मीठे भात की भीनी-भीनी मीठी खुशबू, खानपान संस्कृति का रहा है यह मुख्य हिस्सा
गढ़वाल में सामूहिक भोज के अवसर पर मीठे भात (खुश्का) से ही खाने की शुरुआत होती है। असल में मीठा भात पीढ़ियों से गढ़वाल की खानपान संस्कृति का मुख्य हिस्सा रहा है।
देहरादून, जेएनएन। शहरी संस्कृति में भले ही भोजन करने के बाद मीठा खाने का चलन हो, लेकिन पहाड़, खासकर गढ़वाल में सामूहिक भोज के अवसर पर मीठे भात (खुश्का) से ही खाने की शुरुआत होती है। खाद्य विशेषज्ञ भी इसे पाचक रसों के अनुसार उचित मानते हैं। असल में मीठा भात पीढ़ियों से गढ़वाल की खानपान संस्कृति का मुख्य हिस्सा रहा है। अंतराल के गांवों में आज भी शादी-समारोह के दौरान उसमें मीठा भात जरूर परोसा जाता है। यही नहीं, घरों में भी कभी-कभी मीठा भात शौक से खाया जाता है।
मीठा भात अमूमन लोहे की कढ़ाई में बनाया जाता है। इसके लिए सबसे पहले कड़ाही में चावल की माप के दोगुने पानी से थोड़ा कम गुड़ डालकर उबाल लें। फिर उसमें चावल डालकर करछी या कौंचा से हिलाते रहें। जब चावल तीन चौथाई पक जाए तो उसमें देसी घी डालें। साथ में सूखे फल नारियल गिरी, किशमिश, सौंफ आदि भी डाल सकते हैं। घी डालने के बाद चावल को पलटाकर अच्छी तरह मिला लें और आंच हल्की कर इसे भपाने रख दें। चावल बर्तन के तल पर हल्का-हल्का जल भी जाए तो कोई दिक्कत नहीं। अधजला पापड़ा खाने के शौकीनों की इच्छा भी पूरी हो जाएगी। हां! यदि देसी घी उपलब्ध न हो तो रिफाइंड से काम चला सकते हैं। लेकिन, रिफाइंड को चावल डालने से पूर्व खौलते पानी में डालें अथवा रिफाइंड को पहले गर्म कर भिगोये चावल के साथ भूना भी जा सकता है। ताकि रिफाइंड खाने के बाद गले में न लगे। बस! तैयार है मीठा भात। इसकी भीनी-भीनी मीठी खुशबू आपको लार टपकाने के लिए मजबूर कर देगी।
'ठग रोटी' के कहने ही क्या
'ठग रोटी' नाम सुनकर चकरा गए ना। पर, हकीकत में यह रोटी ठग नहीं, पौष्टिकता का खजाना है। असल में पौड़ी जिले के कुछ हिस्सों में गेहूं की रोटी के अंदर कोदे (मंडुवा) के आटे की भरवां रोटी बनाने की परंपरा रही है। इसे 'डोठ रोटी' भी कहा जाता है। एक दौर में पहाड़ में गेहूं का आटा संपन्नता का पर्याय माना जाता रहा है। गरीब परिवार यदा-कदा ही गेहूं की रोटी खा पाते थे। ज्यादातर परिवार तो गेहूं की रोटी तब बनाते थे, जब या तो परदेस में नौकरी करने वाला परिवार का सदस्य छुट्टी पर घर आया हो या कोई खास मेहमान। 'ठग रोटी' बनाने में गेहूं का आटा कम लगता है, इसलिए उसके लिए खासतौर पर यह रोटी बनाई जाती थी। ताकि, उसे अपने खास होने का अहसास हो। हालांकि, कालांतर में 'ठग रोटी' की अपनी अलग अहमियत बना ली। बाहर से गेहूं और अंदर से मंडुवे की यह गरमा-गरम रोटी यदि घी व सब्जी के साथ खाई जाए तो कहने ही क्या। सचमुच यह पहाड़ की डबल रोटी है।
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मंडुवा व गेहूं की बेल्डी रोटी
चलिए! आज बेल्डी (भरवां) रोटी बनाते हैं। इसके लिए नौरंगी, राजमा, रगड़वास, गहथ, तोर व लोबिया में से कोई भी दाल उबाल लें। हां! दाल ज्यादा नहीं गलनी चाहिए। अब उबली दाल का निथार कर सिलबट्टे में पीस मसीटा तैयार कर लें। मसीटे में नमक, मिर्च, मोरा (मुर्या), हरा धनिया, अदरक व लहसुन इच्छानुसार मिला लें। अब मंडुवा-गेहूं या मिश्रित आटे को अच्छी तरह गूंथकर गोलियां बना लें। फिर हल्के से पाथकर उसके अंदर तैयार मसीटा भरें और बेलकर गर्म तवे पर हल्की आंच में पकाएं। अकेले मंडुवे की रोटी सिर्फ पानी के हाथ से बनेगी। इसके लिए लकड़ी का चूल्हा सबसे उत्तम है। गर्मागर्म बेल्डी रोटी के साथ खुशबूदार चोपड़ (ताजा मक्खन) या घी एक त्योहार जैसा खाना है। उस पर ताजा दही या छाछ हो तो सोने पे सुहागा। गांव में तो आज भी जब भरवां रोटी बनाते हैं, ताजा मट्ठा भी जरूर बिलोते हैं। ...और ढिंडक्याली (पीस वाली) दही हो तो फिर किसी चीज की जरूरत नहीं।
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