पकने से पहले फटकर लाल हो रही लीची
संवाद सहयोगी विकासनगर एक तरफ कोरोना संक्रमण की मार से लोग बेहाल हैं तो दूसरी ओर पछवादून में लीची की फसल में रोग लगने से बागवानों के माथे पर चिता की लकीरें गहरा गई हैं।
संवाद सहयोगी, विकासनगर: एक तरफ कोरोना संक्रमण की मार से लोग बेहाल हैं तो दूसरी ओर पछवादून में लीची की फसल में रोग लगने से बागवानों के माथे पर चिता की लकीरें गहरा गई हैं। अंट्राकोंस रोग लगने से लीची विकसित होने से पहले ही फटने लगी है। साथ ही लाल हो रही है। जिससे लीची की गुणवत्ता खराब होने पर सही दाम न मिलने से बागवान को भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है।
इस बार का मौसम पछवादून में लीची की फसल के लिए मुफीद नहीं रहा। कभी रात-दिन के तापमान में अंतर तो कभी पर्वतीय इलाकों में ओलावृष्टि व मैदानी इलाकों में बारिश के चलते मौसम में उतार चढ़ाव होता रहा। जिसके कारण लीची फट रही है। क्षेत्र में बागवानी से जुड़े किसान रोहित पुंडीर, समर अरोड़ा, सुशील कुमार, अजय सिंह आदि का कहना है इस बार मौसम की मार से लीची की फसल खराब हो रही है। समय पर बारिश नहीं होने, इसके बाद रात दिन के तापमान में अंतर ने लीची की गुणवत्ता प्रभावित कर दी है। फसल को सुरक्षित रखने के लिए वैज्ञानिकों की सलाह ली जा रही है। इस बार लीची उत्पादन पच्चीस प्रतिशत तक गिरने की आशंका भी प्रबल हो रही है।
क्या कहते हैं कृषि विज्ञानी
ढकरानी स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के विज्ञानी रोग को मौसम के उतार चढ़ाव के कारण बता रहे हैं। केंद्र के प्रभारी विज्ञानी डॉ. एके शर्मा का कहना है कि लीची में अंट्राकोंस नामक बीमारी के लक्षण हैं। थियोपनेट मैथाइल का 0.2 फीसद या क्लोरोथियोनिल का 0.15 फीसद का स्प्रे एक सप्ताह छोड़कर करने से रोग का निवारण हो सकता है। इसके अलावा बागों में सिचाई की पर्याप्त व्यवस्था करना भी आवश्यक है। नमी प्रतिशत बरकरार रखकर व दवा के छिड़काव से रोग को आगे बढ़ने से रोका जा सकता है।