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उत्तराखंड में भगत से भगत तक भाजपा, मुखिया के समक्ष पहले ज्यादा चुनौतियां

उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के ठीक 20 साल बाद फिर प्रदेश भाजपा की कमान भगत के हाथों में है। यह बात दीगर है कि चुनौतियां शायद अब पहले से कहीं ज्यादा और बड़ी हैं।

By BhanuEdited By: Published: Fri, 17 Jan 2020 07:41 AM (IST)Updated: Fri, 17 Jan 2020 07:41 AM (IST)
उत्तराखंड में भगत से भगत तक भाजपा, मुखिया के समक्ष पहले ज्यादा चुनौतियां
उत्तराखंड में भगत से भगत तक भाजपा, मुखिया के समक्ष पहले ज्यादा चुनौतियां

देहरादून, विकास धूलिया। समयचक्र घूमा और एक बार फिर उत्तराखंड में भाजपा संगठन की कमान भगत के हाथों में है। राज्य गठन से पहले भाजपा ने अविभाजित उत्तर प्रदेश में छाया प्रदेश के रूप में उत्तरांचल भाजपा को नई इकाई के रूप में मान्यता देकर भगत सिंह कोश्यारी को इसके अध्यक्ष की अहम जिम्मेदारी सौंपी। अब उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के ठीक 20 साल बाद फिर प्रदेश भाजपा की कमान भगत के हाथों में है। यह बात दीगर है कि परिस्थितियों में जमीन-आसमान का फर्क आ चुका है लेकिन चुनौतियां शायद अब पहले से कहीं ज्यादा और बड़ी हैं।

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अब प्रदेश भाजपा का मुखिया जिस भगत को बनाया गया है, वह हैं बंशीधर भगत, जो भाजपा के वरिष्ठतम विधायकों में से एक हैं। संयोग यह कि नाम में समानता है और पार्टी संगठन के मुखिया के रूप में भी चुनौतियां समान।

भगत सिंह कोश्यारी जब छाया प्रदेश उत्तरांचल भाजपा के अध्यक्ष बने, उस वक्त राज्य आंदोलन के बाद उत्तराखंड के गठन की सुगबुगाहट महसूस होने लगी थी। तब भगत सिंह कोश्यारी के समक्ष चुनौती थी कि वह अलग राज्य में किस तरह पार्टी को मजबूती से अपने पैरों पर खड़ा करते हैं। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के 20 साल बाद परिस्थितियां भिन्न हैं। पिछले छह वर्षों से भाजपा उत्तराखंड में एकछत्र राज कर रही है। 

लगातार दो लोकसभा चुनावों में सभी पांचों सीटों पर जीत और विधानसभा चुनाव में 70 में से 57 सीटों पर विजय पताका पार्टी फहरा चुकी है। अगर यह कहा जाए कि वर्तमान में भाजपा उत्तराखंड में चरमोत्कर्ष पर है, तो यह गलत नहीं होगा। 

पार्टी को इस स्थिति से आगे ले जाना कितना मुमकिन है, यही उत्तराखंड भाजपा के नए सेनापति बंशीधर भगत की सबसे बड़ी चिंता और चुनौती होगी। खासकर, वर्ष 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव का दारोमदार संगठन के मुखिया के नाते उन्हीं के कंधों पर रहेगा। 

स्वाभाविक रूप से पार्टी की उनसे अपेक्षा होगी कि वह 57 के आंकड़े को आगे बढ़ाएं। इसमें भगत कितने सफल रहते हैं, इसी पैमाने पर उनकी सफलता-असफलता का आकलन होगा। यहां यह भी ध्यान रखना होगा कि पिछले छह सालों में भाजपा ने सफलता के जितने सोपान तय किए, उसमें सबसे बड़ी भूमिका नमो इफेक्ट की रही। 

हालांकि बंशीधर भगत की छवि अत्यंत सादगी वाले जननेता की रही है और पार्टी के किसी गुट विशेष से भी उन्हें सीधे तौर पर नहीं जोड़ा जाता, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष के रूप में पहली बार उन्हें संगठन की इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी गई है। लिहाजा, पार्टी जिस विजयरथ पर पिछले छह सालों से सवार है, उसे सरकार के साथ समन्वय बनाकर कामयाबी के साथ आगे बढ़ाने में ही उनके राजनैतिक व रणनीतिक कौशल की असल परीक्षा होगी।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि उम्रदराज बंशीधर भगत की उत्तराखंड में संगठन मुखिया के रूप में ताजपोशी कर भाजपा आलाकमान ने नई रणनीति के संकेत दिए हैं। साफ है कि आलाकमान अब संगठन की भूमिका महज रबर स्टैंप की तरह हर मामले में हामी भरने तक सीमित नहीं रखना चाहता।

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संगठन के अधिकारों व दायित्वों का संरक्षण और सरकार के साथ समन्वय में संगठन की अहम भूमिका सुनिश्चित की जाएगी। यही नहीं, भगत को मिली इस अहम जिम्मेदारी से सूबे में पार्टी के पुराने और वरिष्ठ नेताओं में भी यह संदेश गया है कि पार्टी उनकी अहमियत से बखूबी वाकिफ है और उन्हें नजरअंदाज कतई नहीं किया जाएगा।

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