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Leopard Attacks: गुलदारों के खौफ से थरार्या उत्तराखंड, वन्यजीवों के हमलों में 80 फीसद से ज्यादा मामले गुलदारों के

Leopard Attacks गुलदारों ने दिन का चैन और रातों की नींद उड़ाई है। आंकड़े बताते हैं कि 20 वर्षों में वन्यजीवों के हमलों में 80 फीसद से ज्यादा मामले गुलदारों के हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sat, 18 Jul 2020 09:33 AM (IST)Updated: Sat, 18 Jul 2020 09:38 PM (IST)
Leopard Attacks: गुलदारों के खौफ से थरार्या उत्तराखंड, वन्यजीवों के हमलों में 80 फीसद से ज्यादा मामले गुलदारों के
Leopard Attacks: गुलदारों के खौफ से थरार्या उत्तराखंड, वन्यजीवों के हमलों में 80 फीसद से ज्यादा मामले गुलदारों के

देहरादून, केदार दत्त। Leopard Attacks उत्तराखंड के जंगलों में वन्यजीवों का कुनबा भले ही खूब फल-फूल रहा हो, मगर तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। वह है वन्यजीवों का खौफ, जो चौतरफा तारी है। विशेषकर, गुलदारों ने दिन का चैन और रातों की नींद उड़ाई है। आंकड़े बताते हैं कि 20 वर्षों में वन्यजीवों के हमलों में 80 फीसद से ज्यादा मामले गुलदारों के हैं। मानसून सीजन में तो इनका खतरा अधिक बढ़ जाता है और वर्तमान में भी लोग इससे त्रस्त हैं। आए दिन इनके हमले की घटनाएं सुर्खियां बन रही। विशेषज्ञ भी मानते हैं कि वर्षाकाल में गुलदार अधिक खतरनाक होते हैं। वजह है गांवों के नजदीक इन्हें छिपने की जगह मिलना। घरों के आसपास और खेतों में उगी झाड़ियां इनकी शरणस्थली बन रही हैं। ऐसे में सतर्कता और सावधानी बरतने के साथ ही गुलदारों के छिपने के अड्डों को हटाना होगा। इसके लिए हर स्तर पर गंभीरता से पहल होनी जरूरी है।

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आठ बिगड़ैल हाथियों पर कसेगी नकेल

राजाजी टाइगर रिजर्व से लगे हरिद्वार क्षेत्र में हरिद्वार शहर से लेकर ऋषिकेश और चिड़ि‍यापुर तक हाथियों की धमाचौकड़ी नाक में दम किए हुए है। ये कब कहां आ धमकें कहा नहीं जा सकता। चिंता इस बात की सता रही कि हरिद्वार में अगले साल कुंभ का आयोजन होना है। ऐसे में हाथियों के आबादी वाले इलाकों, सड़कों पर धमकने का सिलसिला नहीं थमा तो दिक्कतें खड़ी हो सकती है। इसे देखते हुए क्षेत्र में सक्रिय बिगड़ैल हाथियों को चिह्नीत करने का निर्णय लिया गया। पता चला कि ऐसे एक-दो नहीं आठ हाथी हैं, जो जनसामान्य के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे। अब इन पर नकेल कसने की तैयारी है। रेडियो कॉलर लगाकर इन पर निगरानी रखी जाएगी। यह प्रकिया जल्द शुरू होने जा रही। इससे इनके मूवमेंट पर नजर रहेगी और संबंधित क्षेत्र में लोगों को सतर्क करने के साथ ही हाथियों को जंगल की तरफ खदेड़ा जा सकेगा।

हरियाली को है गंभीरता की दरकार

प्रकृति पर्व हरेला से पौधारोपण की शुरुआत राज्यभर में हो गई है। गांव, शहर से लेकर सार्वजनिक स्थल और वन क्षेत्रों तक सभी जगह हरियाली के लिए बयार सी चली है। वन महकमा भी जंगलों को हरा-भरा करने को पौधारोपण में जुटा है। निश्चित रूप से यह पहल मन को सुकून देने वाली है, मगर संशय के बादल भी कम नहीं हैं। चिंता इस बात की साल रही कि रोपे गए पौधों में से सलामत कितने रह पाएंगे। ये भी सवाल उठता है कि क्या सिर्फ पौधारोपण कर देने भर से प्रकृति के संरक्षण का दायित्व पूरा हो जाता है। पिछले अनुभवों को देखते हुए ऐसे एक नहीं अनेक सवाल हर किसी के जेहन में हैं। जाहिर है कि पौधे सलामत रहें, इसके लिए हर स्तर पर गंभीरता की दरकार है। पौधों की भी नौनिहालों की तरह ही देखभाल करनी होगी। तब जाकर ही हरियाली का ख्वाब साकार हो पाएगा।

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कब बनेगी जंगल की यह सड़क

71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में जंगल से गुजरने वाली एक सड़क लंबे समय से चर्चा में है। असल में राज्य के दोनों मंडलों गढ़वाल व कुमाऊं को प्रदेश के भीतर ही सीधे आपस में जोड़ने को एक अदद सड़क तक नहीं है। हालांकि, ब्रिटिशकाल से चली आ रहा वन मार्ग (रामनगर-कालागढ़-कोटद्वार-लालढांग) अस्तित्व में है, लेकिन कार्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व के मध्य से गुजरने के कारण पर्यावरणीय दिक्कतों के चलते यह सड़क आकार नहीं ले पा रही। इस सड़क के राजाजी से गुजरने वाले निर्विवादित रहे कोटद्वार-लालढांग हिस्से के निर्माण की कवायद पूर्व में जोर-शोर से हुई, मगर कुछ दिन बाद इसमें भी पर्यावरण का पेच फंस गया। इसके लिए दोबारा से कवायद हुई, लेकिन अभी तक यह जंगल के कानूनों से बाहर नहीं निकल पाई है। ऐसे में हर किसी की जुबां पर यही बात है कि जंगल से गुजरने वाली यह सड़क कब तक आकार लेगी।

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