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उत्‍तराखंड में बुनियादी ढांचा दुरुस्त करने को चाहिए ज्यादा मदद

उत्तराखंड को आर्थिक सेहत दुरुस्त रखने के लिए केंद्र से अतिरिक्त मदद की दरकार है। राज्य ने इसी उम्मीद से केंद्रीय वित्त आयोग को 35 हजार करोड़ से ज्यादा के प्रस्ताव सौंपे हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sat, 09 Nov 2019 09:08 AM (IST)Updated: Sat, 09 Nov 2019 09:08 AM (IST)
उत्‍तराखंड में बुनियादी ढांचा दुरुस्त करने को चाहिए ज्यादा मदद
उत्‍तराखंड में बुनियादी ढांचा दुरुस्त करने को चाहिए ज्यादा मदद

देहरादून, रविंद्र बड़थ्वाल। 80 फीसद से ज्यादा दुर्गम पर्वतीय क्षेत्र वाले हिमालयी राज्य उत्तराखंड को आर्थिक सेहत दुरुस्त रखने के लिए केंद्र से अतिरिक्त मदद की दरकार है। राज्य ने इसी उम्मीद से केंद्रीय वित्त आयोग को 35 हजार करोड़ से ज्यादा के प्रस्ताव सौंपे हैं। इन प्रस्तावों को मंजूरी मिली और आयोग ने राज्य की जरूरतों को तवज्जो दी तो आने वाले पांच वर्षों में विषम क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की राज्य की उम्मीदें परवान चढ़ सकेंगी। 

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उत्तराखंड राज्य अपनी स्थापना के 19 साल पूरे कर चुका है, लेकिन अब भी आधारभूत सुविधाओं को लेकर हालात बेहतर नहीं हुए हैं। इस किशोर उम्र तक पहुंचने तक राज्य का सालाना बजट बढ़कर 45 हजार करोड़ से ज्यादा हो चुका है। बावजूद इसके सच्चाई ये है कि राज्य को पर्वतीय क्षेत्रों में ढांचागत सुविधाओं के लिए ही मशक्कत करनी पड़ रही है। विकास कार्यों के लिए बेहद सीमित बजट की उपलब्धता और ऊपर से पर्वतीय क्षेत्रों में सड़क, बिजली, पानी पहुंचाने से लेकर तमाम कार्यों पर ज्यादा लागत राज्य के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। बजट का बड़ा आकार हो चुका है, लेकिन विकास की जन आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए बामुश्किल साढ़े छह हजार करोड़ की धनराशि भी नहीं मिल पा रही है। 

ढांचागत विकास को 12 हजार करोड़

विकास को लेकर राज्य की सूरतेहाल में बदलाव का पूरा दारोमदार केंद्रपोषित और बाह्य सहायतित योजनाओं पर है। अच्छी बात ये है कि विशेष राज्य का दर्जा होने की वजह से उत्तराखंड को केंद्रपोषित ओर बाह््य सहायतित योजनाओं में अधिक मदद मिल पा रही है। बाह्य सहायतित योजनाओं में ही चालू वित्तीय वर्ष में 12 हजार करोड़ से अधिक के प्रस्तावों को मंजूरी मिल चुकी है। उक्त सभी प्रस्ताव ढांचागत विकास के ही हैं। इस चुनौती के बीच चिंता के बादल भी उत्तराखंड के आकाश से छंट नहीं पा रहे हैं। इसकी बड़ी वजह राज्य के बजट का समुचित और समयबद्ध उपयोग नहीं होना है। जिन महकमों पर जन आकांक्षाओं को पूरा करने की जिम्मेदारी है, वे बजट खर्च की रफ्तार बढ़ाने में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं। ये विषय दोहरी परेशानी का है। एक तो प्रदेश के पास विकास के लिए सीमित बजट है तो दूसरी ओर कम बजट का भी पूरा उपयोग नहीं हो पा रहा है। 

छह माह में 41 फीसद बजट खर्च

चालू वित्तीय वर्ष 2019-20 की पहली छमाही यानी 30 सितंबर तक बजट खर्च के आंकड़े महकमों की हकीकत बयां कर रहे हैं। इस अवधि तक कुल बजट का 66 फीसद महकमों तक पहुंचाया गया, लेकिन बजट प्रावधान का सिर्फ 41 फीसद ही उपयोग हो पाया है। सरकार ने वर्ष 2019-20 के लिए 48663.90 करोड़ को मंजूरी दी थी। इस बजट राशि की तुलना में पहली छमाही में सरकार ने करीब 32 हजार करोड़ बजट की राशि तमाम योजनाएं पूरी करने के लिए महकमों को आवंटित की है। इस राशि में करीब 20 हजार करोड़ ही खर्च हो पाया है। कुल बजट का यह मात्र 41.09 फीसद है, जबकि आवंटित बजट का यह 62.5 फीसद है। बजट मिलने के बावजूद महकमे करीब 12 हजार करोड़ खर्च नहीं कर पाए हैं। 

