चुनौती 22 के सियासी रण में 21 साबित होने की
प्रदेश में अब अगले विधानसभा चुनावों की आहट सुनाई देने लगी है। उत्तराखंड के अलग राज्य के रूप में वजूद में आने के बाद यह पांचवें विधानसभा चुनाव होंगे। भाजपा इस चुनाव में विजयरथ पर सवार होकर जाएगी और उसकी कोशिश रहेगी कि पिछला चुनावी प्रदर्शन दोहराया जाए।
देहरादून, विकास धूलिया। उत्तराखंड में अब अगले विधानसभा चुनावों की आहट सुनाई देने लगी है। उत्तराखंड के अलग राज्य के रूप में वजूद में आने के बाद यह पांचवें विधानसभा चुनाव होंगे। भाजपा इस चुनाव में विजयरथ पर सवार होकर जाएगी और उसकी कोशिश रहेगी कि पिछला चुनावी प्रदर्शन दोहराया जाए। इसके ठीक उलट कांग्रेस की रणनीति रहेगी कि किसी भी तरह अपनी खोई सियासी जमीन को वापस हासिल किया जाए। इसके लिए भाजपा और कांग्रेस, दोनों ने ही तैयारी शुरू कर दी है। इन दोनों में से किसकी रणनीति कारगर साबित होगी यह तय करेगा कि वर्ष 2022 के सियासी रण में कौन सी पार्टी, किस पर इक्कीस साबित होती है। अलबत्ता पहली तीन विधानसभाओं में सूबे की तीसरी बडी सियासी ताकत रही बसपा के अलावा उत्तराखंड क्रांति दल किस तरह अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं, इस पर भी नजरें रहेंगी।
अब तक हर चुनाव में बदली है सत्ता
अपनी पैदाइश के जल्द बीस साल पूरे करने जा रहे उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव हमेशा दिलचस्प साबित हुए हैं। अब तक यहां कुल चार बार विधानसभा चुनाव हुए हैं, लेकिन मतदाता ने कभी किसी पार्टी को दो बार लगातार सत्ता तक पहुंचने का मौका नहीं दिया। भाजपा को अलग उत्तराखंड राज्य बनाने का श्रेय मिला और अंतरिम विधानसभा में बहुमत के कारण पहली अंतरिम सरकार भी भाजपा की बनी। इसके बावजूद राज्य गठन के लगभग सवा साल बाद वर्ष 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में बहुमत मिला कांग्रेस को। पांच साल बाद वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बेदखल कर भाजपा ने सत्ता में वापसी की। वर्ष 2012 के चुनाव में बहुमत किसी को नहीं मिला, लेकिन सबसे बडी पार्टी होने के नाते सरकार बनाई कांग्रेस ने। वर्ष 2017 में मतदाता ने फिर भाजपा की सत्ता में वापसी करा दी।
विजयरथ पर सवार चल रही भाजपा
तीसरे विधानसभा चुनाव, यानी वर्ष 2012 में कांग्रेस के हाथों मिली शिकस्त के बाद से उत्तराखंड में भाजपा अत्यंत मजबूत होकर उभरी। दरअसल, वर्ष 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार के सत्ता संभालने के बाद उत्तराखंड का सियासी परिदृश्य भी बदला। नमो मैजिक में वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य की पांचों सीटें जीतीं। यही प्रदर्शन भाजपा ने पांच साल बाद वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भी दोहराया। यही नहीं, वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन एतिहासिक रहा। 70 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा ने 57 सीटों पर जीत हासिल की। अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखंड में यह पहला मौका रहा, जब किसी पार्टी ने तीन-चौथाई से भी ज्यादा बहुमत के साथ सत्ता पाई। इससे पहले कांग्रेस ही एक बार वर्ष 2002 में 36 के स्पष्ट बहुमत के आंकडे तक पहुंची।
दबाव पिछला प्रदर्शन दोहराने का
