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देहरादून में इस संस्‍था ने स्‍कूल को लिया है गोद, जरूरतमंद बच्‍चों की करते हैं मदद

हिम फाउंडेशन ने देहरादून के बेसिक स्कूल नागल को गोद लिया है, यहां के बच्चों को शिक्षण सामग्री व अन्य संसाधन संस्था के माध्यम से मुहैया कराए जाते हैं।

By Krishan KumarEdited By: Published: Tue, 18 Sep 2018 06:00 AM (IST)Updated: Tue, 18 Sep 2018 06:00 AM (IST)
देहरादून में इस संस्‍था ने स्‍कूल को लिया है गोद, जरूरतमंद बच्‍चों की करते हैं मदद

जागरण संवाददाता, देहरादून: यदि छात्रों को कम उम्र से ही शिक्षा व स्वास्थ्य के प्रति जागरुक किया जाए तो प्रदेश व देश को बेहतर भविष्य दिया जा सकता है। कुछ इसी मकसद से हिम फाउंडेशन संस्था सामाजिक सहभागिता की दिशा में आगे बढ़कर काम कर रही है। संस्था ने देहरादून के बेसिक स्कूल नागल को गोद लिया है, यहां के बच्चों को शिक्षण सामग्री व अन्य संसाधन संस्था के माध्यम से मुहैया कराए जाते हैं। 

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संस्था के अध्यक्ष अजय बहुगुणा बताते हैं कि वह विभिन्न सरकारी स्कूलों में बच्चों को स्वच्छता की दिशा में भी प्रेरित करते रहते हैं। इसके लिए समय-समय पर बच्चों को टूथपेस्ट व टूथब्रश भी वितरित किए जाते हैं। संस्था के अध्यक्ष बताते हैं कि सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी के अभाव में जरूरतमंद लोग उसका लाभ नहीं उठा पाते। ऐसे में प्रयास रहता है कि सरकार के साथ सेतु बनाकर यह लाभ जन-जन तक पहुंचाया जा सके। इसी कड़ी में राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम के तहत संस्था डोईवाला क्षेत्र में बीमारी से पीडि़त दो छात्रों को 3.30 लाख रुपये की आर्थिक सहायता दिला चुकी है।

10 छात्रों को दिया जाता है होटल मैनेजमेंट का प्रशिक्षण
संस्थान ने आरआइएमटी होटल मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट के साथ अनुबंध किया है, जिसके तहत आठ से 10 छात्रों को निरंतर रूप से प्रशिक्षण दिया जाता है। हिम फाउंडेशन के माध्यम से स्पर्श गंगा के साथ समन्वय बनाकर हर सप्ताह रिस्पना नदी में सफाई अभियान चलाया जाता है। साथ ही लोगों को प्रेरित किया जाता है कि वह नदियों में कूड़ा न फेंकें।

60 लाख एनजीओ को जिम्मेदारी देने की पहल
हिम फाउंडेशन ने जागरण के सामाजिक सरोकारों से प्रेरित होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर गांवों के विकास के लिए एनजीओ की जिम्मेदारी तय करने का निर्णय लिया है। संस्था के अध्यक्ष अजय बहुगुणा का कहना है कि देश में 60 लाख एनजीओ हैं, जबकि गांवों की संख्या महज छह लाख के करीब है। ऐसे में उनका कहना है कि यदि एनजीओ की जिम्मेदारी तय की जाए तो एक गांव का जिम्मा 10 एनजीओ को सौंपा जा सकता है। विभिन्न सरकारी योजनाओं के माध्यम से यह काम संभव है और ऐसे एनजीओ की ऑडिटिंग भी कराई जा सकती है।


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