पापा को बिग बॉस बुलाते थे मेजर चित्रेश बिष्ट
शहीद मेजर चित्रेश बिष्ट के पिता एसएस बिष्ट ने कहा कि बचपन से ही बेटे का हर दर्द मैं महसूस करता आया हूं। बेटे को यदि कांटा चुभ जाए तो दर्द मुझे होता था। कहा कि बेटा उन्हें बिग बॉस बुलाता था।
देहरादून, जेएनएन। शहीद मेजर चित्रेश बिष्ट के पिता एसएस बिष्ट ने कहा कि बचपन से ही बेटे का हर दर्द मैं महसूस करता आया हूं। बेटे को यदि कांटा चुभ जाए तो दर्द मुझे होता था। कहा, घटना से पहली रात वह बेचैनी से सो नहीं पाए। सुबह उठे तो मन में कुछ अनहोनी के अंदेशे ने चिंता बढ़ा दी थी।
बेटे की शहादत से सदमे में आए सेवानिवृत्त इंस्पेक्टर एसएस बिष्ट ने कहा कि बेटा उन्हें बिग बॉस बुलाता था। छुट्टी में घर आने पर हर छोटी-बड़ी बातें साझा करता था। पिता का ख्याल इस कदर था कि इस बार शादी के कपड़े से लेकर दूसरी खरीदारी अपनी च्वाइस से की। पिता को मॉर्निग वॉक के जूते तक खरीद कर दिए। बिष्ट ने कहा कि घटना से एक रात पहले मन बेचैन हो गया था। रातभर नींद नहीं आई। पत्नी रेखा से कुछ अनहोनी की बात कही।
सुबह बेटे का फोन नहीं लगा तो और चिंता बढ़ गई। शादी के कार्ड बांटने और दूसरे काम के चलते घर से निकल गया, लेकिन शाम को बेटे की शहादत की सूचना ने तोड़कर रख दिया। कहा कि बचपन से ही चित्रेश मेरे करीब रहा। पिता कम और दोस्त की भूमिका ज्यादा निभाई। शादी से ठीक 18 दिन पहले चित्रेश की शहादत से परिवार का हर सदस्य टूट गया। शादी की सभी तैयारियां पूरी हो गईं थीं। बस अब सिर्फ चित्रेश के आने का इंतजार था। पिता एसएस बिष्ट रोते हुए बार-बार दोहराते रहे कि बुझ गया कुलदीपक। इस पर भाई और सांत्वना देने आए लोग गले लगाते हुए उन्हें समझाते रहे।
पालने में दिख गए थे पूत के पांव
समय से पहले यानि सात माह में चित्रेश ने जन्म लिया। इस पर परिवार में चिंता रही, लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक हो गया। शरीर से कमजोर होने के बावजूद चित्रेश ने 10 माह की उम्र में चलना शुरू कर दिया। खेल, पढ़ाई और अनुशासन चित्रेश की रग-रग में बसा था। यही कारण है कि चित्रेश परिवार से लेकर दोस्तों के दिल में खास जगह बना चुके थे।
अफसर बनने पर भी थी सादगी
मेजर चित्रेश बिष्ट सेना में अफसर बनने के बाद भी सादगी के साथ रहते थे। दोस्त भी दून के गिने-चुने स्कॉलर। स्कूलिंग से लेकर नौकरी तक बिना माता-पिता की अनुमति के कहीं नहीं जाना। कपड़े पहनने से लेकर व्यवहार भी पूरी तरह से सादगीभरा। पिता बिष्ट ने कहा कि कोतवाली में तैनाती के दौरान जब पुलिस सिपाही उनका खाने का टिफिन लेने आते तो चित्रेश मना कर देते और स्वयं कोतवाली तक पिता का टिफिन पहुंचाते थे।
कार चलाने का था शौक
मेजर चित्रेश को सिर्फ कार चलाने का शौक था। अपने लिए एसयूवी कार खरीदी थी। कार से खूब घूमे और परिजनों को भी घुमाया। ड्यूटी पर आते-जाते वक्त स्वयं ही कार ड्राइव करते थे। पिता एसएस बिष्ट ने 30 साल से ज्यादा पुलिस सेवा की। मगर, कार चलानी नहीं आई। पिता से कहा कि कार चलाओ। बेटे के अनुरोध पर पिता ने कार चलानी कुछ समय पहले ही सीखी।
यह भी पढ़ें : देश रक्षा को हमेशा आगे रहे शहीद मोहनलाल, जानिए उनकी जिंदगी से जुड़े पहलू
यह भी पढ़ें: जम्मू-कश्मीर में हुए आइईडी विस्फोट में उत्तराखंड का लाल शहीद