने इतना बढ़िया किया, तो क्यों किया। ऐसा ही तजुर्बा भाजपा के सूबाई मुखिया बंशीधर भगत को हो रहा है। साढ़े तीन साल पहले, जब भगत न तीन में थे और न तेरह में, तब भाजपा ने 70 सदस्यों वाली विधानसभा में 57 सीटों पर कब्जा किया। इन 57 में एक भगत भी थे, लेकिन उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखंड तक मंत्री पद का तजुर्बा होने के बावजूद उन्हें 2017 में मंत्री बनने लायक नहीं समझा गया। वक्त का पहिया घूमा, भगत संगठन के मुखिया बन गए। यह तो ठीक, मगर अब नए प्रदेश प्रभारी ने इन्हें टारगेट दे दिया 60 सीट जीतने का। भगतजी बगलें झांक रहे हैं कि 57 के अलावा वे तीन सीटें कहां है, जिनसे टारगेट पूरा हो। नजदीकी सलाह दे रहे हैं, भगतजी, एक दफा केजरीवाल को फोन कर देखिए।
लव जिहाद का फेर, जला बैठे हाथ
इन दिनों लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने को लेकर सियासत जोरों पर है। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश इसके खिलाफ कानून बनाने जा रहे हैं, लेकिन उत्तराखंड में तो त्रिवेंद्र सरकार 2018 में ही इसके लिए एक्ट बना चुकी है। इसके बाद भी उत्तराखंड में मामला सरगर्म है। दरअसल, गड़बड़ तब हुई, जब टिहरी जिले में समाज कल्याण विभाग के एक अफसर ने एक विज्ञप्ति जारी कर डाली। अविभाजित उत्तर प्रदेश में 1973 में एक कानून बना था, अंतरजातीय व अंतरधार्मिक विवाह को प्रोत्साहन देने का। वर्ष 2014 में उत्तराखंड की कांग्रेस सरकार ने इसमें प्रोत्साहन राशि 10 से बढ़ाकर 50 हजार कर दी। अफसर ने इसी को लेकर कदम उठाया, जो सरकार के गले की हड्डी बन गया। अब मुख्य सचिव बोले कि उत्तर प्रदेश के अध्यादेश का अध्ययन करने के बाद कुछ कहेंगे। 20 साल हो गए, बड़े भाई का मुंह तकने की आदत अब तक नहीं छूटी।
स्वघोषित सीएम और फैन क्लब की डिमांड
यूं तो उत्तराखंड ने सियासत में देश को तमाम दिग्गज दिए हैं, लेकिन हाल-फिलहाल बात की जाए तो हरदा सब पर भारी पड़ेंगे। हरदा, यानी हरीश रावत, कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व मुख्यमंत्री। कई बार केंद्र में मंत्री रहे हैं, लेकिन इनका दिल तो बस उत्तराखंड में ही रमता है। कोई भावनामक कारण नहीं इसके पीछे। केंद्र में कांग्रेस का भविष्य भूतकाल की बात हो गया, तो जनाब को यहीं सियासत में स्वयं के लिए कुछ संभावना दिख रही है। इनकी खुद की पार्टी के नेताओं को ये नहीं सुहाते, मगर इनकी शख्सियत ही है कि अकेले लोहा लिए जा रहे हैं। खुद ही एलान कर डाला कि 2024 में राहुल को पीएम बनाने के बाद संन्यास लेंगे। मतलब, 2022 के विधानसभा चुनाव में ये कांग्रेस के स्वघोषित सीएम कैंडीडेट हो गए। अब फैन क्लब ने भी दावा ठोक डाला कि हरदा ही कांग्रेस का मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे।
टिकट चाहिए, तो बनता है चेहरा दिखाना
विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, पिछली दफा तीन-चौथाई सीटों पर जीत दर्ज की तो टिकट के तलबगारों का जमावड़ा लगेगा ही। कुछ यही नजारा दिखा भाजपा में, जब प्रदेश प्रभारी दुष्यंत कुमार गौतम और सहप्रभारी रेखा वर्मा नई जिम्मेदारी के साथ पहली बार देहरादून पहुंचे। दरअसल, इन दोनों का दौरा रिहर्सल था, क्योंकि अगले हफ्ते भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा तीन दिनी प्रवास पर उत्तराखंड आ रहे हैं। इसी की तैयारी के लिए दोनों केंद्रीय नेता यहां पहुंचे। कार्यकत्र्ताओं में चेहरा दिखाने का इतना उत्साह कि कोरोना का डर भी मानों भाग गया। इनमें ज्यादातर वे लोग शामिल, जो उत्तराखंड में सवा साल बाद होने वाले चुनाव में पार्टी टिकट के तलबगार हैं। वैसे इनकी उम्मीदें भी गलत नहीं, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में देखने में आया है कि भाजपा परफार्मेंस के आधार पर टिकट देती है। पैमाने पर खरा न उतरे तो विधायकों के भी टिकट कट जाते हैं।
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