देहरादूनः सफल विद्यार्थी सुशील की 'गुरु दक्षिणा', कोचिंग का अभिनव प्रयोग
सुशील राणा कहते हैं कि आज बाल प्रतिभाओं की कमी नहीं है, लेकिन शिक्षा पर बाजारवाद हावी होने से जरूरतमंद बच्चे पिछड़ रहे हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में दून की देशभर में अपनी एक अलग पहचान है। स्कूली शिक्षा ही नहीं, इससे आगे उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी। लेकिन, वक्त के साथ तमाम चुनौतियां भी उभरी हैं। खासकर, गरीब एवं निर्धन परिवार के प्रतिभावान विद्यार्थी व्यावसायिक शिक्षा से दूर होते जा रहे हैं।
वहीं, सरकारी स्कूलों को लेकर तमाम सवाल खड़े किए जा रहे हैं। इस सबके चलते आर्थिक रूप से कमजोर कई प्रतिभाएं आगे नहीं आ पा रहीं। उनकी इसी पीड़ा को समझा और महसूस किया देहरादून के राजीव गांधी नवोदय विद्यालय नालापानी में अर्थशास्त्र के प्रवक्ता डॉ. सुशील राणा ने।
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पिछले 15 वर्षों से गरीब एवं निर्धन परिवार के बच्चों के लिए वह अंधेरे में उम्मीद की किरण बने हैं। अध्यापन के बाद वक्त निकालकर राणा ऐसे बच्चों को निशुल्क कोचिंग दे रहे हैं। इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आए हैं। उनका यह प्रयास अन्य शिक्षकों को भी प्रेरणा देने का काम कर रहा है।
प्रतिभाओं को मिले अवसर
सुशील राणा कहते हैं कि आज बाल प्रतिभाओं की कमी नहीं है, लेकिन शिक्षा पर बाजारवाद हावी होने से जरूरतमंद बच्चे पिछड़ रहे हैं। बकौल राणा, 'जब मैं सड़क पर किसी बच्चे को बाल मजदूरी करते या भीख मांगते देखता हूं तो, लगता है सारी उपलब्धि और सारा ज्ञान व्यर्थ है। बहुत ज्यादा तो नहीं इतना खुद से प्रण किया है कि देहरादून से इन कुरीतियों को खत्म करना है।'
वह कहते हैं कि कई वर्ष पहले सरकार ने राजीव गांधी नवोदय आवासीय विद्यालयों की स्थापना की थी। इसके पीछे उद्देश्य था कि ग्रामीण और गरीब बच्चों को बेहतर शिक्षा का मौका मिले। लेकिन आज संपन्न एवं पढ़े-लिखे परिवारों के शहर के निजी स्कूलों में पढ़ रहे बच्चे नवोदय की प्रवेश परीक्षा पास कर दाखिले का अधिकार पा रहे हैं।
अलबत्ता, गरीब परिवारों के बच्चे प्रतिभाशाली होने के बावजूद इस परीक्षा को पास करने की कला में समक्ष नहीं है। वजह ये कि उन्हें ऐसी परीक्षा की कोई कोचिंग नहीं मिली है। आज जरूरत ऐसे प्रतिभावान बच्चों को कोचिंग देने की है।
अधिमान की है दरकार
देहरादून शहर से सटे अधिकांश ग्रामीण क्षेत्र अब शहर का हिस्सा जरूर बन गए हैं, लेकिन यहां के बच्चों को नवोदय विद्यालय में प्रवेश का मौका देने के मद्देनजर कुछ सीटों का कोटा निर्धारित किया जाना चाहिए। वह कहते हैं कि प्रवेश परीक्षा में कुछ अधिमान देने की व्यवस्था भी की जा सकती है, ताकि गरीब परिवारों के नौनिहालों को भी नवोदय आवासीय विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने का मौका मिले। आज नवोदय विद्यालयों में निजी स्कूलों में पढ़ने वाले साधन संपन्न परिवारों के बच्चों की संख्या अधिक है। जो नवोदय विद्यालय की स्थापना की मूल अवधारणा से मेल नहीं खाती है।
ये हैं चुनौतियां
- आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के प्रतिभावान बच्चों को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार करना
- सरकारी स्कूलों में आधुनिक तकनीकी उपकरणों के साथ पढ़ाई की व्यवस्था
- प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कोचिंग की व्यवस्था का अभिनव प्रयोग जरूरी
अंधेरे में उम्मीद की किरण
शिक्षक सुशील सिंह राणा का जन्म छह जून 1971 को पौड़ी जिले के यमकेश्वर ब्लाक के नौगांव में हुआ। उन्होंने ग्रामीण परिवेश में प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण कर एमए अंग्रेजी से किया। फिर एमएड अर्थशास्त्र और पीएचडी की। इसके बाद वह शिक्षक बने। डॉ. राणा वर्ष 2003 से नवोदय विद्यालय नालापानी में बतौर शिक्षक अपने दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं। साथ ही निशुल्क कोचिंग देकर गरीब बच्चों का भविष्य संवार रहे हैं।
डॉ. राणा, गरीब एवं अभावग्रस्त बच्चों को प्रवेश परीक्षा की तैयारी भी करवाते हैं। वह छुट्टियों में बच्चों के लिए समर कैंप लगाते हैं और उन्हें शिक्षा के साथ-साथ खेलकूद, सांस्कृतिक गतिविधियों में भागीदारी को प्रेरित करने के साथ ही योगाभ्यास भी कराते हैं। वह कहते हैं विद्यार्थी सफल हों, यही उनकी गुरु दक्षिणा है।
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