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अर्थव्यवस्था में आया उछाल फिर भी क्यों रोजगार पर उठ रहे हैं सवाल

सवाल ये है कि अब भी दून में कुशल कामगारों का अभाव है। यही कारण है कि बड़ी संख्या में आज भी लोगों को पूर्णकालिक रोजगार नहीं मिल पा रहा है।

By Krishan KumarEdited By: Published: Sat, 11 Aug 2018 06:00 AM (IST)Updated: Sat, 11 Aug 2018 06:00 AM (IST)
अर्थव्यवस्था में आया उछाल फिर भी क्यों रोजगार पर उठ रहे हैं सवाल

बीते 18 सालों के सफर में दून की अर्थव्यवस्था ने लंबा सफर तय किया। 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड के गठन और दून के राजधानी के रूप में आकार लेने से जब यह सफर शुरू हुआ तो अर्थव्यवस्था में उद्योग व बाजार की हिस्सेदारी बेहद सीमित थी। हालांकि, चंद वर्षों के भीतर ही सेलाकुई और आइटी पार्क जैसे बड़े इंडस्ट्रिल एरिया का उदय हुआ। यहां का बाजार भी मेट्रो शहरों से कदमताल करने लगा, खासकर रियल एस्टेट सेक्टर में भारी बूम आया। देखते ही देखते 50 फीसद से अधिक हिस्सेदारी सेकेंडरी स्तर के विनिर्माण (उद्यम) क्षेत्र की हो गई और इसमें भी 37 फीसद हिस्सेदारी हर तरह का रोजगार देने वाले मैनुफैक्चरिंग सेक्टर की है।

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एक सवाल खड़ा हो जाता है कि दून में अभी भी कुशल कामगारों का अभाव है। यही कारण है कि बड़ी संख्या में आज भी लोगों को पूर्णकालिक रोजगार प्राप्त नहीं हो पा रहा। नौकरी के लिए प्रशिक्षण एवं सेवायोजन निदेशालय के आंकड़ों पर गौर करें तो फरवरी 2018 तक दून में 1.76 लाख पंजीकरण हो चुके थे। इनमें 56 हजार से अधिक बेरोजगार अभ्यर्थी स्नातक हैं, जबकि 28 हजार से अधिक की संख्या स्नातकोत्तर अभ्यर्थियों की है। इन सभी शिक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को सरकारी नौकरी मिल पाना संभव नहीं।

बड़ा सवाल यह भी कि इतनी बड़ी संख्या में शिक्षित और प्रशिक्षित युवाओं के लिए रोजगार के अन्य अवसर कैसे प्राप्त हो पाएंगे। जाहिर है कि इसके लिए स्वरोजगार के अवसर बढ़ाने होंगे। साथ ही इंडस्ट्री सेक्टर को आकर्षित करने की जरूरत है। हालांकि, दून के लिए एक बड़ी उम्मीद यह जगी है कि अक्तूबर में 20 हजार करोड़ रुपये तक के निवेश के लिए इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन किया जा रहा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं इसका उद्घाटन करेंगे।

डिग्रीधारियों को भी 50 फीसद ही रोजगार
जनगणना 2011 के अनुसार करीब 17 लाख की आबादी के सापेक्ष 4.48 लाख लोग ही पूर्णकालिक (12 महीने) रोजगार से जुड़े हैं, जबकि डेढ़ लाख के करीब लोग ऐसे हैं, जिन्हें 12 महीने काम नहीं मिल पाता। स्नातकोत्तर या इसके समकक्ष की डिग्री हासिल कर चुके लोगों को भी अभी शत प्रतिशत रोजगार नहीं मिल पाया है। यह आंकड़ा अभी भी 50 फीसद के करीब सिमटा है। ऐसे में रोजगार देने से अधिक स्वरोजगार से साधन उपलब्ध कराने पर बल देने की जरूरत है।

रोजगार की यह है तस्वीर (पूर्णकालिक)
शैक्षिक स्तर, आबादी, रोजगार, फीसद
10-12वीं, 3.63 लाख, 1.28 लाख, 35.28
डिप्लोमा, 79.98 हजार, 3.81 हजार, 47.64
स्नातक, 2.34 लाख, 1.09 लाख, 46.67
स्नातकोत्तर, 35.65 हजार, 18.13 हजार, 50.87

पंजीकृत बेरोजगारों की संख्या
महिला, 82,624
पुरुष, 93,730
कुल, 1,76,354

शिक्षा और रोजगार का जुडऩा जरूरी
देहरादून की पहचान शिक्षा हब के रूप में भी है, मगर जब बात रोजगार की आती है तो उच्च शिक्षित युवा भी बेहतर काम के लिए महानगरों की राह ताकने को विवश रहते हैं। इससे सवाल खड़े होते हैं कि क्या हमारी शिक्षा व्यवस्था ऐसी नहीं, जो युवाओं को अर्थव्यवस्था से जोड़ सके।

इसके लिए शिक्षा और रोजगार के बीच जुड़ाव होना जरूरी है। जब बड़ी कंपनियां कैंपस प्लेसमेंट के लिए आती हैं तो गिने-चुने युवाओं का ही चयन हो पाता है। इसके लिए जरूरी है कि शिक्षण संस्थान इंडस्ट्री और कमर्शियल सेक्टर के साथ ऐसा तालमेल बैठाएं कि डिग्री हासिल करने से पहले ही युवा संबंधित सेक्टर में काम करने के लिए पूरी तरह तैयार हो जाएं। अच्छी बात यह है कि इंडस्ट्री एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड ने इस दिशा में पहल करने की बात कही।

उद्यमिता विकास को लैंड बैंक चुनौती
वर्तमान में 130 एकड़ से अधिक के क्षेत्रफल पर उद्योग स्थापित हैं। नई औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के लिए सबसे बड़ा रोड़ा है लैंड बैंक। इसकी पूर्ति न सिर्फ हर हाल में किया जाना जरूरी है, बल्कि कम से कम 100 एकड़ के लैंड बैंक का इंतजाम करने से बात बन पाएगी। इसके अलावा जो भूमि उपलब्ध भी है, उसका समुचित उपयोग नहीं हो पा रहा।

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