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Election 2024: देवभूमि में ‘शक्ति’ के आशीर्वाद के बिना पार नहीं होती चुनावी वैतरणी

उत्तराखंड में चुनावों में महिलाओं का निरंतर बढ़ता मत प्रतिशत दर्शाता है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था को सशक्त बनाने में आधी आबादी अहम भूमिका निभा रही है। वैसे भी उत्तराखंड राज्य के निर्माण और फिर उसके विकास में मातृशक्ति का योगदान किसी से छिपा नहीं है। 13 जिलों वाले उत्तराखंड के 10 जिले विशुद्ध रूप से पर्वतीय हैं। पहाड़ में तो आधी आबादी को यहां की रीढ़ कहा जाता है।

By Jagran News Edited By: Amit Singh Published: Fri, 22 Mar 2024 04:06 AM (IST)Updated: Fri, 22 Mar 2024 04:06 AM (IST)
लोकसभा के पिछले दो और विधानसभा के चार चुनावों में पुरुषों से अधिक रहा है महिलाओं का मत प्रतिशत

केदार दत्त, देहरादून। देवभूमि उत्तराखंड में शक्ति यानी मातृशक्ति के आशीर्वाद के बिना चुनावी वैतरणी पार नहीं होती। राज्य में लोकसभा के पिछले दो और विधानसभा के चार चुनाव इसका उदाहरण हैं। इनमें महिलाओं का मत प्रतिशत पुरुषों से अधिक रहा है। यूं कहें कि चुनावों में जीत की कुंजी महिलाओं के पास है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। ऐसे में कोई भी राजनीतिक दल यहां मातृशक्ति की अनदेखी नहीं कर सकता। यही कारण भी है लोकसभा चुनाव के दृष्टिगत इस बार भी यहां की 40.12 लाख महिला मतदाताओं को साधने पर सभी राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों की नजर है।

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उत्तराखंड में चुनावों में महिलाओं का निरंतर बढ़ता मत प्रतिशत दर्शाता है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था को सशक्त बनाने में आधी आबादी अहम भूमिका निभा रही है। वैसे भी उत्तराखंड राज्य के निर्माण और फिर उसके विकास में मातृशक्ति का योगदान किसी से छिपा नहीं है। 13 जिलों वाले उत्तराखंड के 10 जिले विशुद्ध रूप से पर्वतीय हैं। पहाड़ में तो आधी आबादी को यहां की रीढ़ कहा जाता है। महिलाएं घर-परिवार से लेकर खेत-खलिहान तक खटती हैं। बावजूद इसके लोकतंत्र के महोत्सव में उनकी गहरी आस्था है।

उत्तराखंड में लोकसभा की पांच सीटें हैं। इनके चुनाव परिणाम पर नजर दौड़ाएं तो वर्ष 2004 व 2009 के लोकसभा चुनाव में महिलाओं की भागीदारी कम रही। वर्ष 2014 के चुनाव में महिलाएं, पुरुषों से आगे निकलीं और वर्ष 2019 में भी यह क्रम बना रहा। इसी तरह राज्य में अब तक हुए पांच विधानसभा चुनावों में केवल 2002 के चुनाव में ही महिलाओं का मत प्रतिशत कम रहा। इसके बाद वर्ष 2007 के विस चुनाव से वह पुरुषों से निरंतर आगे बनी हुई हैं। इस परिदृश्य से साफ है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में भी मातृशक्ति का सबसे अहम योगदान रहने वाला है।


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