देहरादूनः गुणवत्तायुक्त शिक्षा पर फोकस समय की मांग
डॉ. सक्सेना के मुताबिक अब चुनौती इस बात की है कि उच्च शिक्षा में गुणवत्ता कैसे लाई जाए?
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में देहरादून जिस तेजी से उभरा, आज जरूरत उसी गति से यहां शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने की है। ताकि, युवाओं को ग्लोबल स्तर की प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार किया जा सके। अन्यथा हमारी उच्च शिक्षा केवल बेरोजगारों की फौज तैयार करने के रूप में जानी जाएगी।
यह कहना है डीएवी स्नातकोत्तर महाविद्यालय देहरादून के प्राचार्य एवं शिक्षाविद डॉ. अजय सक्सेना का। वह कहते हैं कि उत्तराखंड के सबसे बड़े डीएवी कॉलेज से पढ़ाई करने वाली कई हस्तियों ने देश-दुनिया में छाप छोड़ी है। इनमें मॉरीशस के पूर्व राष्ट्रपति शिव सागर राम गुलाम, नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री लोकेश बहादुर चांद, पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखंड नारायण दत्त तिवारी, नित्यानंद स्वामी के अलावा एक दर्जन से अधिक मंत्रियों ने डीएवी से उच्च शिक्षा ग्रहण की। आज भी हजारों की संख्या में देशभर के छात्र दून के स्कूल, कॉलेजों एवं विवि में अध्ययनरत हैं।
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उच्च शिक्षा में गुणवत्ता एवं तकनीकी का समावेश जरूरी
डॉ. सक्सेना के मुताबिक अब चुनौती इस बात की है कि उच्च शिक्षा में गुणवत्ता कैसे लाई जाए? क्योंकि पारंपरिक शिक्षा अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पिछड़ती जा रही है। जबकि, आधुनिक तकनीकी शिक्षा तेजी से नवाचार को बढ़ावा दे रही है। इसमें रोजगार के अधिक से अधिक अवसर हैं। गुणवत्ता युक्त शिक्षा आज देश की आर्थिक तरक्की से सीधी जुड़ चुकी है। यदि देश को तरक्की करनी है तो उच्च शिक्षा में गुणवत्ता एवं तकनीकी का समावेश करना होगा।
डिग्री लेने तक सीमित न रहे शिक्षा
वह कहते हैं दून शिक्षा के क्षेत्र में उत्तरोत्तर प्रगति के सोपान छू रहा है। प्रतिष्ठित स्कूल-कॉलेजों के बाद उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी दून तेजी से उभरा है। दून विश्वविद्यालय में जवाहर लाल नेहरू विवि (जेएनयू) की तर्ज पर आज आधे दर्जन विषयों में इंटीग्रेडेट कोर्स संचालित किए जा रहे हैं।
इतना ही नहीं, आधा दर्जन विदेशी भाषाओं में यहां छात्र-छात्राओं को निपुण बनाया जा रहा है। उत्तराखंड तकनीकी विवि भी कई ऐसे तकनीकी कोर्स शुरू कर रहा है, जो उद्योगों की जरूरतों को पूरा करेंगे, लेकिन यह उपलब्धता बेहद सीमित है। जरूरत इस बात की है कि हमें पूरी उच्च शिक्षा को गुणवत्ता की कसौटी पर कसना होगा।
सरकारी से लेकर निजी क्षेत्र के उच्च शिक्षा संस्थानों में तकनीकी आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देना होगा। साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा कि शिक्षा की गुणवत्ता अंतरराष्ट्रीय स्तर की हो, ताकि हमारी युवा पीढ़ी वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा के लिए योग्य बन सकें।
उच्च शिक्षा में शोध को मिले बढ़ावा
