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मीटिंग में हड़कान, मीडिया में मुस्कान; मंत्रीजी आप ही खामोश रहेंगे तो कैसे चलेगा

मंत्री मदन कौशिक बिफर पड़े मीटिंग छोड़ दी मौजूद सचिव को भी नहीं बख्शा। सब कुछ कैमरे में कैद मगर बाहर आते ही मंत्रीजी के सुर बिल्कुल बदल गए।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 27 Jul 2020 12:59 PM (IST)Updated: Mon, 27 Jul 2020 12:59 PM (IST)
मीटिंग में हड़कान, मीडिया में मुस्कान; मंत्रीजी आप ही खामोश रहेंगे तो कैसे चलेगा
मीटिंग में हड़कान, मीडिया में मुस्कान; मंत्रीजी आप ही खामोश रहेंगे तो कैसे चलेगा

देहरादून, विकास धूलिया। सूबे में ब्यूरोक्रेसी की मनमानी के किस्से आम हो चले हैं। हाल में मुख्यमंत्री ने मीडिया के समक्ष अफसरों को आड़े हाथ लेते हुए टिप्पणी की थी कि वे खुद को जनप्रतिनिधियों से ऊपर न समझें। इसे चंद ही दिन गुजरे कि कैबिनेट के सबसे ताकतवर मंत्री मदन कौशिक को भी कड़वा घूंट पीना पड़ गया। दरअसल, कुंभ के आयोजन के सिलसिले में सचिवालय में मीटिंग रखी गई। हफ्तेभर पहले अफसरों को इसकी इत्तिला कर दी, लेकिन पहुंचे केवल एक सचिव। शासकीय प्रवक्ता होने के नाते कौशिक को सरकार का चेहरा माना जाता है, नेक्स्ट टू सीएम की हैसियत, लेकिन अफसरों की हिमाकत देखिए। कौशिक बिफर पड़े, मीटिंग छोड़ दी, मौजूद सचिव को भी नहीं बख्शा। सब कुछ कैमरे में कैद, मगर बाहर आते ही मंत्रीजी के सुर बिल्कुल बदल गए। मुस्कराते हुए बोले, अफसरों को सूचना नहीं मिली, इसलिए नहीं पहुंचे। मंत्रीजी, आप ही खामोश रहेंगे तो कैसे चलेगा।

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कुदरत का कहर, हरक का कुसूर

प्राकृतिक आपदा पर किसी का नियंत्रण नहीं, मगर सियासत में तो इसका आरोप दूसरों पर मढ़ा ही जा सकता है। इसकी बानगी दिखी गढ़वाल मंडल के प्रवेशद्वार कोटद्वार में। इस विधानसभा में कोटद्वार की नुमाइंदगी कर रहे हैं हरक सिंह रावत। त्रिवेंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री भी हैं। अब इसे संयोग ही कहा जा सकता है कि जब से हरक कोटद्वार के विधायक बने, हर साल बरसात में शहर को आपदा का कहर झेलना पड़ रहा है। पिछले तीन-चार साल से यह क्रम बरकरार है। अब कुदरत के कहर में भी कांग्रेस को भाजपा विधायक का हाथ नजर आ रहा है। पूर्व मंत्री और कोटद्वार के पूर्व विधायक सुरेंद्र सिंह नेगी का तो यही मानना है। उन्होंने आरोप लगा डाला कि जब से हरक मंत्री बने हैं, तब से ही कोटद्वार में आपदा आ रही है। अब सियासी प्रतिद्वंद्विता तो ठीक, मगर इस तरह के बयान पर क्या कहा जाए।

सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठमलट्ठा

दिल्ली से लेकर देहरादून तक, कांग्रेस हाशिए पर दिख रही है, लेकिन इसके नेता हैं कि आपस में ही भिड़ने से बाज नहीं आते। एक नेता का बयान आता है, तुरंत दूसरे गुट के नेता हाथों में लट्ठ लेकर पिल पड़ते हैं। मार्च 2016 में हरीश रावत के मुख्यमंत्री रहते 10 विधायक कांग्रेस छोड़ भाजपाई हो गए, इनमें से ज्यादातर अब भाजपा विधायक और चार तो मंत्री भी हैं। पता नहीं हरदा को क्या सूझा, बयान उछाल दिया कि अगर बागी लौटना चाहते हैं तो घरवापसी पर उनका स्वागत है। भाजपा कोई रिएक्शन देती, इससे पहले ही कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और पार्टी की नेता विधायक दल इंदिरा हृदयेश ने मोर्चा खोल डाला। प्रीतम बोले, कांग्रेस में वापसी पर केवल हाईकमान का फैसला अंतिम होगा, किसी अन्य को इसका अधिकार नहीं। इंदिरा ने तो यह तक कह दिया कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की ऐसी टिप्पणी कतई ठीक नहीं।

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भगत की भक्ति, सीएम की सख्ती

भाजपा संगठन के सूबाई मुखिया बंशीधर भगत। पुराने सियासतदां, लेकिन स्वभाव से सरल हैं। कई दफा यही गुण उन पर भारी पड़ जाता है। कोविड-19 के इस दौर में भी उनकी बगैर फेसमास्क तस्वीरें मीडिया में चर्चा बटोरती रही हैं। कुमाऊं मंडल में कई भाजपा नेता संक्रमण की चपेट में आए तो उनसे सवाल किया गया, 'आप बगैर मास्क पब्लिक में नजर आते हैं, कोरोना का भय नहीं क्या।' जवाब मिला, 'कोरोना फैलाने से नहीं फैलता, यह किसी का नाम पूछकर नहीं आता।' हालांकि बाद में उन्होंने मामला संभालने की कोशिश की, मगर तीर तो छूट चुका था। बात सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत तक पहुंची तो उनका जवाब बिल्कुल माकूल, 'जो लोग मास्क नहीं लगा रहे, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। जिम्मेदारों को नियमों का पालन करना चाहिए। सरकार सोच समझ कर नियम कायदे तय करती है, तो इन्हें अनिवार्य रूप से मानना ही चाहिए।' भगतजी, अब तो मास्क लगा ही लीजिए।

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