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निकाय चुनाव में मतदान के रुझान से पसोपेश में सियासतदां

राज्य के 84 निकायों के लिए 69.78 फीसद मतदान हुआ। मतदान प्रतिशत के उतार-चढ़ाव को देख जीत-हार के दावे करने वाले सियासतदां को मतदान के रुझान ने पसोपेश में डाल दिया है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 19 Nov 2018 09:27 AM (IST)Updated: Mon, 19 Nov 2018 08:14 PM (IST)
निकाय चुनाव में मतदान के रुझान से पसोपेश में सियासतदां
निकाय चुनाव में मतदान के रुझान से पसोपेश में सियासतदां

देहरादून, विकास धूलिया। मतदान प्रतिशत के उतार-चढ़ाव को देख जीत-हार के दावे करने वाले सियासतदां को मतदान के रुझान ने पसोपेश में डाल दिया है। राज्य के 84 निकायों के लिए 69.78 फीसद मतदान हुआ। यह आंकड़ा वर्ष 2013 के निकाय चुनाव से थोड़ा ही ज्यादा है, लिहाजा इस आधार पर तो कम से कम यह कह पाना मुश्किल है कि इससे किस पार्टी को फायदा होगा। महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि वर्ष 2013 के निकाय चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के साथ ही निर्दलीयों का प्रदर्शन भी बराबरी का ही रहा था। अब इस निकाय चुनाव में मतदाता ने वही व्यवहार प्रदर्शित किया, तो सभी के दावे धराशायी होते नजर आएंगे।

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बेहतर मतदान का फिर दिखा चरित्र

उत्तराखंड साक्षरता दर के लिहाज से देश के अग्रणी राज्यों में शुमार है। सूबे का यह चरित्र मतदान में भी झलकता है। उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव हों या फिर विधानसभा चुनाव, औसत से ज्यादा संख्या में मतदाता पोलिंग बूथ तक पहुंचते हैं। इस निकाय चुनाव में भी मतदाताओं ने अपनी इस स्वस्थ परंपरा को कायम रखा। वर्ष 2013 में हुए पिछले निकाय चुनाव में यहां 65.56 प्रतिशत मतदान हुआ था। इस बार मतदान प्रतिशत इसके पार 69.78 तक जा पहुंचा। अलबत्ता, यहां यह भी गौरतलब है कि इस बार पिछले चुनाव के मुकाबले निकायों की संख्या 15 ज्यादा है। हालांकि मतदान प्रतिशत को लेकर सूबे में सत्तासीन भाजपा और उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के दावे अपनी-अपनी सहूलियत के लिहाज से किए जा रहे हैं, लेकिन सच तो यह है कि सियासी पार्टियों के रणनीतिकार भी इस वोटर बिहेवियर को लेकर कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं हैं। 

पिछले निकाय चुनाव में बराबर

वर्ष 2013 में कुल 69 निकायों में चुनाव हुए थे। तब कुल छह नगर निगम वजूद में थे। इनमें से देहरादून, हरिद्वार, हल्द्वानी और रुद्रपुर में महापौर की सीट भाजपा के हिस्से में आई थी, जबकि रुड़की व काशीपुर में निर्दलीय विजयी रहे थे। कुल 69 निकायों में नगर निगम के महापौर और नगर पालिका परिषद व नगर पंचायत अध्यक्ष पदों में से 22 पर भाजपा काबिज हुई, जबकि निर्दलीयों ने भी 22 निकायों में ही बाजी मारी। कांग्रेस भी ज्यादा पीछे नहीं रही और उसने 20 निकायों में अध्यक्ष पद पर जीत दर्ज की। इनके अलावा बसपा तीन और सपा व उक्रांद एक-एक निकाय अध्यक्ष पद हासिल करने में कामयाब रही।

किसके मंसूबे चढ़ेंगे परवान

अलबत्ता यहां यह बात गौर करने लायक है कि वर्ष 2013 के निकाय चुनाव से ठीक एक साल पहले उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर कांग्रेस सत्ता में आई थी लेकिन निकाय चुनाव में उसका प्रदर्शन अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा। खासकर, नगर निगमों में तो कांग्रेस एक भी महापौर नहीं जितवा पाई। इसके बाद वर्ष 2014 के लोकसभा और वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस का सूपड़ा साफ करते हुए एकतरफा जीत दर्ज की। अब सबसे बड़ा सवाल यह कि क्या भाजपा निकाय चुनाव में भी जीत के रथ पर सवार होकर आगे बढ़ते हुए लोकसभा के चुनावी रण में पहुंचेगी, या फिर कांग्रेस का एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर का लाभ लेने का मंसूबा मतदाता परवान चढ़ाएंगे।

वर्ष 2013 के निकाय चुनाव 

  • भाजपा:   22
  • कांग्रेस:   20
  • निर्दलीय:  22
  • बसपा:    03
  • सपा:     01
  • उक्रांद:    01
  • कुल निकाय :  69

नगर निगमों पर कब्जा

  • देहरादून: भाजपा
  • हरिद्वार: भाजपा
  • रुद्रपुर:   भाजपा
  • हल्द्वानी:  भाजपा
  • काशीपुर: निर्दलीय
  • रुड़की:  निर्दलीय

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