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सैनिक कभी मरता नहीं: मेधावियों के सपनों को पंख लगाएंगी चित्रेश की यादें, पिता ने की ये पहल

सैनिक कभी मरता नहीं है। शहीद होकर भी वह दिलों में जिंदा रहता है। ऐसे ही एक जांबाज थे मेजर चित्रेश बिष्ट। 16 फरवरी 2019 को नौशेरा सेक्टर में आइईडी ब्लास्ट में शहीद हुए मेजर चित्रेश की आज दूसरी बरसी है।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Tue, 16 Feb 2021 12:51 PM (IST)Updated: Tue, 16 Feb 2021 12:51 PM (IST)
सैनिक कभी मरता नहीं: मेधावियों के सपनों को पंख लगाएंगी चित्रेश की यादें, पिता ने की ये पहल
मेधावियों के सपनों को पंख लगाएंगी चित्रेश की यादें।

जागरण संवाददाता, देहरादून। सैनिक कभी मरता नहीं है। शहीद होकर भी वह दिलों में जिंदा रहता है। ऐसे ही एक जांबाज थे मेजर चित्रेश बिष्ट। 16 फरवरी 2019 को नौशेरा सेक्टर में आइईडी ब्लास्ट में शहीद हुए मेजर चित्रेश की आज दूसरी बरसी है। उनकी यादों को संजोए रखने के लिए पिता एसएस बिष्ट ने एक नेक पहल की है। वह बेटे के नाम पर छात्रवृत्ति शुरू कर मेधावियों की मदद कर रहे हैं। 

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ओल्ड नेहरू कॉलोनी निवासी पुलिस के रिटायर इंस्पेक्टर एसएस बिष्ट के बेटे मेजर चित्रेश की शहादत की खबर उस वक्त आई जब घर पर उनकी शादी की तैयारियां चल रही थीं। चित्रेश की शादी सात मार्च 2019 को होनी थी। शादी के कार्ड भी बंट चुके थे। इससे पहले दून का यह लाल देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गया। उन्हें मरणोपरांत सेना मेडल से अलंकृत किया गया है। वह इंजीनियरिंग कोर में तैनात थे और उन्हें आइईडी डिफ्यूज्ड करने में महारथ हासिल थी। पुलवामा हमले के बाद नौशेरा सेक्टर में आइईडी ब्लास्ट में वह शहीद हो गए। उनका परिवार मूलरूप से अल्मोड़ा के रानीखेत तहसील के पिपली गांव से है। चित्रेश भारतीय सैन्य अकादमी से वर्ष 2010 में पास आउट हुए थे।

उनकी याद में पिता ने दून और अल्मोड़ा में 11-11 गरीब मेधावी छात्रों को दस-दस हजार रुपये सालाना छात्रवृत्ति देने की पहल की है। उन्होंने अल्मोड़ा जिले में छात्रवृत्ति देना शुरू भी कर दिया है। वह बताते हैं कि मदद की राशि उन्होंने जिलाधिकारी अल्मोड़ा को भेज दी है। इसमें दो-दो छात्र चित्रेश के पैतृक गांव और ननिहाल से हैं, जबकि, सात जिले के अन्य गांवों से हैं। उन्होंने बताया कि देहरादून जनपद में भी छात्रवृत्ति शुरू करनी है। कोरोना के चलते वह बीते साल इसे शुरू कर नहीं करा पाए हैं, पर इस साल इसकी तैयारी उन्होंने की है। बेटे को याद कर कर वह भावुक हो उठते हैं। उसे अक्सर याद कर वह उसकी वर्दी को निहारते हैं। उन्हें मिला सेना मेडल भी उन्होंने बेटे की वर्दी पर लगा दिया है। 

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