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कम तापमान ने गड़बड़ा दिया आम और लीची का विकास, बागवान बैचेन

इस बार मौसम की मार के कारण असंतुलित तापमान की वजह से आम व लीची सही तरीके से विकसित नहीं हो पाए हैं जिससे बागवान बैचेन हैं।

By Bhanu Prakash SharmaEdited By: Published: Tue, 19 May 2020 12:25 PM (IST)Updated: Tue, 19 May 2020 10:10 PM (IST)
कम तापमान ने गड़बड़ा दिया आम और लीची का विकास, बागवान बैचेन
कम तापमान ने गड़बड़ा दिया आम और लीची का विकास, बागवान बैचेन

देहरादून, राजेश पंवार। इस बार मौसम की मार के कारण असंतुलित तापमान की वजह से आम व लीची सही तरीके से विकसित नहीं हो पाए हैं, जिससे बागवान बैचेन हैं। दरअसल उद्यानिकी फसलों में लगभग 26 डिग्री सेंटीग्रेड से लेकर 36 डिग्री तापक्रम का होना अच्छा माना जाता है। इस बार बारिश व ओलावृष्टि के कारण अप्रैल में पिछले कई वर्षों की तुलना में तापक्रम 5 से 8 डिग्री सेंटीग्रेड कम रहना फल विकसित होने में बाधक बन गया।

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देहरादून के पछवादून में आम व लीची की फसल बागवानों का मुख्य आधार है। आम व लीची की फसल के लिए पूरे वर्ष एक आवश्यक तापमान एवं जलवायु के अनुसार पौधों में फूल आने व फल बनने की प्रक्रिया, फलों का आकार और उसमें मौजूद गुणों का प्रभावित होना स्वाभाविक होता है। 

इन दोनों ही उद्यानिकी फसलों में लगभग 26 डिग्री सेंटीग्रेड से लेकर 36 डिग्री सेंटीग्रेड तापक्रम का होना अच्छा माना जाता है। कृषि विज्ञान केंद्र ढकरानी के वैज्ञानिक डॉ. संजय सिंह ने बताया कि आम व लीची की फसल में नवंबर तक की अवधि में बारिश का होना ठीक रहता है, लेकिन नवंबर से लेकर और फूल आने या फल बनने के समय तक बारिश का होना इसके लिए हानिकारक रहता है। 

फूल व फल बनने की प्रक्रिया में मौसम में कम आद्रता के साथ शुष्क मौसम उपयुक्त रहता है, जिसके कारण भली प्रकार फलों का विकास होता है। सामान्य दृष्टि में आम की उगाई जाने वाली प्रजातियां जिसमें दशहरी, लंगड़ा, चौसा इत्यादि प्रमुख हैं। एक स्वस्थ और पूर्ण विकसित आम का वजन 200 ग्राम औसत अच्छा माना जाता है। लीची के फल का वजन 15 से 20 ग्राम उपयुक्त रहता है। 

इसके लिए मौसम का अच्छा होना आवश्यक होता है। इस बार जनवरी से लेकर और अप्रैल के अंत तक के मौसम में काफी वर्षा व ओलावृष्टि हुई। इसके कारण औसत तापमान में काफी गिरावट देखी गई और जलवायु काफी आद्रता भरी रही। जिसके कारण फूल आने के समय पाउडरी मिलडायू रोग व लीफहॉपर कीट का प्रकोप अधिक देखा गया।

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हालांकि, बागवानों द्वारा रोग एवं कीट के निदान के लिए पादप सुरक्षा रक्षक रसायनों का प्रयोग निरंतर किया जाता रहा। प्रतिकूल मौसम के कारण प्रत्येक छिड़काव के बाद बारिश होने पर रसायनों का छिड़काव पूर्ण प्रभावी नहीं रहा। इसके कारण फल गिरने की समस्या काफी देखी जा रही है। बारिश के साथ तूफान चलने व ओलावृष्टि होने के कारण फलों की गुणवत्ता भी काफी प्रभावित हुई है। कृषि वैज्ञानिक डा. संजय सिंह बताते हैं कि तापमान में कमी के कारण फल के विकसित होने में समस्याएं आयी। फलों का आकार छोटा व अविकसित कई उद्यान में देखा जा रहा है।

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