केंद्र सरकार से अनुमोदित परियोजनाएं

  • एडीबी सहायतित नगर सेक्टर अवस्थापना विकास परियोजना:1750 करोड़
  • एडीबी सहायतित उत्तराखंड विद्युत पारेषण सुदृढ़ीकरण एवं वितरण उन्नयन कार्यक्रम: 1400 करोड़
  • विश्वबैंक पोषित उत्तराखंड आपदा पुनर्निर्माण परियोजना-अतिरिक्त फंडिंग: 960 करोड़
  • जर्मनी पोषित हरिद्वार व ऋषिकेश की सीवरेज परियोजना: 1075 करोड़

केंद्रीय आर्थिक मंत्रालय से इन योजनाओं को सैद्धांतिक मंजूरी: 

  • उत्तराखंड एकीकृत औद्योनिकी विकास परियोजना-400 करोड़
  • नगरीय पेयजल योजना-1250 करोड़
  • अर्द्धनगरीय क्षेत्रों के लिए पेयजल योजना-975 करोड़
  • 16 शहरों में अवस्थापना विकास योजना: 1300 करोड़
  • ग्रामीण उद्योगों का सृजन व कायाकल्प: 600 करोड़

ग्रीन बोनस की पैरवी

राज्य की तीन वन सेवाओं की  स्टाक वैल्यू 14 लाख करोड़ है। उत्तराखंड में ग्रीन अकाउंटिंग और सस्टेनेबल एनवायरनमेंटल परफॉरमेंस इंडेक्स के लिए तैयार की गई अध्ययन रिपोर्ट ने अहम आंकड़ा और तथ्य मुहैया कराए हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक देश को दी जा रही 18 वन सेवाओं की फ्लो वैल्यू 95.11 हजार करोड़ है, जबकि तीन सेवाओं की स्टॉक वैल्यू 14.13 लाख करोड़ आंकी गई है। इसके आधार पर राज्य ग्रीन बोनस देने की पुरजोर पैरवी कर रहा है।  

खुशहाली में पिछड़े पर्वतीय क्षेत्र

राज्य में आर्थिक व सामाजिक विषमताओं की खाई गहरी हो रही है। विकास दर और प्रति व्यक्ति आय के मामले में मैदानी जिले पर्वतीय क्षेत्रों की तुलना में काफी आगे हैं। बहुआयामी गरीबी सूचकांक में दो पर्वतीय जिलों उत्तरकाशी और चंपावत के साथ आश्चर्यजनक रूप से एक मैदानी जिला हरिद्वार भी शामिल है। राज्य की पहली मानव विकास रिपोर्ट में राय का मानव विकास सूचकांक (एचडीआइ) 0.718 आंका गया है। एचडीआइ में देहरादून पहले, हरिद्वार दूसरे और ऊधमसिंह नगर तीसरे स्थान पर है। वहीं रुद्रप्रयाग 11वें, चंपावत 12वें व टिहरी 13वें स्थान पर रहा। महिलाओं के मामले में स्थिति उलट रही। पर्वतीय जिले मैदानी क्षेत्रों से अच्छी स्थिति में हैं। 

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बड़ी आबादी की आजीविका, कृषि क्षेत्र पर निर्भर  

आर्थिक सर्वेक्षण में यह सामने आ चुका है कि हाल के वर्षों में अर्थव्यवस्था में सेकेंडरी और टर्सरी सेक्टर का जीडीपी में हिस्सा क्रमश: 49.74 फीसद और 39.76 फीसद है। कृषि और संबद्ध गतिविधियों की हिस्सेदारी कम होकर सिर्फ 10.50 फीसद तक सिमट गई है। यह हालत तब है, जब राज्य की करीब दो तिहाई आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है और आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। राज्य की प्रति व्यक्ति आय 1,90,284 है। यह पिछले साल की तुलना में 8.97 फीसद अधिक है। आर्थिक सर्वेक्षण में बागवानी, पर्यटन क्षेत्र को ग्रोथ ड्राइवर्स माना गया है, वहीं उद्योग को ग्रोथ इनेबलर्स करार दिया गया है। 

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