वह कहते हैं उच्च शिक्षा में स्थानीय संसाधनों के उपयोग, शोध कार्यों को बढ़ावा देना होगा। सरकार एवं निजी क्षेत्र में सेवा के बेहतर संभावनाएं पैदा करनी होगी, ताकि हमारी होनहार युवा पीढ़ी को बेहतर कैरियर के लिए पलायन करने को मजबूर न हो। स्थानीय संसाधनों के संरक्षण एवं शोध से न केवल रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, बल्कि पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा मिलेगा। दून में शिक्षा, रोजगार के बाद पर्यावरण तीसरा सबसे गंभीर मामला है, जो आम आदमी के जनजीवन से सीधा जुड़ा है।
ये हैं प्रमुख चुनौतियां
बुनियादी और उच्च शिक्षा में बेहतरीन उपलब्धि हासिल करने वाले दून के समक्ष युवाओं को उनकी शिक्षा के अनुरूप बेहतर रोजगार उपलब्ध करवाना एक चुनौती है। ग्लोबल स्तर फैली बेरोजगारी से दून की अधूता नहीं हैं। प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में उच्च शिक्षा की पढ़ाई पूरी करने वाले प्रत्येक छात्र को सरकारी नौकरी मिलना संभव नहीं है। ऐसे में उद्यमिता आधारित प्रोग्राम शुरू किए जाने की आवश्यकता है, ताकि युवा नौकरी लेने वाले नहीं बल्कि नौकरी देने वाले योग्य उद्यमी बन सके।
दून में प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में छात्र स्नातक एवं स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी कर कर रहे हैं। ऐसे में शिक्षित -प्रशिक्षित बेरोजगार हाथों को काम देना सबसे बड़ी चुनौती बनती जा रही है।
दून में शिक्षा संस्थानों की स्थिति
- सरकारी कॉलेज- एक
(राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय रायपुर)
- सहायता प्राप्त अशासकीय कॉलेज- चार (डीएवी, डीबीएस, एमकेपी, श्री गुरुराम राय पीजी कॉलेज)
- तकनीकी संस्थानों की संख्या : 27
- सरकारी- नौ
- निजी- 17
विश्वविद्यालय की संख्या : (10)
- सरकारी : चार (दून विवि, उत्तराखंड तकनीकी विवि, आयुर्वेद विवि एवं एचएनबी चिकित्सा शिक्षा विवि)
- निजी विवि : सात (यूपीईएस, ग्राफिक एरा, इक्फाई, आइएमएस, सुभारती, श्री गुरुराम राय )
मेडिकल विवि की संख्या : दो
- सरकारी- एक
- निजी कॉलेज-एक
- निजी स्कूलों की संख्या : 84
(सीबीएसई, आइसीएसई और उत्तराखंड बोर्ड से संबद्ध)
सरकारी स्कूलों की संख्या : 269
- प्राइमरी 103
- जूनियर हाईस्कूल : 60 (25 प्राइमरी सहित)
- इंटर कॉलेज: 105 (सहायता प्राप्त अशासकीय 65 और सरकारी 40)
युवाओं का विकास हो प्राथमिकता
डॉ. अजय सक्सेना का जन्म चार जून, 1957 को दून में हुआ। उन्हें वर्ष 1976 में डीएवी पीजी कॉलेज के राजनीति विज्ञान विभाग में बतौर शिक्षक नियुक्ति मिली। डॉ. सक्सेना ने जेएनयू से एमफिल किया। 1983 में 'भारत-पाकिस्तान विदेश नीति समझौते के क्षेत्र' विषय पर पीएचडी पूरी की। 1993 में वह इंटरनेशनल फेलो चुने गए और संघर्ष-समाधान पर उत्साला विवि स्वीडन से डिप्लोमा किया। डॉ. सक्सेना की कई किताबें एवं अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में लेख छपे हैं। वह वर्ष 2012 में डीएवी कॉलेज राजनीति विज्ञान विभाग के एचओडी बने। वर्तमान में डीएवी के प्राचार्य हैं।
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