भाजपा यूं तो पिछले छह सालों से अविजित नजर आ रही है, लेकिन अपनी इस स्थिति को डेढ साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में भी बनाए रखने की चुनौती भाजपा के समक्ष है। पिछली बार 57 सीटों पर कब्जा जमाया था, तो पार्टी के लिए लक्ष्य रहेगा कि अगली बार भी वह इस आंकडे के आसपास पहुंचे। यही भाजपा पर सबसे बडा दबाव भी है। हालांकि चुनाव में उसका मुकाबला पुरानी प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस से है, लेकिन यह भी सच है कि अपने पिछले प्रदर्शन के कारण भाजपा को खुद से भी मुकाबला करना पडेगा। पिछले चुनाव में कांग्रेस टूट के बाद मैदान में उतरी थी, लिहाजा कमजोर थी, लेकिन ऐसी स्थिति अगले चुनाव में नहीं होगी। फिर इस बात से भी कोई इनकार नहीं कर सकता कि मोदी मैजिक की चुनाव नतीजों में सबसे बडी भूमिका रही। वैसे, अगले विधानसभा चुनाव में भी भाजपा के लिए यह सबसे बडा फैक्टर होगा।
कांग्रेस को खोई जमीन की तलाश
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री सतपाल महाराज ने कांग्रेस कर हाथ झटक कर भाजपा का दामन थामा। इसके बाद तो उत्तराखंड में कांग्रेस के बिखराव की शुरुआत ही हो गई। मार्च 2016 में पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के नेतृत्व में नौ विधायकों ने कांग्रेस छोडकर भाजपा की राह अख्तियार कर ली। मई 2016 में एक अन्य कांग्रेस विधायक भी भाजपा में शामिल हो गईं। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव आते-आते कैबिनेट मंत्री और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रहे यशपाल आर्य भी भाजपा में चले गए। इसका असर विधानसभा चुनाव में साफ तौर पर दिखा। कांग्रेस महज 11 सीटों पर जा सिमटी। यह कांग्रेस का चार विधानसभा चुनावों में सबसे कमजोर प्रदर्शन रहा। यही वजह है कि कांग्रेस की पूरी कोशिश है कि अपने वोट बैंक को फिर से अपने पक्ष में ध्रुवीकृत किया जाए। अब यह विधानसभा चुनाव के बाद पता चलेगा कि कांग्रेस अपने मकसद कितना कामयाब होगी।
बसपा और उक्रांद पर भी नजर
बसपा पहले दो विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बाद तीसरी सबसे बडी पार्टी के रूप में उभरी। हालांकि, बसपा का हाथी कभी पहाड़ नहीं चढ पाया और दो मैदानी जिलों, हरिद्वार और उधमसिंह नगर में ही अपनी ताकत दिखा सका। तीसरे विधानसभा चुनाव में बसपा की ताकत आधी रह गई और चौथे विधानसभा चुनाव में तो उसका सूपड़ा ही साफ हो गया। सबसे दयनीय हालत रही उत्तराखंड क्रांति दल, यानी उक्रांद की। अलग राज्य निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले उक्रांद ने पहले दो विधानसभा चुनाव में अपनी उपस्थिति का अहसास कराया, लेकिन फिर सत्ता की लालसा में उसका खुद का वजूद लगभग खत्म हो गया। पहले उक्रांद ने कांग्रेस और फिर भाजपा का साथ देकर सत्ता का स्वाद चखा। यह सत्ता लोलुपता मतदाता को रास नहीं आई। नतीजा यह कि तीसरे विधानसभा चुनाव में एक सीट पर सिमटने के बाद चौथे विधानसभा चुनाव में उक्रांद एक भी सीट नहीं जीत पाया। अब वर्ष 2022 में बसपा और उक्रांद का प्रदर्शन कैसा रहता है, देखना दिलचस्प होगा।
राज्य गठन के बाद निर्वाचित 70 सदस्यीय विधानसभा की तस्वीर
वर्ष 2002 विधानसभा चुनाव
कांग्रेस 36
भाजपा 19
बसपा 07
उक्रांद 04
राकांपा 01
निर्दलीय 03
वर्ष 2007 विधानसभा चुनाव
भाजपा 35
कांग्रेस 21
बसपा 08
उक्रांद 03
निर्दलीय 03
वर्ष 2012 विधानसभा चुनाव
कांग्रेस 32
भाजपा 31
बसपा 03
उक्रांद 01
निर्दलीय 03
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वर्ष 2017 विधानसभा चुनाव
भाजपा 57
कांग्रेस 11
बसपा 00
उक्रांद 00
निर्दलीय 02
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