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ब्रिटिश फौज ही नहीं, मिर्जा गालिब भी थे मसूरी की बीयर के दीवाने

एक जमाने में मसूरी में बनी बीयर व वाइन की ब्रिटिश फौज ही नहीं उर्दू के मशहूर शायर मिर्जा गालिब भी बेपनाह दीवाने थे।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sat, 29 Feb 2020 08:35 AM (IST)Updated: Sat, 29 Feb 2020 08:35 AM (IST)
ब्रिटिश फौज ही नहीं, मिर्जा गालिब भी थे मसूरी की बीयर के दीवाने

मसूरी,  सूरत सिंह रावत। अपनी स्थापना के लगभग दो सौ साल बाद भले ही आज पहाड़ों की रानी मसूरी उद्योग विहीन हो, लेकिन एक जमाने में मसूरी में बनी बीयर व वाइन की ब्रिटिश फौज ही नहीं, उर्दू के मशहूर शायर मिर्जा गालिब भी बेपनाह दीवाने थे। दरअसल, मुगलों की अंग्रेजी तौर-तरीके से बनाई गई शराब की लत के कारण तब अंग्रेजों द्वारा मुगल दरबार में भी यह शराब भेजी जाती थी। दरबार में ही गालिब ने भी यह शराब चखी थी। इसका सुरूर उनके दिलो-दिमाग पर इस कदर छा गया कि वह अक्सर कहा करते, 'मसूरी की हवा में ही नहीं, पानी में भी नशा है।'

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शराब के लिए दिल्ली से घोड़े पर मेरठ आते थे गालिब

गालिब ने लिखा है कि उनकी शायरी में मसूरी की 'ओल्ड टॉम' व्हिस्की की लचक भी शामिल है। गालिब और शराब का रिश्ता उनकी नज़्म 'गालिब छुटी शराब पर अब भी कभी कभी, पीता हूं रोज-ए-अब्र ओ शब-ए-माहताब में' में साफ झलकता है। इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि जब भी गालिब के पास पैसे होते, वह मसूरी में बनी बीयर व वाइन के लिए दिल्ली के चांदनी चौक स्थित बल्लीमारान इलाके से घोड़े पर सवार होकर मेरठ छावनी पहुंच जाते थे। मसूरी में ओल्ड ब्रेवरी व क्राउन ब्रेवरी कारखानों के खंडहर आज भी देखे जा सकते हैं। ओल्ड ब्रेवरी कारखाने को स्थानीय लोग तब बीयरखाना नाम से जानते थे और इसमें समीपवर्ती जौनपुर क्षेत्र के कई लोग नौकरी किया करते थे। क्राउन ब्रेबरी के बार्लोगंज रोड स्थित एक परिसर तो आज भी मौजूद है।

हिंदुस्तान की पहली बीयर फैक्टरी थी 'ओल्ड ब्रेवरी'

वर्ष 1829 में मेरठ से मसूरी आए अंग्रेज व्यापारी हेनरी बोहले ने वैवरली-हाथीपांव के बीच (वर्तमान बांसी एस्टेट) में वर्ष 1830 में 'ओल्ड ब्रेवरी' नाम से यहां बीयर की फैक्टरी लगाई थी। जिसे मसूरी ही नहीं, पूरे हिंदुस्तान की पहली बीयर फैक्टरी होने का श्रेय जाता है। उस दौर में मसूरी का पानी बीयर निर्माण के लिए बहुत उत्तम माना जाता था। अंग्रेजों की ओर इसका बाकायदा इंग्लैंड से परीक्षण भी करवाया गया। हालांकि, आधे जर्मन व आधे स्काटिश हेनरी बोहले द्वारा स्थापित यह बीयर फैक्टरी स्थापना के एक साल बाद ही विवादों में घिरने लगी थी। इतिहासकार जयप्रकाश उत्तराखंडी बताते हैं कि 19 अप्रैल 1831 को हेनरी बोहले पर लंढौर डिपो के फौजियों को जाली परमिट से बीयर बेचने के आरोप लगे थे। नतीजा, लंढौर छावनी प्रमुख कैप्टन यंग और हेनरी बोहले के बीच काफी विवाद हुआ। इसके चलते 24 अप्रेल 1831 को हेनरी बोहले ने बीयर फैक्ट्री बंद कर दी।

1850 में 'मैकिनॉन ब्रेवरी' नाम से दोबारा शुरू हुई बीयर फैक्टरी

वर्ष 1832 में हेनरी बोहले ने 'ओल्ड ब्रेवरी' पार्सन को बेच दी। दो साल चलने के बाद वर्ष 1834 में इसे जॉन मैकिनॉन ने खरीद लिया था। ओल्ड ब्रेवरी वर्ष 1839 तक चली और फिर लगातार 11 साल बंद रही। वर्ष 1850 में जॉन मैकिनॉन ने इसे फिर से 'मैकिनॉन ब्रेवरी' नाम से शुरू किया। इसके वर्ष 1905 तक चलने के प्रमाण मिलते हैं।

कारखाना खुलने की तिथि को लेकर मतैक्य

इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि वर्ष 1867 में मैसर्स मर्च एंड डायर द्वारा बार्लोगंज-झड़ीपानी क्षेत्र के ब्रुकलैंड के समीप झड़ीपानी कॉटेज में 'क्राउन ब्रेवरी' नाम से बीयर का कारखाना खोला गया। यहां पर पानी बहुतायत में उपलब्ध था और कारखाना वाटर फोर्स से संचालित होता था। इस कारखाने को वर्ष 1876 में मैसर्स व्हिपर एंड कंपनी द्वारा खरीदा गया। हालांकि, इतिहासकार जयप्रकाश उत्तराखंडी के अनुसार यह कारखाना वर्ष 1842 में जॉन मैकिनॉन द्वारा खोला गया था। खैर! कारखाना खुलने की तिथि को लेकर भले ही मतैक्य हो, लेकिन यह सच है कि मसूरी में बनी बीयर जॉन मैकिनॉन द्वारा पूरे हिंदुस्तान में भेजी जाती थी। बिक्री के लिए तब देश के प्रमुख शहरों में एजेंट हुआ करते थे।

तब उत्तर भारत में नहीं थी इससे बेहतर बीयर

इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि मसूरी में बनी बीयर मेरठ, दिल्ली, अंबाला, जबलपुर, लुधियाना, देहरादून, मसूरी, रुड़की आदि आर्मी कैंटोनमेंट में सप्लाई होती थी। उस दौर में इससे बेहतर बीयर और कहीं नहीं मिलती थी।

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नगर पालिका के चेयरमैन भी रहे मैकिनॉन

जॉन मैकिनॉन वर्ष 1857 से 1861 तक मसूरी नगर पालिका के चेयरमैन भी रहे। उनके कार्यकाल में एक्साइज टैक्स से होने वाली आय मसूरी की माल रोड और लिंक रोड का रखरखाव किया जाता था।

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चमर खड्ड से लगाया गया मैकिनॉन पंप आज भी उपयोगी

मसूरी में पहली बार प्राकृतिक जलस्रोतों से पानी घरों तक पहुंचाने का श्रेय भी जॉन मैकिनॉन को ही जाता है। इसके लिए उन्होंने वर्ष 1855-56 में लाइब्रेरी बाजार के समीप चमर खड्ड (सुराणा पानी) से पानी अपलिफ्ट करने के लिए पंप लगवाया था। आज भी यह वाटर लिफ्टिंग पंप लाइब्रेरी बाजार क्षेत्र के लोगों को जलापूर्ति कर रहा है। इसे मैकिनॉन पंप कहा जाता है।

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