Move to Jagran APP

उत्‍तराखंड में गुलदारों को घने जंगलों में रहना और शिकार करना नहीं आ रहा है रास

समूचे उत्तराखंड में जान-माल के खतरे का सबब बने गुलदारों को घने जंगल रास नहीं आ रहे। इनके व्यवहार में आ रहे बदलाव के मद्देनजर अध्ययन के लिए हरिद्वार क्षेत्र में रेडियो कॉलर किए गए पहले गुलदार पर अब तक के अध्ययन से इस बात की तस्दीक होती है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sat, 17 Oct 2020 11:17 AM (IST)Updated: Sat, 17 Oct 2020 11:17 AM (IST)
उत्‍तराखंड में गुलदारों को घने जंगलों में रहना और शिकार करना नहीं आ रहा है रास
उत्‍तराखंड में गुलदारों को घने जंगलों में रहना और शिकार करना नहीं आ रहा है रास!

देहरादून, राज्य ब्यूरो। समूचे उत्तराखंड में जान-माल के खतरे का सबब बने गुलदारों को घने जंगल रास नहीं आ रहे। इनके व्यवहार में आ रहे बदलाव के मद्देनजर अध्ययन के लिए हरिद्वार क्षेत्र में रेडियो कॉलर किए गए पहले गुलदार पर अब तक के अध्ययन से इस बात की तस्दीक होती है। घने जंगल में छोड़े जाने के बाद यह गुलदार उस क्षेत्र में चार बार धमक चुका है, जहां से पकड़कर उसे रेडियो कॉलर पहनाया गया था। इससे आसान शिकार की तलाश में गुलदारों के आबादी के नजदीक रहने की अवधारणा को बल मिला है।

loksabha election banner

वर्तमान में प्रदेश का कोई क्षेत्र ऐसा नहीं है, जहां गुलदार मुसीबत का सबब न बने हों। पिछले डेढ़ माह के दौरान तो इनके  हमलों में बढ़ोतरी हुई है। इस अवधि में गुलदारों ने नौ व्यक्तियों को मार डाला, जबकि आठ को घायल किया। इससे पहले जनवरी से अगस्त तक गुलदारों के हमलों में 14 व्यक्तियों की जान गई थी। गुलदार के लगातार बढ़ते हमलों को देखते हुए वन महकमे ने इनके व्यवहार पर अध्ययन कराने का निर्णय लिया। इस कड़ी में 29 सितंबर को हरिद्वार के एक आबादी वाले क्षेत्र में सक्रिय गुलदार को ङ्क्षपजरे में कैद कर उसे रेडियो कॉलर लगाया गया। फिर उसे इस स्थान से करीब 14 किलोमीटर दूर घने जंगल में छोड़ दिया गया।

तब से वन महकमा निरंतर इस गुलदार की मॉनीटरिंग कर रहा है। रेडियो कॉलर से उसकी पल-पल की जानकारी मिल रही है। सूत्रों के अनुसार पहले दो दिन तो यह गुलदार घने जंगल में रहा, लेकिन इसके बाद उसने फिर से आबादी वाले क्षेत्र की तरफ रुख किया। सूत्रों ने बताया कि अभी भी यह उस क्षेत्र से लगे जंगल में घूम रहा, जहां उसे रेडियो कॉलर लगाया गया था। सूत्रों के मुताबिक यह धारणा आम है कि गुलदार ज्यादातर आबादी वाले क्षेत्रों के आसपास ही रहते हैं। इसकी वजह ये है कि गुलदारों को वहां कुत्ते, बकरी जैसे छोटे जानवरों का शिकार करने में आसानी रहती है। रेडियो कॉलर किए गए गुलदार के व्यवहार की अध्ययन रिपोर्ट में भी यह जानकारी आ रही है।

यह भी पढ़ें: उत्‍तराखंड में गुलदारों के हमले में हर पांचवें दिन एक व्यक्ति की मौत

जेएस सुहाग (मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक उत्तराखंड) का कहना है कि हरिद्वार में रेडियो कॉलर किए गए गुलदार के मूवमेंट पर लगातार नजर रखी जा रही है। यह अध्ययन भी किया जा रहा कि वह कब और किस वक्त सक्रिय रहता है। ऐसे तमाम बिंदुओं पर अध्ययन चल रहा है। अध्ययन रिपोर्ट तैयार होने पर गुलदार-मानव संघर्ष को थामने के लिए कार्ययोजना बनाने में मदद मिलेगी। जल्द ही कुछ अन्य गुलदारों पर भी रेडियो कॉलर लगाने की तैयारी है।

यह भी पढ़ें: उत्तराखंड में सामने आएगा गुलदारों के आक्रामक व्यवहार का सच, जानिए कैसे


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.